Kisan Andolan: पहले की तरह नहीं आते फल-सब्जियों से भरे वाहन, खरीदकर लाते हैं किसान
बहादुरगढ़ के टीकरी बॉर्डर पर आठ महीने से किसान डटे हैं। पर अब पहले जैसा जोश नहीं है। अब तंबू में बैठे सब कुछ हासिल नहीं है। यह स्थिति तब है जब पहले के मुकाबले टीकरी बार्डर पर 30 फीसद तक ही संख्या रह चुकी है।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन में एक-एक करके हर पहलू फीका पड़ चुका है। कभी वह भी दिन थे जब आंदोलन के बीच रोजाना सब्जियों और फल से भरे वाहन आते थे। गांवों से ट्रैक्टर ट्रालियों में सब्जियों की बोरियां भरके लाई जाती थीं, लेकिन अब तस्वीर अलग है।
काफी किसानों को सुबह और शाम सब्जी मंडी का रुख करते देखा जा सकता है। वे सब्जियां खरीद कर लाते हैं, पकाते हैं, और खाते हैं। अब तंबू में बैठे सब कुछ हासिल नहीं है। यह स्थिति तब है जब पहले के मुकाबले टीकरी बार्डर पर 30 फीसद तक ही संख्या रह चुकी है। यह अलग बात है कि आंदोलनकारी नेता यह दावा करते हैं कि जैसे ही जरूरत होगी तो हरियाणा और पंजाब से भारी संख्या में किसान 24 घंटों के अंदर बार्डर पर पहुंच जाएंगे। लेकिन ऐसे दावों की हकीकत को सभा के मंच से रोजाना होने वाली अपील से समझा जा सकता है।