ज्ञानवर्धक पुस्तकों का निशुल्क वितरण करक समाज को नई दिशा दे रहा बरवाला का 80 वर्षीय बुजुर्ग
80 वर्षीय बुजुर्ग छड़ी के सहारे धीरे धीरे चलते हैं परंतु बात जब समाज को जागृत करने की हो समाज सेवा की या देशभक्ति की हो युवाओं को नई दिशा दिखाने की हो तो एकाएक उनकी आंखें चमक उठती है और उनका बात करने का अंदाज यह बयान करता है
बरवाला [राजेश चुघ] समाज सेवा और देशभकि्त का जुनून जब सिर पर सवार हो जाए तो ना तो फिर उम्र आड़े आती है और ना ही शारीरिक, मानसिक व आरि्थक समस्या। ऐसी ही एक मिसाल बरवाला के 80 वर्षीय बुजुर्ग शिक्षाविद जो शिक्षा विभाग से बतौर लेक्चरर सेवानिवृत्त हुए ने पेश की है। 80 वर्षीय बुजुर्ग छड़ी के सहारे धीरे धीरे चलते हैं परंतु बात जब समाज को जागृत करने की हो, समाज सेवा की या देशभक्ति की हो, युवाओं को नई दिशा दिखाने की हो तो एकाएक उनकी आंखें चमक उठती है और उनका बात करने का अंदाज यह बयान करता है कि बेशक वह शारीरिक रूप से थोड़ा वृद्ध हो गए हो परंतु मानसिक रूप से वह बड़े सजग हैं और अपनी बात को बड़ी बेबाकी से रखते हैं। ऐसे में उनकी आंखों में चमक आ जाती है।
उनकी समाज सेवा का आलम यह है कि वह अपनी ही लिखी आधा दर्जन पुस्तकों का खुद अपने ही खर्च पर प्रकाशन करवा कर हजारों की तादाद में पुस्तकों का नि:शुल्क वितरण कर चुके हैं। इतना ही नहीं अब भी वह सभी पुस्तकालय संचालकों को ज्ञान दान के रुप में 6 पुस्तकों का सेट नि:शुल्क वितरित करते हैं। उनका कहना है कि कोई भी स्कूल कॉलेज या जनता पुस्तकालय उनसे संपर्क करके पुस्तकों को प्राप्त कर सकते हैं।
इन 6 पुस्तकों को निशुल्क वितरित करने के लिए खुद लिख कर खुद ही करवाया प्रकाशित
जिन पुस्तकों को उन्होंने लिखा है और उनका प्रकाशन खुद करवाया है। उनके नाम इस प्रकार हैं जिनमें पहला सुख निरोगी काया, ज्ञान गंगा, न करो बच्चों की अनदेखी, सुखी परिवार, कैसे बने देश महान, देश हमारा हम देश के। इसके अलावा उनकी दो और पुस्तकें भी शीघ्र प्रकाशित होंगी। जिन्हें प्रकाशन के लिए भेजा गया है। इन पुस्तकों में बच्चों की प्रेरणात्मक व मनोरंजक कहानियां तथा मेरी जीवन यात्रा शामिल है।
35 साल की सरकारी सेवा के बाद हुए थे सेवानिवृत्त
समाज को जागरूक करने और समाज में फैले अंधियारे को उजाले में परिवरि्तत करने के उद्देश्य से लेखक रामलाल वलेचा 2014 से सद साहित्य की पुस्तकों का नि:शुल्क वितरण कर रहे हैं। बरवाला के लक्ष्मी विहार कॉलोनी निवासी सेवानिवृत्त प्रवक्ता रामलाल वलेचा 35 साल की सरकारी सेवा के बाद जुलाई 1999 में सेवानिवृत्त हुए थे। इनमें 21 वर्ष उन्होंने बरवाला के स्कूलों में अपनी सेवाएं दी। सरकार की ओर से मिलने वाली पेंशन का काफी पैसा वह समाज सेवा के अपने इस मिशन पर लगा रहे हैं।
गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार से मिली यह प्रेरणा
पढ़ना और पढ़ाना तो उनके मिशन में शामिल था ही। परंतु लिखने का और उनका प्रकाशन करवा कर नि:शुल्क वितरण करने की भावना उनके मन में कैसे उत्पन्न हुई उसका जवाब देते हुए रामलाल वलेचा बोले कि गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार में उनका निरंतर आना.जाना रहा। वहां के संस्थापक श्रीराम शमर आचार्य जिन्होंने बतीस सौ पुस्तकें लिखी। उनके संपर्क में आने के दौरान ही उनमें यह ललक पैदा हुई और प्रेरणा मिली। इसके बाद उन्होंने इस कार्य को अपने जीवन का मिशन बना लिया। उन्होंने बताया कि यह कार्य करके उन्हें बेहद संतुष्टि मिलती है।
पथ भ्रष्ट हो रहे युवाओं को दिया कामयाबी का सूत्र
आज का युवा बेहद पथ भ्रष्ट होता जा रहा है। इसलिए युवाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगे। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि युवाओं को सद साहित्य यानी अच्छी पुस्तकें पढ़नी चाहिए। आज शिष्टाचार खत्म होता जा रहा है। इसका मूल कारण है कि लोग पुस्तकों से विशेषकर अच्छी पुस्तकों से दूर होते जा रहे हैं। जबकि पुस्तकों से बड़ा कोई मित्र नहीं है। अच्छी पुस्तकें अगर युवा पढ़ेंगे उनके संपर्क में रहेंगे तो उनके विचारों में बदलाव आएगा। उनके मन में अच्छे विचार आएंगे। देश के प्रति भी एक अच्छी भावना पैदा होगी। इसलिए युवाओं को आज जरूरत है कि अच्छी पुस्तकें पढ़ कर अपने विचारों को अच्छा करने का काम करें तो आगे फिर सब कुछ अच्छा ही अच्छा होगा।