पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला, चढ़ूनी और राकेश टिकैत संयुक्त किसान मोर्चा के लिए बने सिरदर्द
संयुक्त किसान मोर्चे के नेता कहें कि वह किसी राजनीतिक शख्सियत को मंच नहीं साझा करने देंगे लेकिन ओमप्रकाश चौटाला धरनस्थलों पर गए तो वह जहां खड़े होकर बोलने लगेंगे वही मंच हो जाएगा और आंदोलनकारियों के पंडाल की सारी भीड़ चौटाला लूट लेंगे।
जगदीश त्रिपाठी। तीनों कृषि सुधार कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन को एक तरफ हरियाणा के ही किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (मान) के प्रदेश अध्यक्ष गुणीप्रकाश ने चुनौती दे दी है, वहीं आंदोलन के नेता खुद भी कई गुटों में बंट गए हैं। चौधरी ओमप्रकाश चौटाला धरनास्थलों पर पहुंचने लगे हैं। उनका जोरदार स्वागत हो रहा है। राकेश टिकैत उनका स्वागत कर रहे हैं, हालांकि आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं ने राजनीतिक दलों के नेताओं से दूरी बनाए रखने की बात कहते रहे हैं, लेकिन टिकैत उसकी उपेक्षा कर रहे हैं।
गुरनाम चढ़ूनी हरियाणा के किसान संगठनों की तरफ से संयुक्त मोर्चे में एकमात्र प्रतिनिधि थे। यदि आप योगेद्र यादव को किसान और उनको किसानों का प्रतिनिधि मानते हों तो बात अलग है। चढ़ूनी को संयुक्त मोर्चे ने चार दिन पहले एक सप्ताह के लिए इस आधार पर निलंबित कर दिया कि उन्होंने पंजाब के किसान संगठनों को सुझाव दिया था कि वे एकजुट होकर पंजाब विधानसभा के चुनाव लड़ें और वहां अपनी सरकार बनाएं। वे अपनी सरकार को देश भर में आदर्श के रूप में प्रस्तुत करें। ऐसा क्यों करना चाहिए, इसके लिए हरियाणा का उदाहरण देते हुए चढ़ूनी ने कारण भी गिनाए थे।
चढ़ूनी का कहना था कि किसानों के सहयोग से चौधरी भजनलाल की सरकार आई, उस सरकार में भी किसान पीड़ित हुए। भजनलाल का विरोध कर चौधरी बंसीलाल की सरकार बनाई। बंसीलाल की सरकार में भी किसानों का उत्पीड़न हुआ। बंसीलाल के बाद चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की सरकार बनवाई तो उस सरकार में भी किसानों पर गोलियां चलीं। संयुक्त किसान मोर्चे के किसी नेता ने चढ़ूनी के तर्कों पर तो कोई जवाब नहीं दिया, उन्हें निलंबित जरूर कर दिया। इससे हरियाणा के किसान संगठन क्षुब्ध हो गए हैं। उनका कहना है कि संयुक्त किसान मोर्चे के लोग हरियाणा के किसान नेताओं के सुझाव सिरे से खारिज कर देते हैं। यह नहीं चलेगा। उनका आरोप है कि किसान मोर्चा की बैठक में हरियाणा की तरफ से दिए जाने वाले सभी सुझावों को निरस्त कर दिया जाता है।
संयुक्त किसान मोर्चा एक ही तरह की गलती करने वाले तीन नेताओं को दंडित करने के लिए अलग-अलग मापदंड अपनाता है। भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने उत्तर प्रदेश में भारतीय किसान यूनियन की तरफ से उम्मीदवार उतारे जाने की घोषणा की तो उस बयान को वापस लेने के लिए की बात कहकर माफ कर दिया गया। दो अन्य किसान नेताओं युद्धवीर सिंह सहरावत और योगेंद्र यादव ने भाजपा नेता रहे निर्दलीय विधायक विधायक सोमवीर सांगवान को योजनाबद्ध रूप से संयुक्त किसान मोर्चे में शामिल करने के लिए बुलाया। इसका विरोध हुआ। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चे ने दोनों को निलंबित करने के लिए कमेटी बनाने की बात कह दी। उनका निलंबन आज तक नहीं हुआ।
विचारणीय है कि हरियाणा से जुड़े आंदोलनकारी अब कुंडली बार्डर पर जाने से भी परहेज करने लगे हैं और मध्य हरियाणा में धरने पर जोर दे रहे हैं। टीकरी बार्डर पर जरूर हरियाणा के संगठनों से जुड़े लोग जरूर भागीदारी कर रहे हैं। दूसरी तरफ चढ़ूनी और टिकैत मुखर होकर भले ही संयुक्त किसान मोर्चे पर काबिज पंजाब के नेताओं का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन पंजाब के संगठनों के नेताओं को महत्वहीन करने में लग गए हैं।
दिलचस्प यह भी है कि राकेश टिकैत और चढ़ूनी में आपस में भी टकराव है। आंदोलनकारियों को भी अब लगने लगा है कि उनका टेंट उखड़ सकता है। इसके दो कारण हैं। पहला तो गुणीप्रकाश के साथ बढ़ी संख्या में किसान भी आंदोलनकारियों के विरोध में आ रहे हैं तो कुंडली बार्डर पर आंदोलनकारियों द्वारा मार्ग अवरुदध् करने के विरोध में हेमंत नांदल के नेतृत्व में वहां के आसपास के किसान, ग्रामीण और उद्यमी लामबंद हैं। टीकरी बार्डर पर रास्ता खुलवाने के लिए वहां के उद्यमी गृह मंत्री अमित शाह से मिलने की योजना बना रहे हैं।
दूसरा कारण यह है कि भले ही संयुक्त किसान मोर्चे के नेता कहें कि वह किसी राजनीतिक शख्सियत को मंच नहीं साझा करने देंगे, लेकिन ओमप्रकाश चौटाला धरनस्थलों पर गए तो वह जहां खड़े होकर बोलने लगेंगे वही मंच हो जाएगा और आंदोलनकारियों के पंडाल की सारी भीड़ चौटाला लूट लेंगे। यदि ऐसी स्थिति में पंजाब के संगठनों के नेता ओमप्रकाश चौटाला का विरोध करने का साहस करते हैं तो वहां जुटी भीड़ उनकी दुर्गति भी कर सकती है। इसलिए चौटाला को सम्मान देने के अलावा उनके सामने कोई विकल्प नहीं होगा। चौटाला, चढ़ूनी और टिकैत को कैसे हाशिए पर करें, यह पंजाब के नेताओं और योगेंद्र यादव जैसे उनके साथियों को नहीं सूझ रहा है।