सुरक्षा बलों के जवान भी हो गए थे राममय

मैं 12 साल के उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बन गया था। इस तरह मैं अब 50 साल पुराना स्वयंसेवक हूं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 07:49 PM (IST) Updated:Mon, 03 Aug 2020 07:49 PM (IST)
सुरक्षा बलों के जवान भी हो गए थे राममय
सुरक्षा बलों के जवान भी हो गए थे राममय

मैं 12 साल के उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बन गया था। इस तरह मैं अब 50 साल पुराना स्वयंसेवक हूं। मुझे पूरी तरह याद है कि राम मंदिर आंदोलन में शामिल होने के लिए लोगों से किसी ने आग्रह नहीं किया था बल्कि अपनी इच्छा से ही लोग उसमें शामिल हो गए थे। हर कोई कार सेवा के लिए अयोध्या जाना चाहता था। उन्हें जाने में किसी भी प्रकार की परेशानी न हो, इसके काफी लोगों को स्थानीय स्तर पर जिम्मेदारी सौंपी गई। मुझे भी कारसेवकों को भेजने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जिम्मेदारी मिलने के बाद ऐसा महसूस हुआ था जैसे न जाने कितनी बड़ी उपलब्धि हासिल हो गई हो। मैं ही नहीं बल्कि जो भी लोग व्यवस्था में लगे थे, सभी गौरवान्वित महसूस कर रहे थे।

मैंने उस दौरान महसूस किया था कि सुरक्षा बलों के जवान भी राममय हो गए थे। वे मुंह से कुछ बोल नहीं पाते थे लेकिन उनकी आंखें सबकुछ बयां कर रही थीं। कहने का अभिप्राय यह है कि चाहे आम हो या खास सभी लोग राममय हो गए थे। उस समय लग रहा था कि अब कभी भी मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा। भावनाओं का जैसा ज्वार राम मंदिर आंदोलन के दौरान 1992 में देखा वैसा किसी भी विषय को लेकर न पहले देखा और न ही अब तक। जितने लोग कार सेवा के लिए अयोध्या में गए थे, उनसे कई गुणा लोग उनके लिए व्यवस्था करने में लगे थे। ढांचा ढहने के बाद भी भय नहीं था

अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद का ढांचा ढाह दिया गया, उसके बाद माहौल कुछ अलग हो गया था। इसके बाद भी मेरे मन में ही नहीं बल्कि किसी के मन में एक फीसद भी डर नहीं था कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर सकती है। सभी को ऐसा लग रहा था जैसे जीवन का सबसे बड़ा काम किया है। अब जाकर सपना साकार हुआ है। पांच अगस्त को भूमिपूजन के साथ ही मंदिर निर्माण शुरू हो जाएगा। जीवन सफल हो गया। एक दीपावली नहीं बल्कि सैकड़ों दीपावली जैसी खुशी है। सैकड़ों वर्षों के बाद शुभ दिन आया है। भगवान श्रीराम राष्ट्र की अस्मिता के प्रतीक हैं। सभी लोग भूमिपूजन के दिन दीपावली की तरह दीप जलाएं।

(प्रस्तुति: आदित्य राज, गुरुग्राम)

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