दो साल पहले प्रदेश में कैशलैस सिस्टम हुआ शुरू, मगर नहीं हो सका डिजिटल

सरल केन्द्र तहसीलों और राजस्व मिलने वाले विभागों में पॉश मशीनें लगाने के सरकार ने दिए थे आदेश। अब हकीकत यह है कि फायदा नहीं हुआ तो बैंक वापस ले गए मशीनें

By Manoj KumarEdited By: Publish:Fri, 13 Dec 2019 12:39 PM (IST) Updated:Sat, 14 Dec 2019 02:15 PM (IST)
दो साल पहले प्रदेश में कैशलैस सिस्टम हुआ शुरू, मगर नहीं हो सका डिजिटल
दो साल पहले प्रदेश में कैशलैस सिस्टम हुआ शुरू, मगर नहीं हो सका डिजिटल

हिसार [वैभव शर्मा] नोटबंदी के बाद हरियाणा सरकार ने सबसे पहले सभी विभागों को डिजिटल करने का बीड़ा उठाया था। इसमें विभिन्न सरकारी विभागों में पॉस (प्वाइंट ऑफ सेल) मशीन के माध्यम से डिजिटल भुगतान लेने की रणनीति बनाई गई। इसकी शुरुआत हिसार के ई-दिशा केन्द्र (अब सरल केन्द्र) से तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी डीएस ढेसी ने खुद की। यह डिजिटल सिस्टम कुछ ही महीनों में सरकारी मशीनरी के आगे दम तोड़ गया।

अब हाल यह है कि दो वर्ष बीतने के बाद प्रदेश के अधिकांश जिलों में सरल केन्द्रों में दी जाने वाली सुविधाओं का भुगतान लोगों को नकद धनराशि देकर ही चुकाना पड़ रहा है। सिर्फ सरल केन्द्र ही नहीं बल्कि विभिन्न जिलों में तहसील व राजस्व पाने वाले विभागों तक में लोगों को परेशान होना पड़ रहा है। जब डिजिटल सिस्टम सरकारी तंत्र में फेल हुआ तो जिन बैंकों ने पॉस मशीनें दी थीं, कई स्थानों पर वह मशीनें भी वापस ले गए। अब इन सब खामियों का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

इन विभागों को किया गया था कैशलैस

बिजली निगम, जनस्वास्थ्य विभाग, नगर निगम, आरटीए, सरल केन्द्र, परिवहन विभाग, तहसील कार्यालय, कालेज, यूनिवर्सिटी, दूर संचार विभाग, हुड्डा आदि। खास बात यह है कि अगर विभाग कैशलैस होते हैं तो सरकार के एक-एक रुपये की जवाबदेही रहेगी और फ्रॉड होने की संभावना कम हो जाएगी।

ग्राउंड रियलिटी

केस 1

हिसार तहसील में दिनभर लाखों रुपये की स्टाम्प ड्यूटी हर दिन जमा कराई जाती है। इस धनराशि को जमा करने के लिए लोगों को नकद धनराशि ही लेकर आनी पड़ रही है। वजह पूछने पर बताया जा रहा है कि ऑनलाइन सिस्टम काम नहीं कर रहा। इस कारण आपको नकद ही फीस जमा करनी होगी।

केस 2

सरल केन्द्र में लाइसेंस की फीस जमा करने महाबीर कालोनी से आए ओमप्रकाश बताते हैं कि लाइसेंस फीस देने के लिए उन्होंने कार्ड आगे बढ़ाया तो कर्मचारी ने मना कर दिया और कैश ही देने को कहा। ऐसे में लघु सचिवालय के बाहर एटीएम पर गया तो वहां कैश नहीं मिला। इसके बाद मटका चौक से भुगतान एटीएम से निकलवा के आना पड़ा।

जानिए डिजिटल सिस्टम अधर में अटकने का कारण

जानकार बताते हैं कि कैशलैस सिस्टम में पहले डीआइटीएस के खातों में भुगतान लिया जाता था। मगर इसमें समस्या यह थी कि डीआइटीएस अगर राजस्व विभाग को भुगतान करने में दो दिन भी लेट हो गया तो इस राशि पर ब्याज सरकार के खाते में नहीं पहुंच पाता। ऐसे में सरकार ने फैसला लिया कि सेवाओं, तहसील व अन्य विभागों से आने वाला धन सीधे राजस्व विभाग में जमा कराना होगा। इसमें भी हर विभाग का अपना अलग हेड है तो जिस विभाग से धनराशि आई उसी विभाग के हेड में जमा करानी होती है।

ऐसे में इस प्रक्रिया के कारण कैशलैस प्रणाली असल मायने में सरकार के राजस्व सिस्टम से जुड़ ही नहीं पाई। कैशलैस इकोनॉमी बनाने से पहले यह योजना बन जानी चाहिए थी ताकि आगे दिक्कत न आए। अब राजस्व विभाग के लिए ई ग्रास पोर्टल तो बना दिया गया है, मगर खातों को ऑनलाइन जोडऩा मुश्किल हो रहा है। इसी कारण से धनराशि राजस्व विभाग में नकद रूप से मजबूरन जमा कराई जा रही है।

यह हो सकता है समाधान

विशेषज्ञों की मानें तो सरकार कोई ऐसा सिस्टम तैयार करे, जिसके तहत जिला स्तर पर भुगतान कार्ड से लिया जाए। फिर दिनभर की एकत्रित धनराशि सायं के समय राजस्व विभाग के खाते में स्थानांतरित हो और ऑनलाइन सिस्टम के तहत ही राजस्व विभाग में आई धनराशि अलग-अलग विभागों के हेड के अनुसार क्लासिफाइड हो जाए। ऑनलाइन तकनीक के माध्यम से यह काम आसानी से हो सकता है। यह प्रक्रिया होने के बाद लोग सिर्फ कार्ड से ही नहीं बल्कि इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, यूपीआइ तक भी भुगतान कर सकते हैं।

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