Farmer Protest: संयुक्त मोर्चा में शामिल पंजाब के संगठन अब कर रहे हैं किसानों की अलग पार्टी की पैरवी
आंदोलन के बीच से अब पंजाब के नेता भी इस बात पर जाेर देने लगे हैं कि सत्ता में किसानों की भागीदारी जरूरी है। कई वक्ता आंदोलन के मंच से किसानों की अपनी पार्टी होने का तर्क दे रहे हैं।
बहादुरगढ़, जागरण संवाददाता। आंदोलन जब खत्म हो रहा है तब इसके बीच से राजनीतिक महत्वाकांक्षा खुलकर सामने आ रही है। आंदोलन को गैर राजनीतिक रखे जाने के दावे तो शुरूआत से ही होते रहे, मगर अब संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल नेता किसानों की पार्टी की पैरवी कर रहे हैं। आंदोलन के जरिये चेहरों को तराश कर अब राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश हो रही है। गुरनाम चढूनी द्वारा मिशन पंजाब का जिक्र किए जाने पर उन्हें मोर्चा से निलंबित किया गया।
सत्ता में किसानों की भागीदारी जरुरी
मगर आंदोलन के बीच से अब पंजाब के नेता भी इस बात पर जाेर देने लगे हैं कि सत्ता में किसानों की भागीदारी जरूरी है। कई वक्ता आंदोलन के मंच से किसानों की अपनी पार्टी होने का तर्क दे रहे हैं। उनका कहना है कि अब तक सत्ता में रहे दलों ने किसानों का भला नहीं किया। जब-जब किसानों को लेकर विरोधी नीतियां अमल में लाने की कोशिश हुई है, तब-तब किसानों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया है। ऐसे में किसान को खुद नीति निर्धारक बनना होगा। आंदोलन की शुरूआत से सरकार से बातचीत करती रही 40 सदस्यीय कमेटी में शामिल रहे कीर्ति किसान यूनियन के नेता राजेंद्र सिंह, दीपसिंह वाला ने कहा कि कोई भी लड़ाई महिलाओं के सहयोग के बिना पूरी नहीं हो सकती इस आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर सहयोग दिया है।
किसानों की सियासी यूनियन की जरूरत
उन्होंने कहा कि किसानों की सियासी यूनियन बनाने की जरूरत है, तभी किसानों का भला हो सकता और देश पूंजीपतियों के चंगुल से छूट सकता है। तभी हमारी बात आगे सुनी जाएगी और हमारा मसला हल हो सकता है। आज देश में सब कुछ प्राइवेट हो रहा है। कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं चाहती कि किसानों के बच्चों को सरकारी नौकरी मिले। राजनीतिक पार्टियां सत्ता में रहेंगी तो जिस तरह तीन कानून बनाए गए थे, आगे उसी तरह से फिर कानून आएंगे। इसलिए किसानों की पार्टी जरूरी है।