भिवानी में मिले हड़प्पा काल के साक्ष्य, तिगड़ाना में होती थी खेती, शोध में हुए कई खुलासे, देखें तस्वीरें

तिगड़ाना खेड़े में चल रहे खोदाई कार्य के दौरान लिए सेंपल की बीरबल साहनी इंस्ट्टीयूट लखनऊ लैब में जांच के बाद यह रिपोर्ट सामने आई है। यहां पर हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय जांट पाली की टीम उत्खनन कार्य कर रही है।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Wed, 29 Sep 2021 07:05 AM (IST) Updated:Wed, 29 Sep 2021 08:38 AM (IST)
भिवानी में मिले हड़प्पा काल के साक्ष्य, तिगड़ाना में होती थी खेती, शोध में हुए कई खुलासे, देखें तस्वीरें
भिवानी के तिगड़ाना खेड़े मेंं मिले हड़प्पाकालीन मिट्टी के मनके।

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सुरेश मेहरा, भिवानी। हड़प्पाकालीन सभ्यता को संजोय भिवानी के गांव तिगड़ाना में पांच हजार साल पहले भी गेहूं, जौ, ज्वार, बाजरा और दालों की खेती होती थी। तिगड़ाना खेड़े में चल रहे खोदाई कार्य के दौरान लिए सेंपल की बीरबल साहनी इंस्ट्टीयूट लखनऊ लैब में जांच के बाद यह रिपोर्ट सामने आई है। यहां पर हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय जांट पाली की टीम उत्खनन कार्य कर रही है। डेक्कन कालेज पूना के विद्यार्थियों के अलावा इस कार्य में केरल, हिमाचल, असम, हरियाणा, यूपी, महाराष्ट्र आदि राज्यों के विद्यार्थी लगे हैं।

कच्ची ईटों के मकान, चित्रकारी बने मिट्टी के बर्तन मिले

तिगड़ाना खेड़े में चल रहे उत्खनन के दौरान यहां पर कच्ची इंटों के मकान मिले हैं। एक मकान में छोटे दो कमरे, आंगन, एक बड़ा कमरा, गैलरी के साथ रसोई आदि मिले हैं। 10, 20 और 34 सेंटीमीटर की ईट मिली हैं। यहां पक्की मिट्टी के बर्तनों में मुख्य रूप से थाली, कटोरा, मटका, बेला व अन्य रसोई के बर्तन भी मिले हैं। इन बर्तनों पर बहुत ही आकर्षक चित्रकारी बनी है। बर्तनों पर धान के पौधे की पेंटिंग के भी प्रमाण मिले है।

भिवानी के तिगड़ाना खेड़े में मिले हड़प्पाकालीन बर्तनों के अवशेषों पर शोध करते शोधार्थी।

तांबा कीमती पत्थर के आभूषण और मनके बने हैं पुरानी सभ्यता के गवाह

यहां तांबा धातु, अर्ध कीमती पत्थर जैसे अगेट, कारनेलियन, सोडालाइट, स्टेटाइट, फियांस आदि मिले हैं। इनके मनकों से आभूषण, लोकेट बनते थे। कारनेलियन गुजरात के खंभात खाड़ी में मिलता है। इससे यह साबित होता है कि यहां के लोगों का गुजरात से भी व्यापार होता था। शंख की चूड़ियां और मनके, मिट्टी की चूड़िया मनके, पकी मिट्टी की बनी पशु आकृति, आकृतियों में बैल की आकृति सबसे ज्यादा मिली हैं। इससे यह साबित होता है यहां बैल बहुतायत में होता था। खिलौनों के रूप में पकी मिट्टी की बनी बैलगाड़ी भी मिली हैं।

शोध में और भी चीजों का होगा खुलासा

खोदाई कार्य में जुटी टीम के अधिकारियों का कहना है कि यहां मिली धातुओं पर शोध किया जाएगा। यह पता लगाया जाएगा कि इस क्षेत्र में तांबा कहां से आता था। पीत्तल कहां से आता था। इसके अलावा अर्ध कीमती पत्थरों आदि को लेकर शोध किया जाएगा। इसमें यह पता लगाया जाएगा यहां से कौन सी चीजों का आयात और निर्यात होता था। शोध में और भी चीजों के बारे में खुलासा होगा। यहां मिले मिट्टी के बर्तनों से पता लगाया जाएगा कि पांच हजार साल पहले यहां के वासी इन बर्तनों में कौन से खाद्य पदार्थों का प्रयोग करते थे। इसके अलावा यहां के पशुधन के बारे में भी शोध किया जाएगा। यहां किस प्रकार के जंगली जानवर होते थे। इस पर भी शोध किया जाएगा।

भिवानी के तिगड़ाना खेड़े मेंं खोदाई में मिली हड़प्पाकालीन मुहर।

पांच हजार साल पुरानी मिली मुहर

यह मुहर स्टेटाइट की बनी है। इस पर चार अक्षर बने हैं। यह कौनसी लिपी है यह शोध का विषय है। हड़प्पन लिपी के अभी तक विभिन्न खोदाई कार्य में 500 से ज्यादा अक्षर मिल चुके हैं। अभी तक इनको पढ़ा नहीं जा सका है।पांच हजार पुरानी सभ्यता के प्रमाण मिले

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय जांट पाली तिगड़ाना पुरातात्विक उत्खनन के निदेशक डाक्टर नरेंद्र परमार ने बताया कि तिगड़ाना में पांच हजार साल पुरानी सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। इसमें उस समय के रहन सहन, खेती व्यवस्था, बर्तन, आभूषण, पालतु और जंगली पशु की जानकारी मिली है। अभी इन पर शोध चल रहा है। नि:शंदेह हम तिगड़ाना के गौरवशाली इतिहास को संजोने का प्रयास कर रहे हैं।

भिवानी के तिगड़ाना खेड़े मेंं  मिले हड़प्पाकालीन स्टेटाइट के मनके।

भारतीय संस्कृति को उजागर करने का कार्य कर रहे हैं

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने बताया कि हम तिगड़ाना उत्खनन कार्य के माध्यम से भारत की प्राचीन संस्कृति, सभ्यता के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालने का काम कर रहे हैं। भारत की गौरवशाली परंपरा को विश्व पटल पर रखने का कार्य हमारी विश्वविद्यालय टीम कर रही है। भविष्य में भी हम भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने का कार्य करते रहेंगे। 

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