दो के बदले 600: कोर्ट ने शिक्षक को दो पेड़ों को काटने की सजा सुनाई तो सजाया प्रकृति का आंगन

हांसी के एक शिक्षक को अदालत ने दो पेड़ काटने की सजा सुनाई। इसके बाद उसने प्रकृति के आंगन को सजा डाला। उसने 600 पौधे लगाकर उसकी देखरेख कर वृक्ष के रूप में तैयार किया।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 12:06 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 12:06 PM (IST)
दो के बदले 600: कोर्ट ने शिक्षक को दो पेड़ों को काटने की सजा सुनाई तो सजाया प्रकृति का आंगन
दो के बदले 600: कोर्ट ने शिक्षक को दो पेड़ों को काटने की सजा सुनाई तो सजाया प्रकृति का आंगन

हांसी, [मनप्रीत सिंह]। सजा में छिपे संदेश को कम ही लोग आत्मसात कर पाते हैं। हांसी के सुरेंद्र कुमार ऐसे लोगों में से ही हैं। कुरुक्षेत्र के पर्यावरण न्यायालय ने अध्यापक सुरेंद्र को तीन महीने में पांच सौ पौध लगाने की सजा दी। उन्होंने छह सौ लगा दिए। लगातार चार वर्ष उनकी देखभाल की। सींचा, पाला-पोसा। आज वे सभी छायादार वृक्ष बन चुके हैं। अब वह ट्री गार्जियन कहे जाते हैं।

2014 में कोर्ट ने कुरुक्षेत्र के पर्यावरण न्यायालय ने सुनाई थी 500 पेड़ लगाने की सजा

क्षेत्र के  ढाणा गांव के रहने वाले सुरेंद्र पर आरोप था कि उन्होंने जनवरी 2014 में पेटवाड़ डिस्टीव्यूट्री के किनारे खड़े दो पेड़ों को काटकर बेच दिया। हालांकि दोनों पेड़ खड़े नहीं थे, आंधी में गिर गए थे। उनपर पर्यावरण न्यायालय में मुकदमा चला। उन्होंने पहली सुनवाई पर अपराध स्वीकर कर लिया। बोले-मैंने अपराध किया है। अदालत जो सजा दे, मंजूर है। मुकदमा खत्म हो गया और मास्टर सुरेंद्र सजा पूरी करने के संकल्प में जुट गए।

सजा के संदेश को समझा और उसे आत्मसात कर चार साल से नियमित कर रहे देखभाल

सुरेंद्र के मुताबिक शुरुआत में तो 500 पेड़ लगाने का काम मुश्किल लगा। लेकिन लगाने में जुटे तो उनके छात्र और परिवार के लोग सहयोग करने के लिए आगे आ गए। सुरेंद्र ने खुद के गांव ढाणा, ढाणा गढ़ी और ढाणा खुर्द इन तीन गांवों गांवों के स्कूलों, स्टेडियम व सरकारी भवनों में पौधे रोपे।

सुरेंद्र ने बताया कि गढ़ी गांव में उनके भाई जयसिंह अध्यापक हैं। उन्होंने गढ़ी गांव के स्कूल में लगाए पौधों की देखभाल का जिम्मा लिया। उनके खुद के गांव के स्टेडियम में लगाए पौधों की जिम्मेदारी छात्रों ने ली। जिस स्कूल में सुरेंद्र अध्यापक हैं, वहां लगाए गए पौधों को उनकी भाभी मुकेश ने गोद ले लिया। और पौधे पेड़ बनने लगे।

20 हजार खर्च किए, तीन ट्रैक्टर किराये पर लिए

सुरेंद्र ने पौधे लगाने के लिए वन विभाग से तीन ट्रैक्टर किराये पर लिया। पौधे खरीदे। कुल मिलाकर लगभग 20 हजार खर्च किए। इसके बाद पौधे लगाए। आज तक एक भी पौधा मुरझाया नहीं। सारे हरे भरे हैं। सुरेंद्र कुमार आज वृक्ष बन चुके पौधों को देखकर खुद पर गौरवान्वित होते हैं। वह पर्यावरण न्यायालय का आभार प्रकट करते हैं। कहते हैं-मुझे मिली सजा, मेरे लिए वरदान साबित हुई। न सजा मिलती, न मैं पौधे लगाता, न उनके पालन पोषण में रुचि जगती। और न धरती को इन वृक्षों की छाया मिल पाती।

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