प्रदेश की बिगड़ रही आबोहवा, धारूहेड़ा में सर्वाधिक 411 पहुंचा एयर क्‍वालिटी इंडेक्स, सेहत पर पड़ सकत है भारी

सात शहर ऐसे जहां प्रदूषण 300 माइक्रो ग्राम प्रतिघन मीटर से अधिक। यह प्रदूषण की गंभीर स्थिति है। इतना प्रदूषण होने पर सामान्य लोगों को भी सांस लेने की तकलीफ हो सकती है। सरकार के दावे भी प्रदूषण को रोकने में अधिक कारगर नहीं नजर आ रहे हैं।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sat, 24 Oct 2020 11:49 AM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 11:49 AM (IST)
प्रदेश की बिगड़ रही आबोहवा, धारूहेड़ा में सर्वाधिक  411 पहुंचा एयर क्‍वालिटी इंडेक्स, सेहत पर पड़ सकत है भारी
पराली के साथ निर्माण, फैक्ट्रियां व वाहन प्रदूषण का बन रहे कारक।

जेएनएन, हिसार । प्रदूषण को लेकर प्रदेश में अभी राहत नजर नहीं आ रही है। दोपहर ही नहीं बल्कि सुबह भी प्रदूषण सर्वाधिक पहुंच रहा है। शनिवार को प्रदेश में सर्वाधिक धारूहेड़ा का एयर क्वालिटी इंडेक्स 411 माइक्रो ग्राम प्रतिघन मीटर दर्ज किया गया है। यह प्रदूषण की गंभीर स्थिति है। इतना प्रदूषण होने पर सामान्य लोगों को भी सांस लेने की तकलीफ हो सकती है। वहीं मरीजों, बुजुर्गो व बच्चों के लिए तो बाहर निकलना भी खतरे से खाली नहीं है। सिर्फ यह नहीं बल्कि सात जिलों में एक्यूआई 300 माइक्रो ग्राम प्रतिघन मीटर से अधिक दर्ज किया गया। इतने प्रदूषण से लोगों को सुबह के समय स्मॉग का एहसास हो रहा है। सरकार के दावे भी प्रदूषण को रोकने में अधिक कारगर नहीं नजर आ रहे हैं। प्रदूषण में पीएम 2.5 ही नहीं बल्कि पीएम 10 भी शामिल है। यानि पराली के साथ निर्माण, फैक्ट्रियां और वाहन बराबर प्रदूषण का कारक बन रहे हैं।

यह है प्रदेश में एयर क्वालिटी इंडेक्स

अंबाला- 267

बहादुरगढ़- 318

बल्लभगढ़- 318

धारूहेड़ा- 411

फरीदाबाद- 370

फतेहाबाद- 334

गुरुग्राम-322

हिसार- 344

जींद- 316

कैथल- 281

करनाल- 221

कुरुक्षेत्र- 292

मानेसर- 284

पानीपत- 262

सिरसा- 247

यमुनानगर- 226

प्रदेश में 23 अक्टूबर को इतने स्थानों लगाई गई आग

अंबाला- 20

फतेहाबाद- 10

हिसार- 4

जींद- 5

कैथल- 16

पानीपत- 1

पलवल- 1

सिरसा- 2

यमुनानगर- 7

पहली बार दो सेटेलाइट का किया जा रहा प्रयोग

हरसेक के डायरेक्टर डा. वीएस आर्य बताते हैं कि पहले नासा की सोआमी सेटेलाइट के जरिए हरसेक एक्टिव फायर बर्निंग वाले स्थानों का डाटा लेता था, मगर इस साल अमेरिकन नोआ नाम की सेटेलाइट का प्रयोग भी किया जा रहा है। ताकि चप्पे-चप्पे पर नजर रखी जा सके। इन दोनों के डाटा को सरकारी विभागों के साथ साझा किया जा रहा है। फसल अवशेष जलाने के मामलों में सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला स्तर तक इस बार मॉनीटरिंग हो रही है। मामला गंभीर से इसलिए अधिकारी सेटेलाइट डाटा पर ही सवाल उठा रहे हैं। हरसेक प्रशासन बताता है कि सेटेलाइट एक बार में 38 एकड़ रेडियस को कवर करती है। अगर इस 38 एकड़ में कहीं आग लगी है तो वह उसे पकड़ लेगी। सेटेलाइट के थर्मल सेंसर सिर्फ बड़ी आग को ही पकड़ते हैं। चूल्हे की आग यह चिन्हित करने में यह सक्षम नहीं है। अगर ऐसा होता तो फिर प्रदेश में हजारों ऐसे प्वाइंट होते जहां आग लगी पाई जाती। सेटेलाइट 375 बाई 375 मीटर के क्षेत्र की बर्निंग को ही पकड़ सकती है।

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