किसान आंदोलन में हरियाणा के किसानों की भागीदारी हुई कम, ट्रैक्टर-ट्रालियों से आवागमन भी हुआ कम
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में पंजाब ही नहीं हरियाणा के किसानों की संख्या भी कम हो गई है। पंजाब के किसान तो हर रोज आते-जाते रहते हैं लेकिन हरियाणा के किसानों की संख्या अब बहुत ही कम हो गई है।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़: आठ माह से अधिक समय से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में पंजाब ही नहीं हरियाणा के किसानों की संख्या भी कम हो गई है। पंजाब के किसान तो हर रोज आते-जाते रहते हैं लेकिन हरियाणा के किसानों की संख्या अब बहुत ही कम हो गई है।
यहां पर हरियाणा के किसानों की भागीदारी अब न के बराबर ही हो गई है। आंदोलन स्थल पर कुछ एक गांवों के ही तंबू रह गए हैं। ट्रैक्टर-ट्रालियों से हरियाणा के किसानों का हर रोज होने वाला आवागमन भी अब कम हो गया है। अब सिर्फ रविवार के दिन ही कुछ एक गांवों के चार-पांच किसान ही आंदोलन में भाग लेने आते हैं।
एक समय वह भी था जब आंदोलन शुरू हुआ तो हरियाणा के विभिन्न गांवों से सैकड़ों-हजारों की संख्या में किसान यहां पर आते थे। महिलाओं की संख्या भी काफी अधिक रहती थी। कई गांवों में तो पांच-छह ट्रैक्टर-ट्रालियों में तो दूर के गांवों से जीप, कार व बसों से किसान यहां पहुंचकर आंदोलन को समर्थन देते थे। मगर 26 जनवरी के बाद से ही हरियाणा के किसानों की भागीदारी कम होती जा रही है। अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि हरियाणा के कुछ एक गांवों को छोड़कर अन्य गांवों के प्रतिनिधि अपने तंबू भी समेटकर यहां से चले गए हैं।
पंजाब के किसान नेता हरियाणा के किसान नेताओं पर भागीदारी बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। भाकियू घासीराम नैन के अध्यक्ष जोगेंद्र नैन को निलंबित भी इसलिए किया गया है कि आंदोलन में उनकी ओर से भागीदारी नहीं बढ़ाई जा रही थी। हालांकि वो इसे गलत करार दे रहे हैं। उधर, हरियाणा में खापों ने भी आंदोलन को खूब समर्थन दिया था लेकिन अब यहां पर खापें भी कम ही दिखाई दे रही हैं। कुछ एक खापों के ही तंबू हैं और उनके काफी कम संख्या में खाप प्रतिनिधि यहां रहते हैं। खाप प्रतिनिधियों का आवागमन भी काफी कम हो गया है।