Kargil Vijay Diwas: 11 दुश्मनों को मौत के घाट उतार 21 की उम्र में मातृभूमि पर बलिदान हो गए पवित्र सिंह

कारगिल जंग में 9 जुलाई 1999 को हिसार के पवित्र सिंह शहीद हो गए थे। दोस्त को चिट्ठी लिखी थी कि घर वालों को कहना वह लड़ाई में नहीं हैं। इसलिए चिंता कोई बात नहीं। लेकिन चिट्ठी से पहले तिरंगे में लिपटा पवित्र की पार्थिव देह गांव पहुंची।

By Umesh KdhyaniEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 11:40 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 11:40 AM (IST)
Kargil Vijay Diwas: 11 दुश्मनों को मौत के घाट उतार 21 की उम्र में मातृभूमि पर बलिदान हो गए पवित्र सिंह
सरकार ने गांव के स्कूल का नाम शहीद के नाम पर करने का वादा किया। यह अब भी अधूरा है।

सुनील मान, नारनौंद (हिसार)। 9 जुलाई 1999 का वह दिन लोगों को हमेशा याद रहेगा। जब कारगिल युद्ध में हिसार जिले के मिलकपुर गांव के लाडले पवित्र सिंह ने मात्र 21 वर्ष की छोटी आयु में ही देश के लिए अपनी शहादत दे डाली और गांव के नाम को इतिहास के पन्नो में संजो दिया।

शहादत देते हुए भी यह बहादुर सैनिक 11 दुश्मनों को मौत के घाट उतार गया और अपने फौजी पिता किताब सिंह और माता सुजानी देवी की आंखों में गर्व के आंसू भर गया। देश के लिए बलिदान देकर अपना नाम हमेशा के लिए अमर कर गया। जब वह शहीद हुआ तो सरकार व प्रशासन की तरफ से ऐलान किया गया था कि गांव के सरकारी स्कूल का नाम उनके नाम पर रखा जाएगा लेकिन सालों बीत गए अभी तक भी स्कूल का नाम उनके नाम पर नहीं रखा गया है। इसको लेकर शहीद के परिजन काफी बार अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं। शायद सरकार उनके बलिदान को भूल चुकी है। शहीद के परिजन हमेशा आंखों में यह सपना लेकर सोते हैं कि एक ना एक दिन स्कूल का नाम उनके नाम पर जरूर रखा जाएगा।

बहादुरी का एक किस्सा ये भी

उसकी निडरता व बहादुरी के किस्सों में से एक किस्सा यह भी है कि भयंकर लड़ाई के दौरान वह गांव में अपने दोस्त के पास चिठ्ठी लिखता है कि धूप में बैठा चिट्ठी लिख रहा हूं। घर वालों को कहना कि मैं लड़ाई में नहीं हूं। इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। उसके बाद अनहोनी की अपनी चाल देखिए कि शहीद सैनिक पवित्र कुमार का तिरंगे में लिपटा शव गांव में पहले आता है और उस द्वारा दोस्त के पास लिखी चिठ्ठी बाद में पहुंचती है।

वादे अधूरे, स्कूल का नामकरण नहीं हाे पाया

शहीद के चाचा महा सिंह श्योराण ने बताया कि माना कि तात्कालीन सरकारों ने शहीद के परिजनों को आर्थिक सहायता तो प्रदान की, लेकिन उसकी अंत्येष्टि के समय सरकार के एक नुमाइंदे द्वारा गांव के स्कूल का नाम शहीद के नाम करने की घोषणा अब तक अधूरी पड़ी है। उन्होंने मांग की कि अगर सरकार वास्तव में शहीदों के सम्मान को प्राथमिकता देती है। तो उसके गांव में स्थापित सरकारी हाई स्कूल को पूर्व घोषणानुसार शहीद पवित्र कुमार का नाम दे। तब जाकर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी और आने वाली पीढ़ियों उससे प्रेरणा लेती रहेंगी।

मां को बेटे की शहादत पर गर्व, यह है आखिरी इच्छा

शहीद की मां सुजानी देवी ने बताया कि उनका बेटा देश के लिए शहीद हुआ था। उनको इस बात पर गर्व है। लेकिन स्कूल का नाम उनके नाम पर रखा जाना ही मेरी आखिरी इच्छा है। इसके लिए काफी बार अधिकारियों से गुहार लगा चुकी हूं। सरकार गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित तो करती है। लेकिन असली सम्मान उस दिन होगा जिस दिन गांव के सरकारी स्कूल का नाम मेरे शहीद के बेटे के नाम पर रखा जाएगा।

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