Kisan andolan में अब पंजाब से भी कम हो रही आवाजाही, फसलों का कार्य निपटाने में जुटे किसान
दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन में अब पंजाब से भी आवाजाही कम हो रही है। फिलहाल किसान खरीफ फसलों का कार्य निपटाने में जुट गए हैं। हरियाणा से भागीदारी दो पहले ही कम हो चुकी है। अब यहां मददगारों का भी अभाव है।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन में अब पंजाब से भी आवाजाही कम हो रही है। फिलहाल किसान खरीफ फसलों का कार्य निपटाने में जुट गए हैं। हरियाणा से भागीदारी दो पहले ही कम हो चुकी है। अब यहां मददगारों का भी अभाव है। पहले तो कदम-कदम पर जहां प्रसाद और खाना उपलब्ध होता और कहीं से भी कोई भी आंदोलन में आकर आसानी से ठहर जाता था। अब वैसा कुछ नहीं है। जहां पर लंगर चलते थे वहां पर अब तंबू भी नहीं।
खाने का यहां पर पहले जैसा खुला इंतजाम नहीं है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि कोई भी तंबू में अंदर भी नहीं घुस पाता। बाईपास की बात करें तो आंदोलनकारियों के लिए यहां पर कई फ्री-माेल शुरू किए गए थे। जहां से उन्हें जरूरत का सामान मुफ्त उपलब्ध कराया जाता था, लेकिन अब ऐसा कोई मोल यहां पर नहीं चल रहा है। सेक्टर-नौ मोड़ के नजदीक खालसा एड की ओर से जो व्यवस्था शुरू की थी, वह भी बंद कर दी गई। यहां पर चाय-पानी से लेकर खाना और मिठाई तक सब कुछ वितरित होता था।
इससे चार कदम आगे बड़ा सा लंगर चलता था, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है। लंगर में दिनभर जमघट रहता था, वहां अब सन्नाटा पसरा हुआ है। किसी तंबू में अगर लंगर चल भी रहा है तो सिर्फ आसपास में ठहरे आंदोलनकारियों के लिए ही है। या फिर कोई बाहर से आता है तो उसको यहां पर खाना खिलाया जाता है। बाकी ज्यादा लोगों के लिए व्यवस्था नहीं है।
इसीलिए तो ज्यादा आंदोलनकारी भी यहां पर नहीं डटे हुए हैं। यह अलग बात है कि हरियाणा- पंजाब से आंदोलनकारियों को बुलाने के लिए रोजाना आह्वान किया जा रहा है, मगर वे आ नहीं रहे हैं। 10 महीने का समय बीतने के कारण आंदोलनकारियों का जोश अब कम हो रहा है। मददगार संगठनों ने भी हाथ खींच लिए हैं। नए बस स्टैंड पर जहाँ आंदोलनकारियों का जमावड़ा है वहां पर भी प्रबंध पहले जैसे नहीं।