किसान आंदोलन के बीच हर आपराधिक घटना पर पर्दा डालने की होती रही कोशिश, मगर नहीं बनी बात

कृषि कानूनों में बदलाव को लेकर शुरू हुआ आंदोलन अब और ही रूप लेता जा रहा है। आपराधिक वारदात बढ़ती जा रही हैं वहीं अब तक हुई सभी घटनाओं पर जांच की बजाय पर्दा डालने की कोशिश हुई है। ताजा मामला युवक के जलने का है।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 06:25 AM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 06:25 AM (IST)
किसान आंदोलन के बीच हर आपराधिक घटना पर पर्दा डालने की होती रही कोशिश, मगर नहीं बनी बात
आंदोलन में युवती से दुष्कर्म, लड़की से छेड़छाड़ और अब युवक के जलने की घटना सवाल खड़े कर रही है

बहादुरगढ़, जेएनएन। टिकरी बॉर्डर पर आंदोलन स्थल पर गए कसार गांव के 43 वर्षीय मुकेश मुदगिल को पेट्रोल डालकर जिंदा जला देने की घटना को संयुक्त मोर्चा की ओर से आत्महत्या ठहराया जा रहा है। मौके पर अंधेरे में बनाई गई वीडियो को आधार बनाते हुए संयुक्त माेर्चा इस मामले में हत्या के आरोप को आंदोलन को बनाम करने की साजिश बता रहा है। पुलिस अपनी जांच कर रही है। एसआइटी गठित हो गई है। दो आरोपित गिरफ्तार हो चुके हैं।

पुलिस ने अभी तक की जांच में मामला हत्या का होने और पेट्रोल डालकर जिंदा जलाने की वजह भी बताई है। इस मामले के तमाम तथ्यों पर तो अब अदालती कार्यवाही चलेगी और उसी से निष्कर्ष भी निकलेगा, लेकिन इससे पहले आंदोलन के बीच जो आपराधिक घटनाएं हुई हैं, उनमें प्रदर्शनकारियों द्वारा अपने बीच छिपे आरोपितों को कहीं न कहीं बचाने की कोशिश हर बार हाेती रही है। आपराधिक घटनाओं पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती रही है।

किसी भी मामले में आंदोलनकारियों ने अपने बीच छिपे घटनाओं के आरोपितों को खुद कानून के हवाले करने से परहेेज ही किया है या फिर सीधे तौर पर उनकी पहचान नहीं है। कई बिंदुअों पर यह स्थिति सामने आ चुकी है। बंगाल की युवती से टीकरी बार्डर पर सामूहिक दुष्कर्म के आरोप का जो मामला है, उसमें भी कहीं न कहीं ऐसा ही हुआ। एफआइआर दर्ज होने से पहले कई दिनों तक दुष्कर्म का यह मामला आंदोलन के बीच उबलता रहा। एफआइआर आठ मई को दर्ज हुई, लेकिन खुद संयुक्त मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार कर चुके हैं कि बंगाल की युवती से छेड़छाड़ से ज्यादा कुछ हुआ, इसका पता दो मई को लग गया था। जाहिर है उस वक्त तक भी इस मामले के आरोपित आंदोलन के बीच ही थे। मगर उन्हें कानून के हवाले नहीं किया गया। बाद में पीड़िता के पिता की शिकायत पर कुल छह आरोपितों को इसमें नामजद किया गया। बाद में युवती के पिता ने दो आरोपितों पर तो सीधे तौर पर आरोप लगाए थे, लेकिन उनमें से एक तो एफआइआर दर्ज होने के बाद भी आंदोलन स्थल पर ही रहा। बाकायदा वीडियो जारी करता रहा अौर सीना ठोककर यह कहता रहा कि वह कहीं नहीं गया है आंदोलन में ही है। यहां तक की उसने यह भी कहा कि बार्डर पर इस मामले में पंचायत हुई थी और उसमें शामिल प्रतिनिधियों ने ही आरोपितों को तंबू छोड़कर आंदोलन में ही इधर-उधर छिपे रहने के लिए कहा था। आंदोलनकारियों ने बार्डर पर अारोपितों के तंबू उखाड़ने की बात कही और इतिश्री कर ली गई। ये सब बातें यह साफ करती हैं कि आंदोलनकारी ऐसे मामलाें में खुद ही पुलिस और अदालत बन जाते हैं। केवल इसी मामले को दबाने-छिपाने की कोशिश नहीं हुई बल्कि आंदोलन में पंजाब के एक किसान की हत्या की गई। उसमें भी किसी प्रदर्शनकारी ने मुंह नहीं खोला, क्योंकि आंदोलन में आए दूसरे शख्स ने ही यह हत्या की थी। बाद में पुलिस ने अपने स्तर पर जांच करके आरोपितों को पकड़ा। पिछले दिनों पंजाब की एक युवती ने खुद के साथ दुर्व्यवहार की पीड़ा को इंटरनेट मीडिया पर बयां किया था। पुलिस को शिकायत भले ही नहीं दी गई, लेकिन इस तरह से एक युवती ने अपनी पीड़ा बताई तो जाहिर है कि उसके साथ कुछ तो हुआ ही होगा, मगर आंदोलनकारियों ने पुलिस-प्रशासन के जरिये जांच करवाने की कोई पहल नहीं की। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस मामले में युवती के सामने न आने के पीछे संयुक्त मोर्चा के नेताअों का कहीं न कहीं दबाव रहा। यह सच है या नहीं, यह जांच का विषय है, लेकिन अहम बात तो यह है कि आंदोलन के बीच महिलाओं से जुड़ी जो घटनाएं सामने आई है, उनको आंदोलनका के मंच से बहुत से वक्ता सरकार की साजिश ठहरा रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि सरकार महिला सुरक्षा को लेकर आंदोलन को बदनाम करना चाहती है।

जाहिर है कि इस तरह की बातें किसी भी मामले में पुलिस की जांच और अदालती कार्यवाही काे नकारते हुए खुद ही फैसला सुनाने जैसी हैं। यहां तक की इंटरनेट मीडिया पर एक वीडियो डालकर यह जाहिर कराया जा रहा है बंगाल की युवती से दुष्कर्म की घटना भी महज एक आरेाप है, जबकि एसआइटी इसमें दो आरोपितों द्वारा दुष्कर्म करने, तीसरे द्वारा छेड़छाड़ और चाैथे द्वारा पीड़िता पर मुंह बंद रखने का दबाव बनाने का दावा कर रही है। इन सब बातों को लेकर अब लोग इंटरनेट मीडिया पर यह टिप्पणी कर रहे हैं कि आंदोलनकारियों को केवल खुद की बात ठीक लगती है, बाकी सब इनकी नजर में गलत या षडयंत्र ही है। 

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