राखीगढ़ी के बाद अब भिवानी में हड़प्पाकाल की दीवार मिली, मृदभांड की भी हो रही धुलाई
भिवानी के गांव तिगड़ाना के खेड़े में शुरू हुई खोदाई में हड़प्पाकालीन दीवार मिली है। इसके साथ ही बड़े पैमाने पर मृदभांड भी मिले हैं। कई अहम जानकारी सामने आ सकती है।
भिवानी, जेएनएन। हिसार के राखीगढ़ी के बाद अब पुरातात्विक शोध परियोजना तिगड़ाना के तहत यहां के गांव तिगड़ाना के खेड़े में शुरू हुई खोदाई में हड़प्पाकालीन दीवार मिली है। इसके साथ ही बड़े पैमाने पर मृदभांड भी मिले हैं। खोदाई के लिए तिगड़ाना आए हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ के पुरातत्व विभाग के छात्र बृहस्पतिवार को लौट गए हैं।
इस सीजन में हुई इस खोदाई में अब तक सबसे महत्वपूर्ण हड़प्पाकालीन दीवार व मृदभांड ही हैं। हालांकि मृदभांड(मिट्टी के मटकों के टुकड़े) कौन से काल के हैं, अभी यह तय नहीं हो सका है। पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ इन मृदभांड की धुलाई कर रहे हैं। धुलाई के बाद ही पता चल सकेगा कि ये मृदभांड कौन से काल से संबंध रखते हैं। करीब एक पखवाड़े पूर्व हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ के पुरातत्व विभाग से एमए कर रहे 24 विद्यार्थी और पांच शोधार्थी तिगड़ाना आए थे।
हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय जांट पाली के पुरातत्व विभाग अध्यक्ष एवं पुरातात्विक शोध परियोजना तिगड़ाना के निदेशक डा. नरेंद्र परमार ने बताया कि वर्ष 1974-75 में तिगड़ाना की हड़प्पाकालीन गांव के रूप में पहचान हुई थी। अभी हड़प्पा काल की दीवार तो मिल चुकी है। इसके साथ ही काफी संख्या में मृदभांड भी मिले हैं, उनकी वाङ्क्षशग की जा रही है। बता दें कि तिगड़ाना के अलावा नौरंगाबाद व मिताथल में भी हड़प्पाकाल के प्रमाण पुरातत्व विभाग को मिल चुके हैं। विभाग के विशेषज्ञों की खोज अभी जारी है।
बता दें कि इससे पहले हिसार के राखी गढ़ी में हड़प्पाकालीन सभ्यता के प्रमाण मिल चुके हैं। यहां मिले हजारों साल पुराने कंकालों पर भी बड़ी जानकारी सामने आ चुकी है। वहीं हाल में क्रेंदीय बजट में भी राखीगढ़ी को राष्ट्रीय पर्यटन बनाने को लेकर स्पेशल बजट जारी करने की घोषणा की गई है। यहां पर एक भव्य म्यूजियम बनाने की तैयारी है। हरियाणा सरकार भी इसके लिए विशेष तैयारी कर रही है। राखीगढ़ी में हड़प्पाकालीन बर्तन, चूडि़या, मनके और अन्य चीजें मिली थी। ऐसे में माना यह जा रहा है कि सरस्वती नदी के साथ लगते छोटे बड़े शहर यहां बसे थे, जो खेती भी करते थे और उनका रहन सहन एक विशेष तरह की थी। भिवानी में भी खोदाई के दौरान विशेष जानकारी सामने आ सकती है।