Kisan Andolan News: एमएसपी और दर्ज केसों की वापसी की मांग को लेकर हरियाणा के संगठन बना रहे हैं दबाव
आंदोलन अभी खत्म होने की बजाय इसमें खींचतान बढ़ रही है। ऐसे में चार दिसंबर की संयुक्त किसान मोर्चे की बैठक में आंदोलन खत्म करने के फैसले की संभावना कम हो रही है। हरियाणा के किसान संगठन अब एमएसपी और दर्ज केसों को लेकर दबाव बढ़ा रहे हैं।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : तीन कृषि कानून ताे रद हो गए, लेकिन आंदोलन अभी खत्म होने की बजाय इसमें खींचतान बढ़ रही है। ऐसे में चार दिसंबर की संयुक्त किसान मोर्चे की बैठक में आंदोलन खत्म करने के फैसले की संभावना कम हो रही है। हरियाणा के किसान संगठन अब एमएसपी और दर्ज केसों को लेकर दबाव बढ़ा रहे हैं। अब तक चले आंदोलन को लेकर पंजाब के नेताओं पर आरोप भी लगाए जा रहे हैं।
कई नेताओं का तो यह कहना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए तो लग रहा है कि यह आंदोलन आढ़तियाें के इशारे पर लड़ा जा रहा था। न्यूनतम समर्थन मूल्य संघर्ष समिति से प्रदीप धनखड़ का कहना है कि अब तक के आंदोलन में रूप रेखा एक तरह से आढ़तियों के हाथों मे रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पंजाब से बलबीर राजेवाल हो, जगजीत डलेवाल या हरियाणा से गुरनाम चढूनी इन्होंने आढ़तियों की भूमिका की तरह ही काम किया।
अब एमएसपी गारंटी कानून की कमेटी में कलम किसान के हाथों मे होनी चाहिए। आढ़तियों के हाथ में नहीं। इसलिए खाप प्रधानों का साथ लिया जाएगा। सरकार संयुक्त किसान मोर्चा से पांच नाम लेकर जो कमेटी का आडंबर रचकर आंदोलन को खत्म करना चाहती है, उसे कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। अब मोर्चे के नेताओं में उस कमेटी के अंदर अपना नाम डलवाने के लिए जुगलबंदी शुरू हो रखी है। जाे लोग आढ़तियों से चंदा लेकर केवल तीन कानूनों की वापसी की लड़ाई लड़ते रहे, अगर अब उन्हीं का नाम कमेटी में शामिल किया जाता है तो किसानों के लिए दूसरा सबसे बड़ा धोखा होगा। किसानों की मांग है कि लागत पर लाभप्रद मूल्य को लेकर कोई कमेटी गठित न की जाए बल्कि सीधा किसानों को लागत पर लाभप्रद मूल्य पर खरीद गारंटी का कानून बनाया जाए।
वहीं हरियाणा संयुक्त किसान मोर्चा से जगबीर घसौला का कहना है कि हमने पहले भी लागत पर लाभप्रद मूल्य के साथ एमएसपी लागू करवाने की मांग को प्रमुखता से उठाया था, लेकिन उत्तर प्रदेश के एक किसान नेता के पक्ष में कुछ हरियाणा के विपक्षी पार्टियों के पदाधिकारी जो आज किसान का चोला पहने संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य बने बैठे हैं उनकी मूर्खता की वजह से उन्होंने भी हरियाणा के किसानों के हितों को न समझ कर हमारी ही बात का विरोध किया।
जबकि हमारी मांगों का पंजाब की 32 जत्थे बंदियों ने कभी भी विरोध नहीं किया। आज अगर पंजाब के किसान वापस चले जाते हैं तो हरियाणा के किसानों की मांगों को कौन पूरा करवाएगा, इसका जवाब उन लोगाें के पास नहीं है, जो केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए आंदोलन में शामिल हैं। हम सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से साझा कमेटी बनाए जाने के फैसले पर सहमत नहीं हैं।