पिछले सात वर्षों में 45 फीसद घटी घोड़ों की संख्या, इस समस्या को दूर करेगा कृत्रिम गर्भाधान

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) ने अश्वों की विभिन्न नस्लों के सीमन को हिमीकरण करने की तकनीक को काफी वर्ष पहले से मानकीकरण किया था और उसका उपयोग राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार एवं बीकानेर के फार्म एवं किसानों के अश्वों में सफलतापूर्ण हो रहा है।

By Naveen DalalEdited By: Publish:Sun, 28 Nov 2021 02:50 PM (IST) Updated:Sun, 28 Nov 2021 02:50 PM (IST)
पिछले सात वर्षों में 45 फीसद घटी घोड़ों की संख्या, इस समस्या को दूर करेगा कृत्रिम गर्भाधान
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने घोड़ों के कृत्रिम गर्भधान के लिए किया पुणे के अश्व पालक के साथ करार

हिसार, जागरण संवाददाता। अश्वों की संख्या दिन प्रतिदिन काफी कम हो रही है। पिछली पशु गणना 2019 के अनुसार घोड़ों की संख्या पशु गणना 2012 की तुलना में करीबन 45 प्रतिशत कम हुई है। इसलिए अश्वों की संख्या को संरक्षित रखने के लिए कृत्रिम गर्भाधान विधि से उनका संरक्षण ठीक से किया जा सकता है। देश में अच्छी नस्ल के घोड़ों की काफी कमी है और उनकी कीमत भी बहुत अधिक है। अच्छी नस्ल के घोड़ों से गर्भाधान कराने के लिए प्रजनन काल में अत्यधिक घोडियां आती है जिससे घोड़ा थकान महसूस करता है और घोडियाें में गर्भाधान दर काफी कम हो जाता है। जिससे अश्व पालकों को काफी अधिक नुकसान होता है।

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने किया पुणे के अश्व पालक के साथ करार

इससे बचने के लिए अगर उच्च कोटि के घोड़े का सीमन एकत्रित करके उसको हिमीकरण कर लिया जाए तो उस एक बार के एकत्रित सीमन से 10-12 घोड़ियों में कभी भी कृत्रिम गर्भधान करवाया जा सकता है। इस विधि से घोड़ों के सीमन को गैर प्रजनन काल में भी सीमन को हिमीकृत किया जा सकता है। इस तकनीकि के व्यवसायीकरण के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने महाराष्ट्र स्थित पुणे के अश्व पालक रणजीत दिलीप खेर के साथ अनुबंध किया है।

एनआरसीई के हिसार और बीकानेर केंद्र में हो रहा है प्रयोग

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) ने अश्वों की विभिन्न नस्लों के सीमन को हिमीकरण करने की तकनीक को काफी वर्ष पहले से मानकीकरण किया था और उसका उपयोग राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार एवं बीकानेर के फार्म एवं किसानों के अश्वों में सफलतापूर्ण हो रहा है। इन दो तकनीकों के विकास (सीमन हिमीकरण, कृत्रिम योनि) का शोध करने में मुख्य योगदान डा. त्रिमुला राव तालुरी, डा. आरए लेघा एवं डा यशपाल का रहा है। इस अवसर पर राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डा. यशपाल, डा एससी मेहता, डा आरए लेघा एवं डा. आकृति उपस्थित रहीं। इस अवसर पर तकनीक क्रेता की टीम को तीन दिन का प्रशिक्षण भी दिया गया। अगर कोई इन तकनीक के लेने में इच्छुक है तो निदेशक, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र से सम्पर्क कर सकता है।

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