तीन दिन तक उल्टा लटकाकर मारा-पीटा, आज भी यातनाएं जहन में हैं

इमरजेंसी के दौरान 1975 का वह दिन जब पुलिस इलियट क्लब खास चर्चाओं में रहा।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 05:40 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 05:40 AM (IST)
तीन दिन तक उल्टा लटकाकर मारा-पीटा, आज भी यातनाएं जहन में हैं
तीन दिन तक उल्टा लटकाकर मारा-पीटा, आज भी यातनाएं जहन में हैं

आपातकाल की यादें पवन सिरोवा, हिसार

इमरजेंसी के दौरान 1975 का वह दिन जब पुलिस इलियट क्लब से पकड़कर मुझे सिटी थाना ले गई। तीन दिन तक मुझे उल्टा लटकाया और खूब पीटा। पुलिस के हमसे यही सवाल थे कि आंदोलन के लिए किसने बुलाया। तुम्हारे साथी कौन-कौन हैं। उन तीन दिनों की यातनाएं आज भी जहन में जिदा हैं। यह कहना है भामाशाह नगर निवासी अयोध्या प्रसाद का। जिन्होंने तीन दिन तक सिटी थाना में पुलिस की यातनाएं सही। उसके बाद दो माह तक जेल में रहे।

इमरजेंसी के दौरान हिसार जेल में रहने वाले 65 वर्षीय भामाशाह नगर निवासी अयोध्या प्रसाद ने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि देश में जैसे ही इमरजेंसी लागू की गई वैसे ही नेताओं की गिरफ्तारी का दौर शुरु हो गया था। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता को दिसंबर 1975 को हिसार के इलियट क्लब जहां वर्तमान में जिदल ज्ञान केंद्र स्थापित है वहां पर अभिनंदन समारोह था। उस दौरान मैं राजकीय कॉलेज में बीएससी का छात्र था। 1974 से ही आरएसएस की गतिविधियों से जुड़ा हुआ था। ऐसे में हम इस अभिनंदन समारोह में पहुंचे और लोकतंत्र बहाली के लिए नारेबाजी की। पुलिस आई तो भगदड़ मच गई। मैं शहीद भगत सिंह से काफी प्रेरित था तो हम वहां नहीं भागे। पुलिस पकड़कर सिटी थाना ले गई और वहां तीन दिन तक उलटा लटकाकर खूब पीटा, उस समय जोश था तो हमने अपना मुंह नहीं खोला। इसके बाद हमें हिसार डाबडा चौक के पास स्थित केंद्रीय जेल भेज दिया। जहां हम 13 साथी थे, जबकि हिसार के करीब 30 से 40 लोगों सहित बैरक में 150 कैदी थे। जिसमें हिसार, सिरसा और जींद के शामिल थे। जेल में मेरे साथ ओड़िशा के राज्यपाल प्रो. गणेशी लाल से लेकर हिसार से मोहन लाल लाहौरिया, रामकुमार लोहिया सहित करीब 30-40 लोग थे। जेल में प्रो. गणेशी लाल लोकतंत्र और राष्ट्रवाद की बातों से हौंसला बढ़ाते थे। जेल में मैं दो माह रहा। उस दौरान मैं अपने भविष्य को लेकर चितित तो था। मन में घबराहट भी थी कि जिदा वापिस आएंगे या नहीं, लेकिन कैदियों के बीच राष्ट्रवाद की बातों ने मेरी हिम्मत ओर बढ़ाई। दो माह बाद जमानत पर बाहर आए। मैं उस समय 19 साल का था। जेल से बाहर आने के बाद बीएसएनएल मैं बतौर क्लर्क लगा। अपने आवेदन में भी मैंने जेल जाने का जिक्र किया था। पदोन्नति पाई और मैं डीजीएम के पद से सेवानिवृत हुआ। पत्नी चंद्रकांता टीचर रही अब हम दोनों सेवानिवृत हैं।

जहां हुआ आंदोलन आज वहां है खूबसूरत पार्क

इमरजेंसी के दौरान जिस इलियट क्लब मैदान पर आंदोलन हुआ। आज उसका नामो-निशान मिट चुका है। उसके स्थान पर आज जिदल ज्ञान केंद्र बन चुका है। मैदान पार्क में बदल चुका है। जहां हरे-भरे पौधों की खुशबू उस मैदान को महका रही है। जबकि आंदोलनकारियों को जिस जेल में रखा गया। वह जेल आज भी मौजूद है।

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