हरियाणा में एड्स रोगियों की मौत का आंकड़ा घटा, बच्चों का डेथ रेट 32 से पहुंचा 5 फीसदी

हरियाणा में एड्स रोगियों की मौत का आंकड़ा घटा है। बच्चों का डेथ रेट 32 से 5 प्रतिशत पहुंचा है। लाकडाउन में भी मरीजों को घर पर दवा पहुंचाई गई और नजदीकी जगह पर दवा के प्रबंध करवाए गए। प्रदेश में एचआइवी के करीब 19 हजार 700 मरीज हैं।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Mon, 06 Dec 2021 08:02 PM (IST) Updated:Mon, 06 Dec 2021 08:02 PM (IST)
हरियाणा में एड्स रोगियों की मौत का आंकड़ा घटा, बच्चों का डेथ रेट 32 से पहुंचा 5 फीसदी
हरियाणा में कम हुआ एड्स रोगियों का डेथ रेट।

जागरण संवाददाता, हिसार। हरियाणा में इस साल एड्स रोगियों की मौत का आंकड़ा काफी घटा है। वैसे एचआइवी से पीड़ित बच्चों की मौत का डेथ रेट 32 से 5 प्रतिशत पहुंच गया है और बड़े उम्र के मरीजों की मौत में 2 फीसदी गिरावट हुई है। यह स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी उपलब्धि है और मरीजों के लिए भी राहत की बात है। पहले हालत बेहद खराब थी इसका कारण था कि मरीजों को समय पर दवा नहीं मिल रही थी और न ही सही से जांच हो रही थी।

इस पर रोक लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग के एड्स नियंत्रण सोयायटी ओर से लाकडाउन में भी मरीजों को घर पर दवा पहुंचाया गई और नजदीकी जगह पर दवा के पुख्ता प्रबंध किए गए। कोरोना काल में भी प्रदेश में 10 नए एआरटी सेंटर खोले गए है और एक पहले से था। इसके अलावा पांच एफआइएआर, छह एलएसी व एलएसी प्लस एआरटी सेंटर है। प्रदेशभर में एचआइवी के करीब 19 हजार 700 मरीज है। यह मरीज ऐसे है, जिनका पंजीकरण है। हिसार की बात करें तो एचआइवी के लगभग 1400 मरीज पंजीकृत है, जो दवा ले रहे है।

रोहतक में वायरल लोढ़ लैब की शुरूआत

रोहतक पीजीआइएमएस में एचआइवी मरीजों के लिए वायरल लोढ़ टेस्ट लैब की व्यवस्था की गई है। यह लैब पिछले महीने ही शुरू हुई है। यह टेस्ट 4 से 5 हजार रुपये होता है। मरीजों के लिए यह टेस्ट जरूरी है। इससे यह पता चलता है कि मरीज में वायरस का असर कितना है और वह किस स्टेज में है। उसी हिसाब से उपचार लेना उचित होता है। वरना पहले दिल्ली में निजी लैब से अनुबंध किया हुआ था और वहीं पर मरीजों के टेस्ट करवाए जाते थे। सप्ताहभर के बाद रिपोर्ट मिलती है।

बच्चों की होती थी ज्यादा मौत

प्रदेश में एचआइवी से बच्चों की ज्यादा मौतें हाेती थी। इस पर हरियाणा एड्स नियंत्रण सोसायटी ने सर्वे कर पता लगाया कि बच्चों की ही मौत क्यों अधिक हो रही है। पाया गया कि बच्चे एचआइवी ग्रस्त माता-पिता से ही संक्रमित होते थे और उनको छोटी उम्र में ही टायफाइड, निमोनिया व ट्यूबक्लोसिस व फंगल इंफेक्शन बीमारियां घेर लेती थी। ऐसे में उनकी क्षमता कम हो जाती, जो मौत का कारण थी। ऐसे में एचआइवी विभाग ने बच्चों के लिए दवा के प्रबंध किए। पहले ऐसा कुछ नहीं होता था।

केवल एक बच्चा एचआइवी ग्रस्त

प्रदेश में एचआइवी की कुल 12 पॉजिटिव गर्भवती पंजीकृत है। उनमें से एक का बच्चा एचआइवी ग्रस्त मिला है, बाकी को दवा मिलने से संक्रमण बच्चों तक नहीं फैला। अब 90 से 95 फीसदी तक गर्भवती महिलाओं की एचआइवी व सिफरिल दोनों टेस्ट किए जाते है।

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