कोरोना की मार ने बदल दिया काम धंधा, सिरसा में फ्रूट डिलीवरी करने लगा मित्तल कुल्फी फेम रामानंद

30 साल में पहली बार है जब रामानंद को यह कार्य छोडऩा पड़ा है। इन दिनों वह फल विक्रेता बन गया है। राजीव नगर की नुक्कड़ पर स्थित वह दुकान पर फ्रूट बेचते हुए लोगों को फ्रूट की होम डिलीवरी भेजते नजर आते हैं।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sat, 15 May 2021 02:12 PM (IST) Updated:Sat, 15 May 2021 02:12 PM (IST)
कोरोना की मार ने बदल दिया काम धंधा, सिरसा में फ्रूट डिलीवरी करने लगा मित्तल कुल्फी फेम रामानंद
डबवाली में जिस मित्‍तल कुप्‍फी का नाम सबकी जुबान पर था, कोरोना के कारण अब फ्रूट बेचने पड़ रहे हैं

डबवाली, जेएनएन। रामानंद किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उनके हाथ से बने मित्तल कुल्फी का स्वाद किसी ने एक बार चख लिया तो उससे रहा नहीं जाता। कुल्फी को कोरोना की नजर लग गई है। 30 साल में पहली बार है, जब रामानंद को यह कार्य छोडऩा पड़ा है। इन दिनों वह फल विक्रेता बन गया है। राजीव नगर की नुक्कड़ पर स्थित वह दुकान पर फ्रूट बेचते हुए लोगों को फ्रूट की होम डिलीवरी भेजते नजर आते हैं। रामानंद का कहना है कि वह किराए के मकान में रहता है, दुकान भी किराए पर है।

परिवार के साथ-साथ किराया निकालना मुश्किल हो गया। चूंकि यही उसका सीजन होता है। दुकान पर कार्य करने वाले लड़कों के वेतन की चिंता होती है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए लॉकडाऊन जल्द खुलने की आस नहीं है। इसलिए उसने कारोबार में बदलाव करना ही उचित समझा।

करीब 30 साल पहले राजस्थान के जिला झुंझनू से काम की तलाश में डबवाली आए 56 साल के रामानंद ने 5 फरवरी 1992 को कुल्फी लोगों को परोसी थी। इस कुल्फी को कोई एक बार चख ले तो वह वाह, वाह किए बगैर नहीं रह सकता। हैरत की बात है कि बिजनेस 150 रुपए से शुरु किया था। हर रोज करीब 15 हजार रुपये कमाने लगा। जादू इतना है कि सिरसा, बठिंडा के कई लोग सिर्फ कुल्फी का स्वाद चखने के लिए डबवाली आते हैं। यहीं नहीं डबवाली में सरकारी सेवा करने के लिए आने वाले अधिकतर अधिकारी इसका स्वाद चखे बिना नहीं रहते।

ताना मिला तो शुरू किया था कारोबार

रामानंद डबवाली आए तो सब्जी का कार्य शुरू किया था। 1991 में 2 रुपए में कुल्फी खाई तो रेहड़ी वाले को उलाहना दिया कि इतनी खराब कुल्फी क्यों बनाई है? रेहड़ी वाले ने ताना दिया कि खुद क्यों नहीं बना लेता। 10 दिन बाद रामानंद ने कारोबार शुरू कर दिया। जेब में पैसे नहीं थे तो 1200 रुपए की कमेटी उठाकर कॉलोनी रोड रेलवे फाटक के नजदीक रेहड़ी लगा ली। पहले दिन 150 रुपए से कारोबार शुरू किया। 75 रुपए के फायदे के साथ लॉटरी लग गई। हालांकि रामानंद ने किसी से गुर नहीं लिया। न ही कुल्फी बनाने की विधि किसी किताब में पढ़ी। बस एक ताने ने सबकुछ सीखा दिया।

यूं तैयार करते थे कुल्फी

रामानंद बताते हैं कि दूध, चीनी, क्रीम, सिंगाडे का आटा, फालूदा (सेवियां) के साथ कुल्फी तैयार होती है। पहले करीब 12 घंटे में तैयार होता था। इसके लिए सुबह 6 बजे कार्य शुरु करना पड़ता था। शाम 6 बजे तक ठंडा होता है तो कॉलोनी रोड रेलवे फाटक पर रेहड़ी लगती थी। रात करीब 12 बजे तक ग्राहक आते थे। बाद में तकनीक से जुड़ते हुए रामानंद ने 24 घंटे कुल्फी लोगों को परोसना शुरु किया था। चूंकि रेफ्रिजरेटर के जरिए गर्म सामान को ठंडा करना आसान हो गया था। रामानंद के अनुसार दिल्ली, चंडीगढ़ की कई बड़ी पार्टियों ने उसे वहां आकर बिजनेस करने के लिए कहा था। अगर मैं वहां जाता तो लोग दिल्ली, चंडीगढ़ का कुल्फा कहते। मुझे खुद पहचान नहीं मिल पाती। लेकिन आज डबवाली का कुल्फी प्रसिद्ध है तो वह मित्तल कुल्फी की वजह से।

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