Kargil Vijay Divas: गोलियों और पत्थरों का सामना कर टाइगर हिल पर फहराया था तिरंगा, खाने पड़े थे ग्लूकोज और बर्फ
कारगिल युद्ध में झज्जर के जोरावर सिंह भी थे। वह 18 ग्रेनेडियर के हवलदार थे। उनकी टुकड़ी ने पहले पोलिंग नाम की पहाड़ी को फतेह किया। इसके बाद टाइगर हिल फतह करने का जिम्मा दिया गया इस दौरान दुश्मनों की गोलियों और पत्थरों का सामना करना पड़ा।
दीपक शर्मा , झज्जर। जब साथियों की कुर्बानी व घायलावस्था में टाइगर हिल पर सीना चौड़ा करके तिरंगा झंडा फहराया तो महसूस हुआ कि जिंदगी में देश के लिए कुछ किया है। मानो युद्ध के दौरान लगे सभी घाव भर गए हैं। इसके बाद हर किसी ने विजयी जवानों का स्वागत किया। लेकिन, इससे पहले जवानों ने युद्ध में दर्दभरे लम्हों को समेटकर लड़ाई को जीता भी।
कारगिल युद्ध में दुश्मनों को धूल चटाने वाली भारतीय सेना की 18 ग्रेनेडियर के हवलदार गांव पलड़ा निवासी जोरावर सिंह भी टाइगर हिल पर झंडा फहराने वाले जवानों में शामिल थे। जोरावर बताते हैं कि सेना ने लंबी लड़ाई के साथ-साथ काफी सूझबूझ दिखाते हुए जीत हासिल की। लड़ाई के दौरान कई साथियों को खोया और खुद भी घायल हुए, लेकिन रुके नहीं और आगे बढ़ते रहे। जोरावर सिंह 18 ग्रेनेडियर में हवलदार के पद पर तैनात थे।
ग्लूकोज और बर्फ खाकर चलाया काम
जोरावर सिंह बताते हैं कि कारगिल की जब लड़ाई शुरू हुई तो उस समय उनकी ड्यूटी पठानकोट में थी। उनका लक्ष्य पोलिंग नामक पहाड़ी को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराना था। उनकी बटालियन ने पोलिंग की पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू की। इस दौरान उनका सूखा खाना खत्म हो गया। ग्लूकोज व बर्फ खाकर काम चलाना पड़ा। बर्फ व ग्लूकोज के सहारे ही वे पोलिंग की पहाड़ी पर चढ़ाई करते रहे। ऊपर से फायरिंग भी हो रही थी। इससे बचने के लिए जवान पत्थरों के पीछे छिपकर आगे बढ़ रहे थे।
साथ बैठा जवान हो गया शहीद
चढ़ाई के दौरान उनकी टुकड़ी एक पत्थर के पीछे छिपी थी। इसी दौरान साथ बैठे एक जवान को गोली लग गई, जिससे वह शहीद हो गया। साथ ही सीओ व एक अन्य जवान भी घायल हो गए। अपने साथ बैठे जवान को शहीद होने के बाद भी उन्होंने खुद को सुरक्षित रखते हुए लड़ाई लड़ी। सीओ ने सेना की मदद मांगी और दूसरी पार्टी पहुंचने के बाद पोलिंग की पहाड़ी पर फतह हासिल की। जब पोलिंग की पहाड़ी पर हिंदुस्तान का कब्जा होने के बाद वापस लौटी तो खुद प्रधान मंत्री ने हौसला बढ़ाया और बधाई दी।
विजय के बाद टाइगर हिल फतह करने निकले
इसके बाद उनकी बटालियन को टाइगर हिल पर चढ़ाई का टास्क मिला। टाइगर हिल पर सामने से पाकिस्तानी सेना के साथ लड़ाई छिड़ गई। उनकी बटालियन ने टाइगर हिल पर पीछे से पाकिस्तान की तरफ से चढ़ने का निर्णय लिया। ताकि पाकिस्तानी सेना को पता भी न चले। टाइगर हिल पर चढ़ाई के बिना उनसे लड़ना आसान नहीं था। लंबी चढ़ाई के बाद जब वे टाइगर हिल पर पहुंचे तो वहां भारी संख्या में पाकिस्तानी सैनिक थे। चढ़ाई के दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा डाले गए पत्थर भी घायल कर रहे थे। उन्हें भी कई पत्थर लगे, जिस कारण वे घायल हो गए।
जवान को गोली मारने के बाद अमानवीय व्यवहार
बटालियन में आगे चल रहा एक जवान जब टाइगर हिल पर ऊपर पहुंचा तो पाकिस्तानी सेना ने उसे गोली मार दी। इसके बाद पाकिस्तानी सेना वहां पर आई और गोली खाने वाले जवान को लात भी मारी ताकि पता लग सके कि वह मर गया या नहीं। जब वह जवान नहीं हिला तो पाकिस्तानी सैनिक वापस लौट गए। जोरावर सिंह ने बताया कि वह तीसरे नंबर पर थे, इसके बाद उन्होंने घायल जवान को वहां से नीचे उतारा और पत्थर के पीछे छिपाया। इसके बाद पूरी बटालियन ने रणनीति के तहत काम किया और टाइगर हिल पर तिरंगा झंडा फहरा दिया।
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