किसान आंदोलन : बेटी की मौत और अस्मत लुटने का दर्द लिए कई दिन न्याय को भटकता रहा पिता

किसान आंदोलन में पश्चिम बंगाल से शामिल होने आई इकलौती बेटी की अस्मत से दरिंदों द्वारा खिलवाड़ और फिर उसकी मौत का दर्द लिए कई दिनों से एक पिता न्याय के लिए भटकता रहा। कभी सिंघु और कभी टीकरी बॉर्डर पर पहुंचा। मगर न्‍याय नहीं मिला।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 02:01 PM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 03:40 PM (IST)
किसान आंदोलन : बेटी की मौत और अस्मत लुटने का दर्द लिए कई दिन न्याय को भटकता रहा पिता
पश्चिम बंगाल से आंदोलन में आई युवती से दुष्‍कर्म हुआ पिता न्‍याय के लिए भटका मगर मोर्चा चुप्‍पी साधे रहा

बहादुरगढ़, जेएनएन। किसान आंदोलन में पश्चिम बंगाल से शामिल होने आई इकलौती बेटी की अस्मत से दरिंदों द्वारा खिलवाड़ और फिर उसकी मौत का दर्द लिए कई दिनों से एक पिता न्याय के लिए भटकता रहा। कभी सिंघु और कभी टीकरी बॉर्डर पर पहुंचा। यहां से अस्थियां लेकर एक बार तो चला गया मगर बेटी के आखिरी शब्द उनके जेहन में कौंधते रहे। किसी का साथ न मिला।

फिर खुद से अलग रह रही पत्नी को लेकर यहां दाेबारा पहुंचा। जानें क्या मजबूरी या दबाव था कि सीधे पुलिस-प्रशासन के पास जाने की बजाय आंदोलनकारी नेताओं से मदद मांगता रहा। जो नेता न्याय और संघर्ष की लड़ाई का दम भरते हैं, वे इसमें आगे नहीं आए। कई दिन बीत गए। 30 अप्रैल काे युवती की मौत हुई थी, लेकिन संयुक्त मोर्चा की ओर से आरोपितों के तंबू चार दिन पहले हटा दिए जाने और उनसे पल्ला झाड़ने का ऐलान करके एक बेटी के साथ इंसाफ कर दिया गया।

कानूनी कार्रवाई की पहल नहीं हुई। ऐसे में मजबूर माता-पिता भी ज्यादा हिम्मत नहीं जुटा पाए। अब आंदोलनकारी नेताओं की तरफ से यह तर्क दिया जा रहा कि उन्होंने कानूनी कार्रवाई का अधिकार युवती के पिता पर छोड़ा था, मगर आंदोलन स्थल पर किसी युवती के साथ सामूहिक दुष्‍कर्म तक हो जाता है और आंदोलनकारी महज आरोपितों के तंबू हटाने और उनके सामाजिक बहिष्कार की बात कहकर दूर हट जाते हैं, ये कहां का न्याय था। सवाल यह भी उठ रहा है कि इस मामले में उसी समय संयुक्त मोर्चा की ओर से कानूनी कार्रवाई की पहल क्यों नहीं हुई। वैसे तो आंदोलन में पहुंचने से पहले ही युवती के साथ रास्ते में ही गलत कृत्य हो गया था।

यह बात धीरे-धीरे आंदोलन में फैल भी गई थी। युवती ने अपने पिता को भी आपबीती सुना दी थी। मगर इस बात को दबाने-छिपाने की ही कोशिश आखिर तक होती रही। आंदोलन के बीच से कुछ संगठन नेता भी पीड़िता के लिए न्याय की आवाज उठा रहे थे, मगर जब तक संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने सब कुछ पता होते हुए भी इसके लिए रजामंदी नहीं दी, तब तक पीड़िता के पिता भी शिकायत दर्ज नहीं करवा पाए। सवाल यही है कि ऐसा क्यों हुआ। इतनी देर क्यों हुई।

शनिवार को जब टीकरी बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने बैठक की, उसके बाद ही इस मामले में एफआइआर क्यों दर्ज हुई। 11 से 16 अप्रैल के बीच युवती के साथ गलत कृत्य हुआ। उसकी आपबीती की वीडियो तक बनी। वह वकील के पास भी पहुंची, क्या ये सब बातें संयुक्त मोर्चा के नेताओं को पता नहीं थी। अहम बात तो यह है कि युवती को गंभीर हालत में उसके घर लेकर जाने की बात कहने वाले आरोपितों की लोकेशन संयुक्त मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव को कहीं और की मिली थी, तब भी काेई कदम नहीं उठाया गया।

हर दिन उस पीड़ित बेटी की सिसकियां दबाई गई। एफआईआर दर्ज होने के बाद संयुक्त मोर्चा ने इसे न्याय की लड़ाई तो ठहराया है, लेकिन एफआइआर अगर दर्ज न होती तो शायद न्याय की यह बात भी न उठती। जिस दिन आरोपितों के तंबू हटाए गए, उसके बाद भी कई दिन बीत गए। 16-17 अप्रैल को पीड़िता की आपबीती का वीडियो बनाए जाने की बात सामने आ रही है।

आरोपित ही हैं मृतका के ट्वीटर पर फालाेअर्स

मृतका युवती का टवीटर पर जो अकाउंट हैं, उसमें सभी आरोपित ही फालाेअर्स ही हैं, यह कुछ दिन पहले ही बनाया गया। ऐसे में युवती को कहीं न कहीं हर तरीके से उलझाया हुआ था।

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