हरियाणा की जमीन में आर्गेनिक कार्बन घटने से कम हो रही उपजाऊ शक्ति, पराली बन सकती है समाधान

किसान पराली को मल्चिंग और हैपीसीडर का प्रयोग कर खेतों में ही मिलाते हैं तो उस खेत में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। गेहूं और धान दोनों ही फसलों में पराली किसानों के लिए सिरदर्द बन जाती है। मगर इसका समाधान है

By Manoj KumarEdited By: Publish:Wed, 14 Apr 2021 09:10 AM (IST) Updated:Wed, 14 Apr 2021 09:10 AM (IST)
हरियाणा की जमीन में आर्गेनिक कार्बन घटने से कम हो रही उपजाऊ शक्ति, पराली बन सकती है समाधान
जमीन को उपजाऊ बनाने को लेकर पराली अहम भूमिका निभा सकती है

हिसार, जेएनएन। हरियाणा में आर्गेनिक कार्बन लगातार घट रहा है। मौजूदा समय में प्वांइट तीन या चार ही मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन पाया जा रहा है। जिसका मतलब सीधे उपजाऊ शक्ति से होता है। अच्छी और ऊपजाऊ भूमि में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा देखी जाती है। जिस जमीन में आर्गेनिक कार्बन अच्छा है वहां पैदावार भी अच्छी होगी। मगर रसायनों का प्रयोग आर्गेनिक कार्बन काे कम करने का काम कर रहा है।

अगर किसान पराली को मल्चिंग और हैपीसीडर का प्रयोग कर खेतों में ही मिलाते हैं तो उस खेत में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। गेहूं और धान दोनों ही फसलों में पराली किसानों के लिए सिरदर्द बन जाती है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञानी बताते हैं कि इस समस्या का समाधान मशीनों की मदद से निकल सकता है।

किसान अक्सर कहते हैं कि उनके पास समाधान नहीं है तो सरकार लाख सब्सिडी दे मगर जमीनी स्तर पर उसका प्रयोग नहीं हो रहा। इस समस्या के उपाय समझने से पहले किसानों को समस्या समझना जरूरी है। पराली की समस्या में आधुनिकता और मशीनीकरण का अहम योगदान है। अब इसी रास्ते से हमें समाधान निकालना होगा। अब मल्चिंग और हैपीसीडर से किसान पराली के सामाधान से लेकर आगामी गेहूं की फसल में अधिक पैदावार तक पा सकते हैं। विवि कई बार इस प्रयोग काे सफलता के साथ पूरा कर चुका है।

ऐसे मशीनीकरण से उत्पन्न हुई समस्या

 हमारा समाज जैसे-जैसे मशीनीकरण की ओर आगे बढ़ा हमारी समस्याएं भी उसी तेजी से बढ़ती गईं। पहले खेतों में किसान हाथ से धान की फसल काटता था, जिसमें ऐसी प्रैक्टिस थी कि पौधे को एकदम नीचे से काटना है। मगर अब मशीनें करीब एक हाथ की ढुंठल छोड़ देते हैं। जिसके लिए किसान के पास कोई सामाधान नहीं हो तो किसान कुछ वर्षों से इसमें आग ही लगाने लगे। अब इससे उर्वरक शक्ति कम हुई तो मित्र कीट भी मर गए। हमारा दोहरा नुकसान हुआ।

मल्चिंग और हैपीसीडर ऐसे करेगा मदद

किसानों को सबसे पहले यह ध्यान रखना है कि वह पराली में आग न लगाएं। सबसे पहले किसान मल्चर मशीन को पराली वाले खेतों में चलाएं। यह मशीन पराली के ढुंठलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है, फिर हैपीसीडर मशीन के माध्यम से बिजाई करें, इसमें पराली के छोटे टुकड़ों को खेतों में बिखर जाएंगे। जब यह दोनों काम किसान कर लें फिर उन्हें गेहूं की फसल के लिए जुताई करने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रक्रिया से कई फायदे होंगे। सबसे पहले तो जुताई पर लगने वाली लागत और समय दोनों बचा, इससे गेहूं की फसल जल्दी पककर तैयार हो जाएगी, मार्च अप्रैल में जब अधिक गर्मी होती तो पराली मिलाने से उस खेत का तापमान में दो से तीन डिग्री सेल्सियश कम मिलेगा तो पैदावार भी अच्छी होगी।उन्होंने कहा कि किसान यह उपाय उपनाएं उन्हें निश्चित ही लाभ मिलेगा।

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