Kisan Andolan: बंद रास्तों के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं मान रहे आंदोलनकारी, इधर आम आदमी परेशान
सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रास्ते खोलने की कोशिश का हवाला दिया जा रहा है। फिलहाल पुलिस प्रशासन के अधिकारी किसानों से बातचीत तो कर रहे हैं लेकिन सहमति के साथ रास्ते खुल पाएंगे यह संभावना कम ही नजर आ रही है।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़: तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के बीच किसानों द्वारा रास्ते बंद होने के लिए दिल्ली पुलिस को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद आम आदमी भी कई तरह के सवाल उठा रहा है। आंदोलनकारियों के इस तर्क को राजनीति से प्रेरित और एक तरह से कुतर्क करार दिया जा रहा है कि रास्ते उन्होंने बंद नहीं कर रखे। आम आदमी यह सवाल कर रहा है कि अगर आंदोलनकारियों ने रास्ते बंद नहीं कर रखे तो फिर टीकरी बार्डर पर 15 किलोमीटर दूर तक सड़क पर किसका कब्जा है।
सिर्फ बार्डरों पर बैरिकेड होने से ही रास्ता बंद नहीं है, बल्कि 15 किलोमीटर दूर तक सड़क की एक लेन पूरी तरह बंद करना और उसमें से भी आधे हिस्से में दूसरी लेन पर भी आंदोलनकारियों का कब्जा होने से यह हर किसी को नजर आ सकता है कि रास्ते किसकी वजह से ही बंद है । वैसे भी अगर किसान सड़क पर न बैठे हो तो फिर बार्डर बंद करने की जरूरत ही क्या है, मगर जिस तरह से दूसरे मामलों में किसान किसी की परवाह नहीं कर रहे हैं। इसी तरह दिल्ली के रास्ते खोलने के मामले पर भी वे राजनीतिक दांव खेल रहे हैं। ताकि सीधे तौर पर जनता की नजर में खलनायक भी न बन पाए और रास्ते भी न खोलने पड़े।
इधर, सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रास्ते खोलने की कोशिश का हवाला दिया जा रहा है। फिलहाल पुलिस प्रशासन के अधिकारी किसानों से बातचीत तो कर रहे हैं लेकिन सहमति के साथ रास्ते खुल पाएंगे यह संभावना कम ही नजर आ रही है। फिलहाल तो सभी की नजर 14 अक्टूबर को बहादुरगढ़ में होने वाली बैठक पर टिकी हुई है। इस बैठक में सरकार की ओर से गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव शामिल होंगे और दूसरी तरफ से किसान मोर्चा के नेताओं को आमंत्रित किया गया है।
संयुक्त मोर्चा के नेता इस बैठक में शामिल होंगे या नहीं यह तो अभी तय नहीं है। पिछले दिनों सिंघु बार्डर पर सरकार की हाई पावर कमेटी की ओर से बुलाए जाने के बावजूद संयुक्त मोर्चा के नेता उस बैठक में शामिल नहीं हुए थे। उधर, सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी 20 अक्टूबर को इस मामले पर सुनवाई की जानी है। ऐसे में आम जनता के साथ-साथ सरकार को भी यह इंतजार है कि कोर्ट की ओर से ही बार्डर को खोलने का आदेश जारी किया जाए तो वह कोई कदम उठाए।