टिड्डियों पर जागरुकता से भारत के किसानों का नुकसान बचा, अफ्रीका, ईरान, इराक में ही हुई खत्‍म

भारत के किसानों को टिड्डियां न आने से राहत मिली है। यह सब कुछ फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन और टिड्डी संभावित देशों की सरकारों की सजगता के कारण संभव हुआ। अक्सर टिडि्डयां प्रजनन करने के बाद दल में ईरान अफगानिस्तान से पाकिस्तान और फिर भारत में दाखिल होती हैं।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 02:13 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 02:13 PM (IST)
टिड्डियों पर जागरुकता से भारत के किसानों का नुकसान बचा, अफ्रीका, ईरान, इराक में ही हुई खत्‍म
इस साल अभी तक भारत में टिड्डी दल का आगमन नहीं हुआ है

जागरण संवाददाता, हिसार। इस बार टिड्डियों के आतंक से भारत बच गया है। भारत के किसानों को टिड्डियां न आने से राहत मिली है। यह सब कुछ फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (एफएओ) और टिड्डी संभावित देशों की सरकारों की सजगता के कारण संभव हुआ। अक्सर टिडि्डयां प्रजनन करने के बाद भारी संख्या दल में ईरान, अफगानिस्तान से पाकिस्तान और फिर भारत में दाखिल होती हैं। मगर संगठनों की सजगता के कारण इन टिड्डियों को अफ्रीका, ईराक, ईरान में ही खत्म कर दिया। इन स्थानों पर टिड्डियां अंडे देकर आगे मार्ग पकड़ती हैं। इसके लिए भारत ने भी इन देशों को रसायनिक दवाएं उपलब्ध कराईं। फिर भी अगर टिड्डियां आ जाती तो इसके लिए सरकार ने कई प्रबंध किए हुए थे। जिसमें रसायनिक दवाएं, उपकरण, हैलीकॉप्टर आदि शामिल रहे।

रेतीली मिट्टी में 10-15 सेंटीमीटर गहराई में समूह में देती हैं अंडे

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग ने किसानों को टिड्डी दल से सुरक्षा संबंधित महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। उन्होंने बताया कि टिड्डियां छोटे एंटिना वाली और प्रवासी आदत की होती हैं। टिड्डियां अकेले या झुंड में रहती हैं, बहुभक्षी होती हैं। व्यस्क मादा टिड्डियां नमी युक्त रेतीली मिट्टियों में 10-15 सेंटी मीटर की गहराई पर समूह में 60 से 80 अंडे देती हैं। अंडे चावल के दाने के समान 7 से 9 मिलीमीटर लंबे और पीले रंग के होते हैं। अंडों से शिशु निकलते हैं उन्हें होपर या फुदका कहा जाता है जो कि सबसे ज्यादा नुकसान करता है। इनका रंग पीला, गुलाबी एवं काली धारियों युक्त होता है। टिड्डी के उड़ने की क्षमता 13 से 15 किलोमीटर प्रति घंटा होती है और इसका झुंड 200 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है। टिड्डी दल रात को झाडिय़ों एवं पेड़ों पर विश्राम करती है और सुबह उड़ना प्रारंभ करती है।

150 किलोमीटर तक की दूरी तय कर लेती हैं टिड्डियां

झुंड में टिड्डियां हजारों से लेकर लाखों की संख्या तक हो सकती है। यह झुंड दिन के समय 12 से 16 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 150 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकते हैं। ये झुंड रात के समय विभिन्न वनस्पतियों पर बैठ जाते हैं और अधिक से अधिक क्षति पहुंचाते हैं। इन टिड्डियों का रंग जब गहरा भूरा या पीला होने लगे तो यह परिपक्व व्यस्क बन जाती हैं जो अंडे देने में सक्षम होती हैं। अंडे देने की स्थिति आने पर ये टिड्डियां 2-3 दिनों तक उड़ नहीं पाती।

टिड्डियां आने पर इन बातों का रखें ध्यान

- हरियाणा में टिड्डियों के झुंड के प्रवेश करने की संभावना कम है परन्तु सचेत रहकर आपसी सहयोग करें ।

- टिड्डियों के झुंड के दिखाई देने पर ढोल या ड्रम बजाकर इन्हें फसलों पर बैठने से रोका जा सकता है।

- रेतीले टिब्बों, इलाकों में अगर टिड्डियों के झुंड (पीले रंग की टिड्डियां) जमीन पर बैठी दिखाई दे तो उस स्थान को चिन्हित कर तुरंत सूचित करें।

- टिड्डियां अगर झुंड में न होकर अलग-2 हैं और इनकी संख्या कम है तो घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है।

- अनावश्यक कीटनाशकों का प्रयोग फसलों पर न करें।

टिड्डी दल के नियंत्रण के लिए सिफारिश किए गए कीटनाशक

कीटनाशक- मात्रा प्रति हैक्टेयर

क्लोरपायरिफास- 20 फीसद ईसी 1.2 लीटर

क्लोरपायरिफास- 50 फीसद ईसी 480 मिली लीटर

मैलाथियान- 50 फीसद ईसी 1.85 लीटर

मैलाथियान- 25 फीसद डब्ल्यूपी 3.7 किलो ग्राम

डैल्टामैथरिन- 2.8 फीसद ईसी 450 मिली लीटर

फिपरोनिल- 5 फीसद एससी 125 मिली लीटर

फिपरोनिल- 2.8 फीसद ईसी 225 मिली लीटर

लैम्डा-साइहैलोथ्रीन- 5 फीसद ईसी 400 मिली लीटर

लैम्डा-साइहैलोथ्रीन- 10 फीसद डब्ल्यूपी 200 ग्राम

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