किसान आंदोलन : इधर बार्डरों पर भीड़ जुटाने की चुनौती, उधर खरीफ फसलों की बिजाई-रोपाई के लिए पंजाब लौट रहे किसान

आंदोलन में बॉर्डर पर भीड़ जुटाना अब आंदोलनकारियों के लिए चुनौती बना हुआ है। एक तरफ खरीफ फसलों की बिजाई का सीजन है और दूसरी तरफ आंदोलन में उपस्थिति भी जारी रखनी है। ऐसे में दोनों जगहों का सामंजस्य बैठना आंदोलनकारियों के लिए आसान नहीं है।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 08:31 AM (IST) Updated:Sun, 13 Jun 2021 08:31 AM (IST)
किसान आंदोलन : इधर बार्डरों पर भीड़ जुटाने की चुनौती, उधर खरीफ फसलों की बिजाई-रोपाई के लिए पंजाब लौट रहे किसान
आंदोलन चलाने के लिए फंड और भीड़ दोनों ही कम हो रहे हैं और यह चिंता का विषय बना है

बहादुरगढ़, जेएनएन। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में बॉर्डर पर भीड़ जुटाना अब आंदोलनकारियों के लिए चुनौती बना हुआ है। एक तरफ खरीफ फसलों की बिजाई का सीजन है और दूसरी तरफ आंदोलन में उपस्थिति भी जारी रखनी है। ऐसे में दोनों जगहों का सामंजस्य बैठना आंदोलनकारियों के लिए आसान नहीं है। इन दिनों पंजाब में धान की रोपाई का सीजन चल रहा है। ऐसे में बहुत सारे पंजाब के आंदोलनकारी तो धान की रोपाई के लिए गए हुए हैं। इस महीने के आखिर तक उन्होंने धान की रोपाई का कार्य निपटाने का लक्ष्य तय कर रखा है, ताकि अगले महीने की शुरुआत से यहां पर भीड़ जुटाई जा सके।

इस बीच जून के अंदर कई गतिविधियां भी संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से तय कर दी गई हैं। 14 जून को गुरु अर्जन देव का शहीदी दिवस मनाया जाना है। 24 को कबीर जयंती और इसके बाद 26 जून को खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ अभियान के तहत राजभवन के बाहर धरने दिए जाएंगे। इस दिन आंदोलन को सात महीने पूरे हो जाएंगे। दरअसल, आंदोलन की शुरुआत में यहां पर सिर्फ पंजाब-हरियाणा ही किसानों का ही जमघट नहीं था बल्कि वकील, कर्मचारी, पूर्व सैनिक और दूसरे वर्गों से जुड़े लोग व संगठन भी रोजाना आंदोलन स्थल पर पहुंचकर समर्थन दे रहे थे। इससे आंदोलन में खूब आवाजाही बढ़ रही थी, लेकिन यह सब 26 जनवरी के बाद कम होता चला गया। दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च के दौरान जो हिंसा हुई उसके बाद आंदोलन दोबारा से उस उफान पर नहीं पहुंच पाया है। हालांकि आंदोलनकारी कोशिश तभी से कर रहे हैं।

कई तरह की गतिविधियां भी हो चुकी हैं। जाम और धरने-प्रदर्शन हो चुके हैं लेकिन आंदोलन में किसानों की पहले जितनी भागीदारी नहीं हुई है। बहादुरगढ़ में टीकरी बार्डर पर आंदोलन फैला तो 15 किलोमीटर तक हुआ है मगर किसानों की संख्या उतनी नहीं रह गई है। तंबू लगे नजर आते हैं लेकिन इनमें से काफी खाली भी हैं या फिर उनमें इक्का-दुक्का किसान है।

खास बात यह है कि टीकरी बार्डर से रोजाना वक्ता यह आह्वान करते हैं कि किसान घरों से वापस बार्डर पर लौटे और जो आंदोलन स्थल पर अपने तंबुओं में ही बैठे रहते हैं उन्हें भी रोजाना सभा में उपस्थिति दर्ज करवानी चाहिए। पंजाब गए भाकियू राजेवाल के नेता परगट सिंह ने बताया कि इन दिनों वहां पर धान की राेपाई का कार्य निपटा रहे हैं। यह जल्द पूरा हो जाएग। बारी-बारी से किसान इसके लिए जा रहे हैं।

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