बारिश के मौसम में कपास में भर गया है पानी, किसान यह करें उपाय तो बचा सकते हैं फसल

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानी भी चिंतित हैं। इसको लकर कुलपति प्रोफेसर बीआर काम्बोज ने प्रदेश के किसानों को सलाह देते हुए कहा कि इस मानसून के समय बारिश के चलते कपास की फसल में जल प्रबंधन बहुत जरूरी है

By Manoj KumarEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 11:21 AM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 11:21 AM (IST)
बारिश के मौसम में कपास में भर गया है पानी, किसान यह करें उपाय तो बचा सकते हैं फसल
एचएयू के विज्ञानियों ने पानी भरने पर कपास की फसल को बचाने के उपाय सुझाए हैं

जागरण संवाददाता, हिसार। इन दिनों अत्यधिक बारिश होने से कई स्थानों पर कपास की फसल में पानी भर गया है। इसको लेकर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानी भी चिंतित हैं। इसको लकर कुलपति प्रोफेसर बीआर काम्बोज ने प्रदेश के किसानों को सलाह देते हुए कहा कि इस मानसून के समय बारिश के चलते कपास की फसल में जल प्रबंधन बहुत जरूरी है, नहीं तो फसल खराब होने का अंदेशा है। उन्होंने कहा कि अधिक बारिश के बाद फसल से पानी की निकासी अवश्य करनी चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि अगस्त माह में जिन किसानों ने फसल में खाद नहीं डाली है वे जमीन के बत्तर आने पर एक बैग डीएपी, एक बैग यूरिया, आधा बैग पोटाश व 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट 21 फीसद वाली प्रति एकड़ के हिसाब से डाल दें ताकि फसल अच्छी खड़ी रहे।

किसान यह खाद करें प्रयोग

कुलपति ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि रेतीली मिट्टी में खाद की मात्रा दो बार डालें। ड्रिप विधि से लगाई गई फसल में हर सप्ताह ड्रिप के माध्यम से घुनलशील खाद्य जिसमें दो पैैकेट 12 : 6 :0, तीन पैकेट 13 : 0 : 45 के, 6 किलो यूरिया व सौ ग्राम जिंक प्रति एकड़ के हिसाब से 10 हफ्तों में अवश्य डालें। अगर रेतीली मिट्टी में मैगनीशियम में लक्षण हों तो आधा प्रतिशत मैगनीशियम सल्फेट का छिडक़ाव अवश्य करें। किसान अपनी फसल में विश्वविद्यालय की ओर से सिफारिश किए गए कीटनाशकों व उर्वरकों का ही प्रयोग करें ताकि फसल पर विपरीत प्रभाव न पड़े। रेतीली जमीन में नमी एवं पोषक तत्वों पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है। गत वर्ष किसानों द्वारा बिना कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिश के फसल पर कीटनाशकों के मिश्रणों का प्रयोग किया गया, जिससे कपास की फसल में नमी एवं पौषण के चलते समस्या उत्पन हुई थी। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विभाग द्वारा समय-समय पर जारी मौसम पूर्वानुमान को ध्यान में रखकर ही कीटनाशकों व फफूंदनाशकों का प्रयोग करें।

साप्ताहिक अंतराल पर करें फसल की निगरानी

अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने सलाह देते हुए कहा कि फसल में रस चूसने वाले कीटों की निगरानी के लिए प्रति एकड़ 20 प्रतिशत पौधों की तीन पत्तियों (एक ऊपर, एक मध्यम एवं एक निचले भाग से)पर सफेद मक्खी, हरा तेला एवं थ्रिप्स(चूरड़ा) की गिनती साप्ताहिक अंतराल पर करते रहें। अगर फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला व थ्रिप्स आर्थिक कगार से ऊपर हैं तो विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश किए गए कीटनाशकों का ही प्रयोग करें। फसल में थ्रिप्स का प्रकोप होने पर 250 से 350 मिलीलीटर डाईमाथेएट(रोगोर) 30 ईसी या 300 से 400 मिलीलीटर आक्सीडेमेटोन मिथाइल (मेटासिस्टोक्स) 25 ईसी को 150 से 175 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें।

विभिन्न रोगों में यह करें उपचार

जीवाणु अंगमारी रोग के लिए 6 से 8 स्ट्रेप्टोसाइक्लीन और 600 से 800 ग्रामीण कॉपर ऑक्सिक्लोराइड को 150 से 200 लीटर पानी में मिलकार प्रति एकड़ 15 से 20 दिन के अंतराल पर दो से तीन छिडक़ाव करें। जड़ गलन बीमारी से सूखे हुए पौधों को खेत से उखाड़ कर जमीन में दबा दें। इसके अलावा रोग प्रभावित पौधों के आसपास स्वस्थ पौधों में एक मीटर तक कार्बेडाजिम दो ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर 100 से 200 मिलीलीटर प्रति पौधा जड़ों में डालें।

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