अतीत के आइने से : 10 लोकसभा सीटों पर 13 बने सांसद, ऐसा था हरियाणा का ये चुनाव

एक अनूठा संयोग प्रदेश में बना और 1984 से 1989 के बीच के समय में चार लोकसभा सीटों के लिए उप चुनाव हुए जो कि अभी तक के लोकसभा चुनाव में प्रदेश के सबसे अधिक उप चुनाव साबित हुए।

By manoj kumarEdited By: Publish:Wed, 24 Apr 2019 06:02 PM (IST) Updated:Thu, 25 Apr 2019 08:36 AM (IST)
अतीत के आइने से : 10 लोकसभा सीटों पर 13 बने सांसद, ऐसा था हरियाणा का ये चुनाव
अतीत के आइने से : 10 लोकसभा सीटों पर 13 बने सांसद, ऐसा था हरियाणा का ये चुनाव

झज्जर [अमित पोपली] 1984 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की कद्दावर नेता और ऑयरन लेडी के नाम से प्रसिद्ध इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बनी सहानुभूति की लहर के परिणाम स्वरूप 48 फीसद वोट हासिल करते हुए 415 सीटों पर कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया था। हरियाणा प्रदेश का योगदान भी इसमें सौ फीसद रहा। यानि कि 10 की 10 सीटें कांग्रेस की झोली में यहां से गई। चुनावों के अप्रत्याशित परिणाम से प्रदेश के लोगों के मिजाज को सकारात्मक रुप में समझा जा सकता था।

फिर एक अनूठा संयोग प्रदेश में बना और इसी योजना में 1984 से 1989 के बीच के समय में चार लोकसभा सीटों के लिए उप चुनाव हुए, जो कि अभी तक के लोकसभा चुनाव में प्रदेश के सबसे अधिक उप चुनाव साबित हुए, इस दौरान परिणाम पहले वाले मिजाज से पूर्ण रुप से जुदा रहा। तीन नए सांसद इस लोकसभा में चुनकर आए। जबकि चौथे सांसद ऐसे रहे जो कि दोबारा मैदान में उतरें और पुन: चुनाव जीते।

10 में से 4 सीटों पर हुए उप-चुनाव

10 सीटों में से चार सीट फरीदाबाद, सिरसा, रोहतक और भिवानी के लिए उप चुनाव हुए हैं। जिसमें से फरीदाबाद व सिरसा के लिए वहां से कांग्रेस के लिए चुने गए तत्कालीन सांसदों की मृत्यु के बाद चुनाव हुए। रोहतक एवं भिवानी की सीटों के लिए वहां से सांसद हरद्वारी लाल तथा बंसी लाल द्वारा अपनी-अपनी सीट को खाली किए जाने के बाद हुए। चारों लोकसभा सीट पहले कांग्रेस के पास थी। लेकिन बाद में जो परिणाम आए वह जनता के मिजाज को बखूबी दर्शाता है। चूंकि चारों की चारों सीटें कांग्रेस के हाथ से खिसकते हुए विपक्ष के हाथ में चली गई। जबकि केंद्र में भी राजीव गांधी की सरकार थी।

1987 में हुए रोहतक और भिवानी के चुनाव

रोहतक सीट के लिए हुए उपचुनाव से एक अन्य रोचक पहलू चुनाव में यह जुड़ा कि यहां पहले भी हरद्वारी लाल ही बतौर सांसद चुने गए थे औंर पुन: हुए चुनाव के बाद भी हरद्वारी लाल जनता की पहली पसंद बने और शायद यह देश भर में ही अनूठा संयोग होगा कि अपनी सीट को छोड़कर उन्होंने दोबारा से वहां से चुनाव लड़ा और जीतकर लोकसभा में आए। चुनाव के क्रम में भिवानी लोकसभा क्षेत्र से बंसीलाल ने सीट को छोड़ते हुए प्रदेश की कमान संभाल ली थी। जिसके बाद पुन: हुए चुनाव में लोकदल के उम्मीदवार आरएन सिंह ने कांग्रेस के डी नंद को चुनाव में पटखनी देते हुए सीट पर कब्जा जमाया था।

1988 में हुए फरीदाबाद और सिरसा के चुनाव

फरीदाबाद एवं सिरसा लोकसभा के तत्कालीन सांसद रहीम खान और दलबीर सिंह की असामायिक हुई मृत्यु के चलते दोनों सीटों के लिए जनता को उप चुनाव देखना पड़ा। फरीदाबाद से खुर्शीद अहमद चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी को करारी शिकस्त देते हुए सीट को अपने कब्जे में किया था। जबकि सिरसा आरक्षित सीट के लिए हुए चुनाव में लोकदल के उम्मीदवार हेतराम ने कांग्रेस प्रत्याशी शैलजा को परास्त करते हुए सीट पर जीत अर्जित की थी। इसमें शैलजा से जुड़ा एक रोचक पहलू यह भी हैं यह उनका पहला लोकसभा चुनाव था। हालांकि वे उसके बाद चार दफा लोकसभा के चुनाव जीत चुकी हैं। लेकिन उनकी शुरुआत लोकदल की आंधी में हुई हार से हुई हैं।

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