लाला लाज पतराय ने 1898 में की थी भिवानी के बाल सेवा आश्रम की स्थापना, आज तक जारी है सेवा

बाल सेवा आश्रम 200 साल से ज्यादा समय से बेसहारों के जीवन और स्वावलंबन का संबल बना है। फिलहाल आश्रम में 37 बच्चे हैं। यहां से अनेक बच्चे बड़ी उपलब्धियां हासिल कर समाज में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यह बाल सेवा आश्रम उत्तर भारत का सबसे बड़ा आश्रम है।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Thu, 28 Jan 2021 04:42 PM (IST) Updated:Thu, 28 Jan 2021 04:42 PM (IST)
लाला लाज पतराय ने 1898 में की थी भिवानी के बाल सेवा आश्रम की स्थापना, आज तक जारी है सेवा
भिवानी का बाल सेवा आश्रम जिसकी स्‍थापना लाला लाजपत राय ने की थी

भिवानी [सुरेश मेहरा] बाल सेवा आश्रम। भिवानी का यह बाल सेवा आश्रम अपने आप में बहुत सारी यादें समेटे है। इसे दो अप्रैल 1898 में पंजाब केसरी लाला लाजपतराय ने स्थापित किया था। 28 जनवरी को लालाजी की जयंती है। ऐसे में इस आश्रम से जुड़ी गतिविधियों और यहां से जुड़ी यादों को याद किया जाना स्वाभाविक है। यूं कहें कि यह आश्रम 200 साल से ज्यादा समय से बेसहारों के जीवन और स्वावलंबन का संबल बना है। फिलहाल आश्रम में 37 बच्चे हैं। यहां से अनेक बच्चे बड़ी उपलब्धियां हासिल कर समाज में अभी भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यह बाल सेवा आश्रम उत्तर भारत का सबसे बड़ा आश्रम है।

आश्रम की है 16 एकड़ जमीन, 8 एकड़ में बना है आवास

लाला लाजपतराय द्वारा स्थापित इस बाल सेवा आश्रम की 16 एकड़ जमीन है। इसमें आठ एकड़ में आश्रम का आवास बना है। इसमें बच्चों के लिए शिक्षा, आवास, भोजन, यज्ञशाला, गोशाला और प्राथमिक विद्यालय बना है। इसके अलावा लड़के और लड़कियों के लिए छात्रावास बनाया गया है। छात्राओं को स्वावलंबी बनाने के लिए उनको शिक्षा के साथ सिलाई कढ़ाई आदि की ट्रेनिंग भी दी जाती है।

आयुर्वेदिक पौधों की बगिया बढ़ा रही आश्रम की शोभा

बाल सेवा आश्रम में आयुर्वेदिक पौधे लगाए गए हैं। नियमित रूप से यहां इनकी देखभाल बच्चाें की तरह की जाती है। यह भवन बहुत ही आकर्षक ढंग से बनाया गया है।

छपना के अकाल में पड़ी थी नींव

विक्रमी संवत 1956 में भयंकर अकाल पड़ा था। यह अकाल छप्पने का काल के नाम से भी जाना जाता है। उस समय इंसान तो क्या पशु पक्षियों के लिए भी भोजन के लाले पड़ गए थे। यह 1899 की बात हैं। उस अकाल के समय ईसाई मिशनरीज भिवानी इलाके में सक्रिय हो गई थी और आरंभ में उन्होंने 82 बच्चे एकत्रित कर लिए थे। इस षडयंत्र का लाला लाजपतराय को पता चला। उस समय वे हिसार में वकालत करते थे। उन्होंने अपने सहयोगियों लाला चूड़ामणि, पंडित लखपतराय से विचार कर गार्डियनशिप की दरख्वास्त सेशन जज फिरोजपुर की अदालत में दी। उस समय अदालत ने फैसला दिया था कि हिंदू बच्चों को लालाजी को सौंप दिया जाए। इसके विरोध में ईसाई प्रचारकों ने लाहौर हाई कोर्ट में अपील कर दी जो खारिज हो गई। निर्णय दिया गया कि हिंदू बच्चों के वैधानिक वारिस लाला लाजपराय होंगे और बच्चे उनको सौंप दिए गए।

उस समय लाला लाजपराय ने पंजाब के चीफ इंजीनियर गंगाराम के सहयेाग से भवन किराए पर लिया। बेसहारा बच्चों को किराए के भवन में रखा गया ओर यह चलता रहा। इसके बाद भिवानी के दानवीरों ने पूरा सहयोग किया और आश्रम के नए भवन के लिए 30 मई 1909 को लालाजी ने आधारशिला रखी। वर्तमान में यहां का कार्यभार मोहनगिरी के जिम्मे है।

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