हिसार के गांव में पिता ने बेटी को घोड़ी पर बैठाकर निकाला बनवारा, बोले- बेटों से कम नहीं बेटियां
हिसार के गांव आर्यनगर में ग्रामीण माहौल में पली-बढ़ी कुसुम ने हौसले से बदलाव की नई इबारत लिखी है। वह शनिवार को जब पगड़ी पहन आत्मविश्वास से घोड़ी पर बैठकर गांव की गलियों में निकली तो सदियों के तमाम बंधन एक ही झटके में टूट गए।
जागरण संवाददाता, हिसार। हरियाणा में भले ही बेटियों की संख्या बेटों की तुलना में कम हो मगर अब शिक्षा के साथ समाज की सोच भी बदल रही है। हिसार के गांव आर्यनगर में ग्रामीण माहौल में पली-बढ़ी कुसुम ने हौसले से बदलाव की नई इबारत लिखी है। वह शनिवार को जब पगड़ी पहन आत्मविश्वास से घोड़ी पर बैठकर गांव की गलियों में निकली तो सदियों के तमाम बंधन एक ही झटके में टूट गए। हिसार के आर्यनगर गांव की इस बेटी ने शादी से पूर्व दूल्हे की तरह गांव में घुड़चढ़ी की रस्म अदा की। बेटी के इस हौसले को मां-बाप व भावी पति का भी भरपूर समर्थन मिला है।
मां शिलोचना ने शगुन से दूध का गिलास दिया तो पूरा गांव ढोल-नगाड़ों से गूंज उठा। ग्रामीण पहली बार अपनी किसी बेटी की घुड़चढ़ी में बड़े हर्ष- उल्लास से शामिल हुए। ऐसा लगता था कि हर कोई इस इतिहास का साक्षी बनने को तत्पर है। 22 वर्षीय कुसुम ने इस दौरान हर वह रस्म अदा कि जो दूल्हा शादी से पूर्व घुड़चढ़ी के दौरान करता है।
ग्रामीणों का कहना है कि यह अच्छी पहल है तथा गांव में यह पहली निकासी है लेकिन अब इसे आगे भी जारी रखा जायेगा ताकि यह मुहिम पूरे समाज मे पहुंचे।कुसुम ने कहा कि जिस तरह उसके परिजनों ने उसे बेटो की तरह घोड़ी पर चढ़ाकर सम्मान दिया उस से वह अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रही है।लोगो को चाहिए कि वे अपनी लड़कियों को बेटो से कम न समझे।
एडवोकेट पूनम आर्यनगर ने कहा कि यह बहुत ही अच्छी शुरुआत है। इसी तरह से अन्य जिलों में भी केस सुनने को मिले हैं। भिवानी जिला इसमें सबसे बड़ा अग्रणी है अब हिसार जिले में भी शुरुआत हो चुकी है। इस प्रकार के समाज सुधार कार्यकर्म और भी चलाये जाने चाहिए और बाकी समाज उनका समर्थन और अनुसरण करे। इस मौके पर पिता राजकुमार माँ शिलोचना,मोनिका, बीरमति, परवारी, जयवीर, हरीश, रोहित, विजय, हरपाल, सुनीता, जयसिंह, धर्मवीर, सुमन आदि सेकड़ो ग्रामीण मौजूद रहे।