विशेषज्ञों ने दी जानकारी, पशुओं में भी हो सकता है टिटनेस रोग, बचाव के जानें तरीके

क्लोस्ट्रीडियम टिटेनाई नामक जीवाणु एवं इससे उत्पन्न विष के कारण टिटनेस रोग होता है। धनुषबाय अथवाटिटनेस रोग एक मिट्टी/मृदा जनित रोग हैं। किसी नुकीली वस्तु एवं लोहे की वस्तु से पशु के शरीर पर होने वाले गहरे घाव मख्य रूप से इस राेग के सक्रंमण का कारण बनते हैं।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 11:43 AM (IST) Updated:Thu, 28 Oct 2021 11:43 AM (IST)
विशेषज्ञों ने दी जानकारी, पशुओं में भी हो सकता है टिटनेस रोग, बचाव के जानें तरीके
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जागरण संवाददाता, हिसार। धुनषबाय को अंग्रेजी भाषा में टिटनेस के नाम से जाना जाता है, जो कि इसका ज्यादा प्रचलित नाम है। धुनषबाय क्लोस्ट्रीडियम टिटेनाई नामक जीवाणु से पशुओं में होने वाला एक घातक संक्रामक रोग है। कई जगह इस रोग को स्थानीय भाषा में धनुष्टंकार के नाम से भी जाना जाता है लगभग सभी प्रजाति के पशुओं के साथ-साथ यह रोग मनुष्य में भी पाया जाता है। घोड़े एवं खच्चर प्रजाति के पशु इस रोग के लिए अन्य पशुओं से ज्यादा संवेदनशील होते हैं। प्रायः भेड़, बकरी एवं सुकर प्रजाति के पशुओं में भी यह रोग बहुतायत में देखने को मिल सकता है। सामान्यतः श्वान एवं गाय प्रजातियों में इस रोग की संवेदनशीलता एवं होने की संभावना काफी कम होती है।

यह रोग कैसे एवं क्यों होता है

क्लोस्ट्रीडियम टिटेनाई नामक जीवाणु एवं इससे उत्पन्न विष के कारण टिटनेस रोग होता है। धनुषबाय अथवाटिटनेस रोग एक मिट्टी/मृदा जनित रोग हैं, क्योंकि इसके कारक जीवाणु मिट्टी में बहुतायत में पाए जाते हैं। इन जीवाणुओं की स्पोर (बीजाणु) अवस्था मिट्टी एवं पशुओं के गोबर इत्यादि में कई वर्षों तक जीवित रह सकती हैं, जो कि पशुओं एवं मनुष्य में इस रोग के संक्रमण का कारण बन सकते हैं। लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में पशु जैव प्रोद्योगिकी विभाग के विज्ञानी बताते हैं कि सामान्यतः इस जीवाणु प्रतिरोध तरीकों के प्रति असंवेदनशील होते हैं। किसी नुकीली वस्तु एवं लोहे की वस्तु से पशु के शरीर पर होने वाले गहरे घाव मख्य रूप से इस राेग के सक्रंमण का कारण बनते हैं।

पशुओं के शरीर पर यह घाव किसी नुकीली वस्तु, बधियाकरण, रोम-कर्तन, कर्ण छेदन या जनन के समय किसी चोट की वजह से हो सकते हैं एवं धनुषबाय का कारण बन सकते हैं। इस रोग के जीवाणु का संक्रमण पशु की जेर हाथ से निकालने या पशु के ब्यानें के दौरान मदद करते समय साफ-सफाई का ध्यान ना रखने की वजह से भी हो सकता है। पशुओं के बाल एवं खासकर भेड़ की ऊन काटने के समय होने वाले घाव भी इस रोग के संक्रमण का कारण बन सकते हैं। पशुओं के नवजात बच्चों में नाल पर हुए घाव से भी इस रोग के होने का खतरा रहता है। खेतीबाड़ी या अन्य कृषि कार्यों के लिए काम में आने वाले पशुओं में पैरों में चोट लगना स्वाभाविक हैं, जिसकी वजह से भी इन पशुओं में टिटनेस रोग होने की संभावना बनी रहती है।

इस रोग में पाए जाने वाले लक्षण क्या-क्या हैं

धनुषबाय राेग के लिए जिम्मेदार जीवाणु से उत्पन्न होने वाले विष की प्रकृति स्नायु- तंत्र को प्रभावित करने वाली होती है। इसलिए इस रोग से प्रभावित पशुओं में पशु में कान खड़े होना उठी हुई पूंछ, गर्दन में खिचांव, अति संवेदनशीलता तथा उत्तेजना इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं। बकरियों में खासकर मांसपेशियों में खिचांव की वजह से उनका पूरा शरीर लकड़ी की तरह अकड़ जाता है। टिटनेस से प्रभावित पशुओं की तीसरी पलक उभर जाती है। पशुओं खासकर गाय एवं भैंस प्रजातियों में उनकी पूंछ हैंडपम्प के हैंडिल की तरह मुड़ी हुई प्रतीत होती है। पशुओं के जबड़ो में अत्यधिक जकड़न एवं खिचांव होने के कारण चारा-पानी लेने में कठिनाई होती है, अतः इस अवस्था को ‘‘लॉक-जा’’ भी कहा जाता है। अत्यधिक प्रभावित पशु धराशायी हो जाता है एवं मौत भी हो सकती है।

इस रोग में क्या है उपचार

पशुपालकों के लिए यह विशेष ध्यान देने की बात है कि पशुओं में धुनषबाय/टिटनेस रोग की चिकित्सा या उपचार इसकी अन्तिम अवस्था में सम्भव नहीं है। अतः पशु में इस रोग के शुरूआती लक्षण दिखाई देते ही यथासम्भ्व जितना जल्दी हो सके इस रोग का उपचार शुरू करवा देना चाहिए। पशु चिकित्सकों द्वारा इस रोग के उपचार के लिए पेनीसीलीन नामक एंटीबायोटीक का प्रयोग किया जाता है। अत्यधिक द्रव्य (ग्लुकोज/सलाईन) का रक्त मार्ग से प्रयोग भी इसके ईलाज के दौरान पशु-चिकित्सक द्वारा किया जाता है, जो कि पशु के शरीर से इसके जीवाणु द्वारा किया जाता है, जो कि पशु के शरीर से इसके जीवाणु द्वारा उत्पन्न विष की मात्रा को बाहर निकालने में अति प्रभावकारी है।

टिटनेस ऐंटीटोक्सिन का प्रयोग भी इस रोग की चिकित्सा में अति प्रभावकारी सिद्ध हो सकता है। इसके अतिरिक्त, पशु के शरीर पर जिस घाव या चोट की वजह से धनुषबाय रोग हुआ है, उसकी भी अच्छी तरह से साफ-सफाई एवं चिकित्सा बहुत जरूरी है। अतः पशुपालकों को यह सलाह दी जाती है कि पशु में धनुषबाय रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत अपने नजदीकी पशु-चिकित्सक से पशु का उचित एवं पूरा उपचार करवाना चाहिए। इस रोग के उपचार में देरी आपके पशु की मौत का कारण भी बन सकती है।

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