आखिर तोड़ दिया गया अंग्रेजों के शासनकाल में बना 140 साल पुराना रेलवे फुटओवर ब्रिज

तब इस पुल के जरिये अंग्रेज पुराने शहर में जाया करते थे। कैंप चौक से लेकर नगर निगम तक के क्षेत्र में अंग्रेज रहते थे। इस क्षेत्र में भारतीयों को घुसने की इजाजत नहीं थी।

By manoj kumarEdited By: Publish:Fri, 24 May 2019 12:29 PM (IST) Updated:Sat, 25 May 2019 01:03 PM (IST)
आखिर तोड़ दिया गया अंग्रेजों के शासनकाल में बना 140 साल पुराना रेलवे फुटओवर ब्रिज
आखिर तोड़ दिया गया अंग्रेजों के शासनकाल में बना 140 साल पुराना रेलवे फुटओवर ब्रिज

हिसार, जेएनएन। अंग्रेजों के शासनकाल में बना 140 साल पुराना फुटओवर ब्रिज अब तोड़ दिया गया है। करीब दो महीने पहले ही इस पुल को आवागमन के लिए बंद कर दिया गया था। उत्तर-पश्चिम रेलवे जयपुर की प्रिंसिपल चीफ सेफ्टी ऑफिसर अरूणा सिंह के आदेश पर इस पुल को तत्काल प्रभाव से बंद करके तोडऩे के लिए टेंडर लगाया गया था। इस पुल से रोजाना करीब 10 हजार यात्री गुजरते थे। रेलवे ने बिना किसी पूर्व जानकारी अचानक इस पुल को बंद कर दिया था।

दो माह पहले उत्तर-पश्चिम रेलवे जयपुर की प्रिंसिपल चीफ सेफ्टी ऑफिसर अरूणा सिंह ने जब हिसार रेलवे स्टेशन का निरीक्षण किया तो उन्होंने इस फुट ओबर ब्रिज की ऊंचाई पर सवाल उठाए। जब इंजीनियरों ने इस पुल के बारे में डिटेल उनके सामने रखी तो वे खुद हैरान रह गई कि कैसे यात्रियों की सुरक्षा के साथ सरेआम खिलवाड़ किया जा रहा है। मुबंई जैसा हादसा हिसार फुट ओवर ब्रिज पर न हो इसके लिए उन्होंने तुरंत इस पुल को बंद करने के आदेश दे दिए।

ये है नियम

नियमानुसार रेल लाइन विद्युतीकरण के बाद जब फुट ओवर ब्रिज के नीचे से हाईवोल्टेज लाइन गुजरती है तो उसमें करीब दो मीटर का फासला होना जरूरी है।

ऐसे किया जा रहा था खिलवाड़

फुटओवर ब्रिज के महज एक फुट से भी कम फासले से हाईवोल्टेज लाइन गुजर रही है। ऐसे में कभी भी यह तार पुल से भिड़ सकती है। बारिश के दौरान या तेज हवाएं चलने पर भी इसके पुल से भिडऩे का डर रहता है। अगर यह तार पुल से भिड़ती तो कई यात्रियों की जान इससे जा सकती थी। इसके अलावा यह पुल काफी समय पहले ही जर्जर हो चुका है मगर इसके बावजूद इसे बंद करने के बजाय खुला रखा गया।

(इतिहासकार एवं डीन कालेज प्रोफेसर महेंद्र सिंह) के अनुसार

अंग्रेजों के समय यह था पुल का महत्व

- दरअसल यह पुल अंग्रेजों के शासन काल में आज से करीब 140 साल पहले बना था। इस पुल के जरिये अंग्रेज पुराने शहर में जाया करते थे। कैंप चौक से लेकर नगर निगम तक के क्षेत्र में अंग्रेज रहते थे। इस क्षेत्र में भारतीयों को घुसने की इजाजत नहीं थी। अंग्रेजों ने रेलवे लाइन से उस पार जाने के लिए अपने लिए इस पुल को बनवाया था। इस पुल का महत्व यह भी था कि यह शहर को चर्च से जोड़ता था। इसके द्वारा अंग्रेज अपनी मिश्नरीज गतिविधियों को बढ़ाते थे।

अंग्रेजों ने तीन कारणों से हिसार में रेलवे स्टेशन बनाया

1872 में हिसार का रेलवे स्टेशन अंग्रेजों ने बनवाया था। 1867 में हिसार के डिप्टी कैलेक्टर ने रेलवे स्टेशन बनाने के लिए कोलकाता पहला लेटर लिखा था कि हिसार को रेलवे लाइन से जोड़ा जाए। एक साल बाद कोलकाता से लेटर का जवाब आता है कि कारण बताया जाए कि हिसार को रेलवे स्टेशन से क्यों जोड़ा जाए। इसके बाद हिसार के डिप्टी कैलेक्टर ने यहां सर्वे करवाकर एक रिपोर्ट तैयार की। इसके बाद उन्होंने 1870 में कोलकाता फिर लेटर भेजा जिसमें उन्होंने हिसार को रेलवे लाइन से जोडऩे के तीन कारण बताए। तीन कारण भेजने के बाद कोलकाता से 1871 में हिसार लेटर आता है जिसमें अधिकारी लिखते हैं कि हिसार को तुरंत रेल मार्ग से जोड़ा जाए। इसके बाद 1872 में हिसार का रेलवे स्टेशन बनता है।

ये हैं तीन कारण जिसके कारण अंग्रेजों ने हिसार को रेलमार्ग से जोड़ा

1. हिसार का चना, कपास, देसी घी उच्च क्वालिटी का है। इसका उपयोग इंग्लैंड में किया जा सकता है। वहां के लिए यह तीनों चीजें महत्वपूर्ण हैं।

2. हिसार में कभी घोड़ों की महामारी नहीं आई। हिसार में 1815 में घोड़ा फार्म का निर्माण हो चुका है। यहां की जलवायु घोड़ों के हिसाब से अनुकुल है। यहां घोड़े रखकर हम सेना की चार छावनी अंबाला, मुल्तान, दिल्ली और फिरोजपुर में सप्लाई कर सकते हैं। छावनी के घोड़ों को यहां रखा जा सकता है। जरूरत पडऩे पर पैदल जाने के बजाय युद्ध में रेलमार्ग से घोड़े भिजवाए जा सकते हैं। इससे घोड़े बिना थके छावनी तक पहुंचेंगे और अच्छी परफोरमेंस देंगे। दुनिया में अरबी घोड़े के बाद हिसार के घोड़े उच्च क्वालिटी के माने जाते थे। घोड़ों को खिलाई जाने वाली अंजना घास हिसार में ही पाई जाती थी।

3. कराची का बंदरगाह हिसार के पास है। इसलिए हिसार को रेलमार्ग से जोड़ा जाए।

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