मुश्किलों का अंधेरा झेलकर मिट्टी के दीयों से दीवाली को रोशन बनाने में जुटे हैं बहादुरगढ़ के कारीगर

दीये बनाने के लिए स्पेशल मिट्टी की जरूरत होती है। यह शहर में ताे कहीं मिल नहीं पाती। ऐसे में गांवों से मंगवानी पड़ रही है। समय के साथ यह खूब महंगी भी हो गई है। सबसे बड़ी दिक्कत इन दीयों को पकाने में आती है।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sun, 17 Oct 2021 05:27 PM (IST) Updated:Sun, 17 Oct 2021 05:27 PM (IST)
मुश्किलों का अंधेरा झेलकर मिट्टी के दीयों से दीवाली को रोशन बनाने में जुटे हैं बहादुरगढ़ के कारीगर
इस बार न मिट्टी आसानी से मिल पा रही, न ही पकाने के लिए जगह, छत पर पकाते हैं दीये

जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : मिट्टी के दीयों के बिना दीपावली की रौनक शायद ही बने, मगर इस रोशनी के लिए जो दीयों को तैयार करते हैं वे अब मुश्किलों का अंधेरा झेलने को विवश हैं। उनकी जद्दोजहद इस परंपरा को तो सींच रही है, मगर इसके लिए उन्हें काफी कुछ दांव पर लगाना पड़ रहा है। दहशरा पर्व के बाद से ही मिट्टी के दीये और दूसरी चीजें दीवाली के लिए तैयारी की जा रही हैं। ऐसे में चाक घूमने लगा है। समय के साथ हाथ से चलने वाले चाक तो अब नहीं बचे हैं, मगर एक तरफ कारीगरों के लिए आसानी और सुविधा हुई है तो दूसरी तरफ मुश्किलें भी बढ़ी हैं।

मुश्किल से मिल पाती है मिट्टी, आवे के लिए नहीं जगह

दरअसल, दीये बनाने के लिए स्पेशल मिट्टी की जरूरत होती है। यह शहर में ताे कहीं मिल नहीं पाती। ऐसे में गांवों से मंगवानी पड़ रही है। समय के साथ यह खूब महंगी भी हो गई है। मिट्टी को तो किसी तरह प्रबंध कर लिया जाता है, मगर सबसे बड़ी दिक्कत इन दीयों को पकाने में आती है। पहले तो आसपास में खुली जगह होती थी। उसी में आवा लगाया जाता था। एक साथ उस आवे में मिट्टी के बर्तन, दीये और अन्य चीजें पकती थी। मगर आवे के लिए अब तो जगह ही नहीं है। मजबूरी में शहर के अंदर काफी कारीगर तो अपने घरों की छत पर ही दीयों को पकाते हैं। इसके लिए छोटा सा आवा बनाया जाता है। इससे उनके आशियाने जर्जर हो रहे हैं। छत में दरार आ रही हैं और बारिश में पानी टपकता है। शहर की उत्तम कालोनी में इन दिनों दीये बनाने में जुटे पिंकू व उनकी पत्नी दीपा का कहना है कि कई पीढ़ियों से उनका परिवार दीये व मिट्टी की अन्य चीजें बनाते आ रहे हैं। अब कई तरह की मुश्किलें आ रही हैं।

डिजाइनदार दीयों की भी है मांग

शहरों में अब डिजाइनदार दीयों की मांग बढ़ रही है। रंग-बिरंगी लड़ियों के बावजूद मिट्टी के दीये दीवाली की परंपरा का हिस्सा हैं। ऐसे में समय के साथ दीयों पर आधुनिकता का रंग भी चढ़ा है। इन दिनों शहर व गांवों में खूब दीये तैयार किए जा रहे हैं। अगले एक सप्ताह तक ये दीये बनेंगे। उसके बाद इन्हें पकाकर कई जगह भेजा जाएगा। शहर के कारीगरों का कहना है कि दिल्ली और आसपास के शहरों से आर्डर पर दीप तैयार किए जा रहे हैं।

मिट्टी व गाय के गोबर से भी तैयार किए जा रहे दीये

सूर्या फाउंडेशन द्वारा संचालित आदर्श गांव योजना के अंतर्गत गाय के गोबर व मिट्टी के मिश्रण से दीये बनाए जा रहे हैं। इसके लिए गांवों की महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया गया। प्रशिक्षक संजय तिवारी ने बताया कि गाय का ताजा गोबर 700 ग्राम, तालाब की काली चिकनी मिट्टी या मुल्तानी मिट्टी 250 ग्राम तथा 50 ग्राम मैदा लकड़ी यह सभी सामग्री को एक दिन पहले मिक्स करके रख देते हैं। फिर दूसरे दिन दीये बनाने में प्रयोग करते हैं। इससे दीया अच्छा व सुंदर बनेगा। गांव की महिलाओं को दीये बनाने के लिए इसलिए भी प्रशिक्षण दिया गया, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।

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