महंगे दाम में फसल बेच चुके किसान अब सरसों तेल की बढ़ी कीमत के लिए सरकार को ठहरा रहे जिम्मेदार

टीकरी बॉर्डर के मंच से कई वक्ता इन दिनों सरसों का तेल महंगा होने को आधार बनाकर सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे है लेकिन सरसों का तेल महंगा क्यों है इसकी वजह बताने से परहेज कर रहे है। जब सरसों सात हजार प्रति क्विंटल बिकी तो तेल भी मंहगा मिलेगा

By Manoj KumarEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 09:10 AM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 11:24 AM (IST)
महंगे दाम में फसल बेच चुके किसान अब सरसों तेल की बढ़ी कीमत के लिए सरकार को ठहरा रहे जिम्मेदार
किसानों ने इस बार एमएसपी से डेढ़ गुना भाव में सरसों बेची थी, अब तेल कीमत बढ़ी हुई है

बहादुरगढ़, जेएनएन। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के बीच आंदोलनकारी नेता राजनीतिक अंदाज में सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उनकी तरफ से आंदोलन के बीच गैर किसानी मुद्दे खूब उछाले जा रहे हैं। विपक्षी दलों की तरह हर मामले में सरकार पर कोई न कोई आरोप लगाया जा रहा है। कुछ मामले ऐसे भी हैं, जिनमें सरकार को जिम्मेदार ठहराने के लिए आंदोलनकारी हकीकत से मुंह भी मोड़ रहे हैं।

टीकरी बॉर्डर के मंच से कई वक्ता इन दिनों सरसों का तेल महंगा होने को आधार बनाकर सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे है लेकिन सरसों का तेल महंगा क्यों है, इसकी वजह बताने से परहेज किया जा रहा है। जब सरसों का भाव ही खुले बाजार में सात हजार प्रति क्विंटल तक पहुंच गया तो जाहिर है कि बाजार में इसका तेल भी महंगा होना ही था। खुले बाजार भाव में सरसों बेचकर किसानों को तो फायदा हुआ, लेकिन अब उसी महंगी सरसों का तेल सस्ता कैसे मिले।

जाहिर है कि महंगी सरसों का तेल के दामों पर असर पड़ा है। इतना ही नहीं, हाल ही में सरकार द्वारा राशन में सरसों के तेल की एवज में निर्धारित राशि गरीबों के खाते में डालने की प्रकिया पर भी यह तर्क दिया जा रहा कि गरीबों को राशन में सरसों का तेल भी सरकार नहीं दे रही है। मगर दूसरी तरफ सच्चाई तो यह है कि जब सरकार को निर्धारित एमएसपी पर किसानों ने अपनी सरसों की फसल बेची ही नहीं तो सरकार के पास तेल भी कहां से आएगा।

लोगों का मानना है कि आंदोलनकारियों की इस तरह की बातें तो पूरी तरह तर्कहीन है। गौरतलब है कि सरकार की ओर से सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4650 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था। सरसों की खरीद के लिए एजेंसियां भी निर्धारित कर रखी थी, मगर बाजार में सरसों के दाम बढ़ गए तो किसानों ने भी ज्यादा कीमत पर ही अपनी फसल बेची। नतीजतन इसके दाम बढ़ते चले गए और उसका फायदा किसानों को मिला।

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