हरियाणा में चरम पर प्रदूषण, 9 शहरों में सबसे खराब हवा, 8 शहरों में 300 के करीब एक्यूआई
शुक्रवार को सुबह 10 बजे प्रदूषण अपने उफान पर दिखाइ दिया। यहां 9 शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 माइक्रो ग्राम प्रतिघन मीटर से अधिक दर्ज किया गया। वहीं 8 शहर ऐसे भी हैं जहां 300 से कुछ कम ही एक्यूआइ है।
हिसार, जेएनएन। प्रदूषण को लेकर प्रदेश में अभी राहत नजर नहीं आ रही है। दोपहर ही नहीं बल्कि सुबह भी प्रदूषण सर्वाधिक पहुंच रहा है। वीरवार को जहां सुबह कई शहरों में प्रदूषण कम दर्ज किया गया था तो अगले ही दिन स्थिति बदल गई है। शुक्रवार को सुबह 10 बजे प्रदूषण अपने उफान पर दिखाइ दिया। यहां 9 शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 माइक्रो ग्राम प्रतिघन मीटर से अधिक दर्ज किया गया। वहीं 8 शहर ऐसे भी हैं जहां 300 से कुछ कम ही एक्यूआइ है। इतने प्रदूषण ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है।
धान की पराली जलाने से होने वाले नुकसान
- एक टन धान की पराली जलाने से हवा में 3 किलो ग्राम, कार्बन कण, 513 किलो ग्राम, कार्बनडाई-ऑक्साइड, 92 किलो ग्राम, कार्बनमोनो- ऑक्साइड, 3.83 किलोग्राम, नाइट्रस-ऑक्साइड, 2 से 7 किलो ग्राम, मीथेन, 250 किलो ग्राम राख घुल जाती है।
- धान की पराली जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है, मुख्यतः वायु अधिक प्रदूषित होती है। वायु में उपस्थित धुंए से आंखों में जलन एवं सांस लेने में दिक्कत होती है| प्रदूषित कणों के कारण खांसी, अस्थमा जैसी बीमारियों को बढ़ावा मिलता है| प्रदूषित वायु के कारण फेफड़ों में सूजन, संक्रमण, निमोनिया एवं दिल की बिमारियों सहित अन्य कई बिमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
- किसानों के पराली जलाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता लगातार घट रही है। इस कारण भूमि में 80 फीसद तक नाईट्रोजन, सल्फर तथा 20 फीसद तक अन्य पोषक तत्वों में कमी आई है| मित्र कीट नष्ट होने से शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ा है, जिससे फसलों में विभिन्न प्रकार की नई बिमारियां उत्पन्न हो रही हैं। मिट्टी की ऊपरी परत कड़ी होने से जल धारण क्षमता में कमी आ रही है।
- एक टन धान की पराली जलाने से 5.5 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलो ग्राम फॉस्फोरस और 1.2 किलो ग्राम सल्फर जैसे मिट्टी के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
इस प्रकार पराली से आय भी कर सकते हैं किसान
- धान की पराली के छोटे-छोटे गोले बनाकर, ईंट के भट्ठों और बिजली पैदा करने वाले प्लांट को बेचा जा सकता है, जिससे कोयले की बचत होगी तथा किसान 1000 से 1500 रूपए प्रति टन के हिसाब से कमा सकते हैं।
- पराली से बॉयोगैस बनायी जा सकती है, जो कि खाना बनाने के काम आ सकती है। पराली से जैविक खाद भी बनाई जा सकती है, यह न सिर्फ पैदावार को बढ़ाता है, बल्कि उर्वरक पर होने वाले खर्च को भी कम करता है।
- धान की पराली का उपयोग पशु चारे, मशरूम की खेती, कागज और गत्ता बनाने में, पैकेजिंग, सेनेटरी उद्योग इत्यादि में किया जा सकता है।
- धान की पराली का उपयोग हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च, चुकन्दर, शलगम, बैंगन, भिंडी सहित अन्य सब्जियों में किया जा सकता है। मेंड़ों पर इन सब्जियों के बीज बोने के बाद पराली को मल्चिंग या पलवार कर (पराली को कुतर कर) ढक देने से पौधों को प्राकृतिक खाद मिलती है और ढके हुए हिस्से पर खरपतवार नहीं उगते हैं।
- यदि हैप्पी सीडर की मदद से पराली वाले खेत में ही गेहूं की सीधी बिजाई कर दी जाए तो पराली गेहूं में खाद का काम करती है, जिससे जमीन में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ेगी साथ ही मजदूरी की लागत भी कम आएगी और फसल लगभग 20 दिन अगेती भी हो जाती है।
यह है प्रदेश में एयर क्वालिटी इंडेक्स
अंबाला- 281
बहादुरगढ़- 339
बल्लभगढ़- 332
भिवानी- 275
धारूहेड़ा- 343
फरीदाबाद- 350
फतेहाबाद- 304
गुरुग्राम- 293
हिसार- 307
जींद- 299
कैथल- 294
करनाल- 290
कुरुक्षेत्र- 322
मानेसर- 305
पानीपत- 329
सिरसा- 214
यमुनानगर- 267