बरोदा उपचुनाव के इर्द-गिर्द घूमी राजनीति, चुनौती के पीछे है हुड्डा की चिंता, पढ़ेें और भी रोचक खबरें

हरियाणा की राजनीति इन दिनों बरोदा उपचुनाव के इर्द-गिर्द घूम रही है। हर दल में इसी की चर्चा है। आइए सफेद सच कॉलम के जरिये नजर डालते हैं कुछ रोचक घटनाक्रमों पर।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Tue, 07 Jul 2020 10:34 AM (IST) Updated:Tue, 07 Jul 2020 10:34 AM (IST)
बरोदा उपचुनाव के इर्द-गिर्द घूमी राजनीति, चुनौती के पीछे है हुड्डा की चिंता, पढ़ेें और भी रोचक खबरें
बरोदा उपचुनाव के इर्द-गिर्द घूमी राजनीति, चुनौती के पीछे है हुड्डा की चिंता, पढ़ेें और भी रोचक खबरें

हिसार [जगदीश त्रिपाठी]। हर तरफ बरोदा उपचुनाव की चर्चा है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा चैलेंज कर रहे हैं कि वहां से मुख्यमंत्री मनोहर लाल मैदान में आ जाएं। हुड्डा मुख्यमंत्री के मुकाबले खुद उतरने की बात कहते हुए दावा करते हैं कि फैसला हो जाएगा कि कौन बेहतर है। दरअसल, इस चुनौती की पीछे उनकी यह चिंता है कि कहीं उनका बरोदा जैसा मजबूत गढ़ ढह न जाए।

जाट बहुल होने के कारण ही बरोदा विधानसभा क्षेत्र पहले इनेलो और बाद में कांग्रेस के हुड्डा खेमे का गढ़ माना जाता रहा। इस बार मुख्यमंत्री मतदाताओं से कह रहे हैं कि तय कर लीजिए कि सत्ता के साथ रहना है या दूर रहना है। अब बरोदा वाले मनोहर की छतरी के नीचे आ जाएंगे तो कांग्रेस का एक विधायक कम हो जाएगा और गढ़ भी ढह जाएगा। यदि हुड्डा को मुख्यमंत्री के खिलाफ लड़ना होता तो विधानसभा चुनाव में करनाल से लड़ लेते।

ब्रेक के बाद, हम हो सकते हैं कामयाब

बरोदा उपचुनाव जीतेगा कौन, हारेगा कौन यह अलग बात है, लेकिन चुनाव तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला बने रहेंगे। अब अध्यक्ष उपचुनाव के बाद ही तय होगा। यह केंद्रीय राज्यमंत्री कृष्णपाल गुर्जर का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि कई वरिष्ठ नेताओं की बधाई मिलने के बाद अचानक उनके अध्यक्ष बनने की घोषणा पर ब्रेक लग गया। वैसे यह कोई नई बात नहीं। लगभग एक दशक पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के विरोधी खेमे के एक सांसद का नाम तय हो गया। केंद्रीय नेताओं ने उन्हेंं बधाई दे दी। उन्होंने करनाल फोन कर अपने समर्थकों को बताया। लड्डू बांटे जाने लगे। उधर, हुड्डा ने दिल्ली दरबार में बैठे लोगों को फोन लगाया और फैसला बदल गया। सो, ब्रेक के बाद इस बार भाजपा में भी फैसला बदल सकता है। अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल नेताओं को इस बात का पूरा भरोसा है।

कमाल का आइडिया

यह तो तय है कि न तो बरोदा से मुख्यमंत्री मनोहर लाल उतरेंगे और न ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा। उतरेगा कौन? सवाल यह है। बीते चुनाव में पहलवान योगेश्वर दत्त भाजपा से मैदान में थे, लेकिन उन्हेंं बुजुर्ग कांग्रेसी श्रीकृष्ण हुड्डा् ने मात दे दी, लेकिन श्रीकृष्ण का कुछ दिन पहले निधन हो गया। कांग्रेस अभी तय नहीं कर पाई है कि इस बार किसे उतारा जाए।

भाजपा भी पक्का नहीं कर पा रही कि योगेश्वर को उतारें या किसी और को। वैसे बरोदा के एक बुजुर्ग की बात दोनों को मान लेनी चाहिए। योगेश्वर की पत्नी शीतल को संयुक्त प्रत्याशी बना दें। वह दिल्ली के कांग्रेस नेता जयभगवान शर्मा की बेटी हैं। पिता कांग्रेसी हैं तो वह कांग्रेस की भी हुईं और पति भाजपाई तो भाजपा की भी। उन बुजुर्ग का आइडिया बुरा तो नहीं है, पर चुनाव निशान हाथ होगा या कमल, यह पेच कैसे सुलझेगा, सोचना होगा।

निश्चिंत हो गए उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला

कृष्णपाल गुर्जर के भाजपा अध्यक्ष न बन पाने से प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटला निश्चिंत हो गए हैं। दुष्यंत की चिंता यह थी कि गुर्जर के अध्यक्ष बनने से केंद्र में उनके खाली हुए मंत्री पद पर पूर्व केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह अपने बेटे बृजेंद्र सिंह को गुर्जर की जगह मंत्री बनवा सकते हैं। बीरेंद्र सिंह का तर्क भी ठोस था कि बरोदा उपचुनाव जीतने के लिए जाटों का समर्थन जरूरी है, पार्टी बृजेंद्र को मंत्री बना देगी तो उसे बरोदा के जाटों का समर्थन मिल जाएगा। दुष्यंत की दिक्कत यह है कि वह बीरेंद्र सिंह की पारंपरिक विधानसभा सीट उचाना से ही उनकी पत्नी को ही हराकर जीते हैं। इसके पहले लोकसभा चुनाव में उन्हेंं हिसार से बृजेंद्र सिंह ने ही हराया था। फिलवक्त दुष्यंत मजबूत स्थिति में हैं, क्योंकि वह उप मुख्यमंत्री हैं। दूसरी तरफ बीरेंद्र और उनकी पत्नी के पास कुछ नहीं। बेटा केवल सांसद है।

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