किसान कीटों और बीमारियों की पहचान करके ही करें दवाओं का चयन

पिछले कुछ दिनों में बारिश आने के बाद मौसम में नमी बढ़ने से ग्वार की फसलों में रोग की मात्रा भी बढ़ने लगी है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 07 Sep 2021 05:50 AM (IST) Updated:Tue, 07 Sep 2021 05:50 AM (IST)
किसान कीटों और बीमारियों की पहचान करके ही करें दवाओं का चयन
किसान कीटों और बीमारियों की पहचान करके ही करें दवाओं का चयन

जागरण संवाददाता, हिसार: पिछले कुछ दिनों में बारिश आने के बाद मौसम में नमी बढ़ने से ग्वार फसल में हरा तेला और सफेद मक्खी का आक्रमण शुरू हो गया है। इसके साथ-साथ इस फसलों को बीमारियों ने जकड़ना शुरू कर दिया है। इस समय ग्वार की फसल में किनारी गलन रोग, पीलापन का प्रकोप बढ़ने लगा है। इसलिए कृषि विभाग हिसार के सेवानिवृत्त कृषि अधिकारी डा. बृजलाल व ग्वार विशेषज्ञ डा. बीडी यादव ग्वार फसल पर विशेष जागरूकता किसानों को मुहैया कराते हैं।

हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से सेवानिवृत्त ग्वार विज्ञानी डा. बीडी यादव बताते हैं कि कृषि रसायनों का बैगर सिफारिश के प्रयोग करना किसानों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए किसानों को कीटों व बीमारियों की ठीक से पहचान कर आवश्यकतानुसार दवाओं का उचित प्रयोग करना चाहिए। ग्वार फसल में कीटों व फंगस की बीमारियों के उपाय के बारे में कृषि विभाग के अधिकारियों व कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर दवाई खरीदें। दवा खरीदते समय इन बातों का रखे ध्यान

विज्ञानी डा. बृजलाल ने किसानों को सलाह दी कि विक्रेता से दवाई खरीदते समय पक्का बिल अवश्य लें तथा दवा की बोतल पर समाप्ति तिथि अवश्य जांच करें। बिल कटवाते समय बिल में दवा का बैच नंबर अवश्य लिखवाएं। ग्वार के पत्ते किनारी से पीला व काला होने से पहले करें उपाय

किसानों से रूबरू होने के बाद पता लगा कि ज्यादा किसान ग्वार फसल की कीटों व बीमारियां जब 25 से 30 फीसद प्रकोप हो जाता है उस समय किसान स्प्रे करने की सोचता है। उस अवस्था तक किसानों का काफी नुकसान हो चुका होता है। इस बात को ध्यान में रखकर ग्वार विशेषज्ञ डा. बीडी यादव ने किसानों को बताया कि ग्वार के पत्तों का किनारी से पीलापन, काला होना, जीवाणु अंगमारी व फंगस रोग आदि बीमारी के लक्षण दिखाई देने से पहले इन बीमारियों की रोकथाम बहुत ही जरूरी है। बीमारी की रोकथाम कैसे करें

ग्वार विषेषज्ञ डा. बीडी यादव ने जीवाणु अंगमारी व फंगस रोग की रोकथाम के लिए 30 ग्राम स्ट्रैप्टोसाईक्लिन व 400 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। अगर इन बीमारियों के साथ हरा तेला व सफेद कीड़ों का प्रकोप हो तो उसकी पहचान करके इसके नियंत्रण के लिए 250 मिली लीटर मैलाथियान-50 ईसी या डाइमेथोएट (रोगोर) 30 ईसी प्रति एकड़ उपरोक्त घोल में मिलाकर पहला छिड़काव बिजाई के 40-45 दिन पर तथा अगला स्प्रे इसके 12-15 दिन अंतराल पर करें। जो किसान उपरोक्त दवाइयों का प्रयोग बताए गए समय पर स्प्रे करते हैं उनकी पैदावार बेहतर होती है। शिविर में मौजूद 47 किसानों को पांच स्ट्रैप्टोसाइक्लिन पाउच तथा स्प्रे के नुकसान से बचने के लिए हर किसान को मास्क भी दिए गये। इस अवसर पर नंबरदार राजा राम, पूर्व सरपंच कुलदीप डेलू, अशोक कुमार, जगतराम, राजबीर सिंह, राम नरायण, देवीलाल, कुलदीप कुमार, महेन्द्र सिंह तथा विनोद कुमार आदि मौजूद रहे।

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