हिसार में राजस्व विभाग की गिरदावरी रिपोर्ट के अनुसार 245 करोड़ रुपये का नुकसान कर गई सफेद मक्खी
राजस्व विभाग की गिरदावरी रिपोर्ट की मानें तो 9 ब्लॉकों में सबसे अधिक नुकसान हिसार उपमंडल में हुआ है। इसमें बालसमंद के गांवों में 79 फीसद तक नुकसान मिला है। रिपोर्ट को प्रशासन को भेज दिया गया है। मुआवजे की धनराशि कब तक आएगी यह अभी तक स्पष्ट नहीं है।
हिसार, जेएनएन। कपास में साल दर साल किसानों का नुकसान बढ़ता जा रहा है। कुछ माह पहले सफेद मक्खी का प्रकोप कपास की फसल पर देखा गया था। इसके बाद किसान मुआवजे की मांग को लेकर सड़कों तक पर उतर आए। ऐसे में सरकार के निर्देश पर प्रशासन ने गिरदावरी कराई। अब इसकी रिपोर्ट आ गई है। और नुकसान का आंकलन कर सरकार को भेज दिया गाय है। हैरान करने की बात है के सफेद मक्खी के कारण 245 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। यह धनराशि सरकार को किसानों के मुआवजे के रूप में भेजी गई है। गिरावरी करने गई राजस्व विभाग की टीम को ऐसे कई गांव मिले जहां कपास की शत फीसद फसल तबाह हो गई।
सबसे अधिक नुकसान हिसार उपमंडल में हुआ
राजस्व विभाग की गिरदावरी रिपोर्ट की मानें तो 9 ब्लॉकों में सबसे अधिक नुकसान हिसार उपमंडल में हुआ है। इसमें बालसमंद के गांवों में 79 फीसद तक नुकसान मिला है। अब इस रिपोर्ट को प्रशासन को भेज दिया गया है। मुआवजे की धनराशि कब तक आएगी यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। वहीं दूसरी तरफ किसान जल्द से जल्द मुआवजे की मांग कर रहे हैं। इसके लिए दो दिन पहले किसानों की बैठक भी हुई। दरअसल सफेद मक्खी के कारण हर साल कपास की फसल तबाह हो रही है। 2019 में काफी हद तक किसान इस प्रकोप से बचे रहे थे मगर 2020 में फिर से यह प्रकोप दिखा।
अत्यधिक वर्षा से हुए नुकसान की भरपाई को मिला 34.79 करोड़
वर्ष 2019 में खरीफ के सीजन में अत्यधिक बारिश के कारण जलभराव हो गया था। जिससे किसानों की कई फसलें पानी में डूब गईं थी। इसके लिए गिरदावरी कर रिपोर्ट शासन को भेजी गई थी। अब राजस्व विभाग के पास यह मुआवजा आ चुका है। सरकार से 34.79 करोड़ रुपये का मुआवजा जारी हुआ है।
पर्यावरण के आधार पर तय होता है नुकसान या फायदा
चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कपास अनुभाग से सहायक विज्ञानी डा. करमल मलिक बताते हैं कि कपास मुख्यत: सिरसा, हिसार, भिवानी, जींद, फतेहाबाद, चरखी दादरी आदि जिला में अधिक होती है। यह काफी जोखिम की फसल है। इसमें बुआई के साथ ही खाद, बीज आदि सामानों में लागत लग जाती है। जबकि दूसरी फसलों में धीरे-धीरे लागत लगती है। शुरुआती स्टेज में लागत लग जाने के कारण अगर कोई समस्या आती है तो लागत और समय दोनों की बर्बाद होने की संभावना बनी रहती है। यह पूरी तरह से पर्यावरण अधारित फसल है, अगर शुरुआत के दिनों में कोई बीमारी या सफेद मक्खी जैसे प्रभाव आ गए तो वह काफी नुकसान पहुंचाते हैं। अगर बाद में आए तो थोड़ा ही असर आता है। ऐसे में पर्यावरण बहुत अहम भूमिका निभाता है।