लंबे संघर्ष व त्याग के बाद तैयार होता है अमित जैसा शिष्य: अनिल धनखड़

मुक्केबाज अमित पंघाल को जकार्ता में ओलंपिक चैंपियन को हराने के लायक बनाने वाले मुक्केबाजी प्रशिक्षक अनिल धनखड़ का त्याग व परिश्रम कम नहीं रहा। प्रशिक्षक की कई वर्ष की कड़ी मेहनत के कारण अमित जकार्ता में चैंपियन बन सके हैं। प्रशिक्षक का कहना है कि उनका सपना है कि वो जहां नहीं खेल सके और देश के लिए पदक नहीं जीत सके हैं वहां के लिए ऐसे शिष्य तैयार करेंगे, जो देश का नाम रोशन करे। यह अभी शुरुआत है आगे कई पदक

By JagranEdited By: Publish:Sun, 02 Sep 2018 06:12 PM (IST) Updated:Sun, 02 Sep 2018 06:12 PM (IST)
लंबे संघर्ष व त्याग के बाद तैयार होता है अमित जैसा शिष्य: अनिल धनखड़
लंबे संघर्ष व त्याग के बाद तैयार होता है अमित जैसा शिष्य: अनिल धनखड़

मुक्केबाज अमित पंघाल को जकार्ता में ओलंपिक चैंपियन को हराने के लायक बनाने वाले मुक्केबाजी प्रशिक्षक अनिल धनखड़ का त्याग व परिश्रम कम नहीं रहा। प्रशिक्षक की कई वर्ष की कड़ी मेहनत के कारण अमित जकार्ता में चैंपियन बन सके हैं। प्रशिक्षक का कहना है कि उनका सपना है कि वो जहां नहीं खेल सके और देश के लिए पदक नहीं जीत सके हैं वहां के लिए ऐसे शिष्य तैयार करेंगे, जो देश का नाम रोशन करें। यह अभी शुरुआत है आगे कई पदक हैं। पंघाल के प्रशिक्षक अनिल धनखड़ ने दैनिक जागरण संवाददाता अनिल भारद्वाज से खास बातचीत के मुख्य अंश : आपने कैसे पहचाना कि अमित अच्छा बॉक्सर बन सकता है?

- वर्ष 2006 में मैंने अमित के गांव मयाना (रोहतक) में दा हीरोज सर छोटू राम बॉक्सिंग अकादमी खोली थी तब अमित काफी छोटा और अपने भाई अजय के साथ आता है। मैंने उसे ¨रग में उतारने की जल्दी नहीं की। छोटे बच्चों के अलग अलग टीम इवेंट में खिलाता था और देखता था कि कौन सा बच्चा कैसे खेल रहा है। उस समय पहचान गया था कि ¨रग में उतरा जा सकता है। उस समय का बच्चा आज अमित पंघाल बन गया है। एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार करने के लिए प्रशिक्षक के तौर पर क्या क्या परेशानी सामने आई?

- परेशानी बहुत रही लेकिन मैंने हार नहीं मानी। आज अमित चैंपियन हैं तो शायद सबको लगता होगा कि ऐसे ही चैंपियन बन गए। मैं जब 2011 मैं तबादला लेकर गुरुग्राम आया, तो अमित साथ आ गया। मैंने अमित को कहा कि कहीं और प्रशिक्षण कर ले। लेकिन वो नहीं माना। मेरे पास प्रशिक्षण के लिए ¨रग नहीं था, लेकिन अमित की जिद के कारण मैंने नेहरू स्टेडियम में बिना ¨रग के प्रशिक्षण देना शुरू किया। 2015 में दैनिक जागरण के सहयोग से मुझे खेल विभाग ने ¨रग दी। ¨रग ओपन-खुले में होने कारण सर्दी, धूप-बरसात में परेशानी रहती थी। बरसात के मौसम में सबसे ज्यादा परेशानी रहती थी। मैं बारिश बंद होने का इंतजार करता था ताकि प्रशिक्षण किया जा सके। अमित में बड़ा हिम्मत वाला बच्चा है। उसने प्रशिक्षण के लिए कड़ी धूप, सर्दी व बरसात नहीं देखी। कहते हैं एक खिलाड़ी के साथ प्रशिक्षक का त्याग होता है, आपका संघर्ष बहुत रहा होगा?

- सुबह - शाम प्रशिक्षण व दिन में ड्यूटी देनी होती है। ऐसे मैं परिवार को समय नहीं दे पाया। आप कह सकते हैं मेरे त्याग में मेरी पत्नी सरिता रानी, पिता,माता का बड़ा सहयोग रहा। उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा। जब अमित की देश के अन्य शहरों में फाइट होती थी तो मैं स्वयं देखने जाता था कि क्या कमी है ताकि उसे दूर किया जा सके। ऐसा कई वर्ष तक चला है। यही कारण है कि मैं परिवार से दूर ही रहा। मेरा व अमित का संघर्ष लंबा रहा है। अमित एक बार सब जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप का चैंपियन है और 2 बार जूनियर व 1 बार सीनियर के अलावा 4 बार लगातार ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में चैंपियन रहने के साथ बार बेस्ट मुक्केबाज रहा है 2017 विश्व चैंपियनशिप (हैम्बर्ग-जर्मनी) का क्वार्टर फाइनल मुकाबला उज्बेक मुक्केबाज से अमित हार गए थे। आपने वो फाइट देखी और कहा अमित के साथ अन्याय हुआ। अब अमित ने भी कहा कि हैम्बर्ग का बदला लिया है?

- उस समय यह बात मैंने अमित को नहीं बताई थी। इससे एक खिलाड़ी टूट जाता है लेकिन यह सच है कि उस मुकाबले में रेफरी मानसिक तौर पर दबाव में था कि उसके सामने ओलंपिक चैंपियन है और दूसरा नया खिलाड़ी। ऐसे में अमित को उसके हक के अंक नहीं मिले थे। मैंने उसी समय अमित को कहा था कि उज्बेक मुक्केबाज जकार्ता में मिलेगा और उसे इस तरह पंच मारने हैं कि रेफरी मजबूर हो जा अंक देने के लिए। जकार्ता में जब गए थे तो उज्बेक के मुक्केबाज को हराने का लक्ष्य लेकर गए थे। एक शिष्य ने गुरु की बात का सम्मान दिया और चैंपियन बन गया। आपने कई बार सरकार से मांग रखी कि शिक्षा विभाग से खेल विभाग में भेज दिया जाए?

- हां, अमित की तैयारी कराने के लिए ज्यादा समय जरूरत थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। आज मेरे पांच-छह खिलाड़ी राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में है और राष्ट्रीय शिविर में किन खिलाड़ियों को जगह मिलती है यह आप जानते हैं। हालात यह रहे हैं कि जब मैं राष्ट्रीय चैंपियनशिप में अपने मुक्केबाजों का मुकाबला देखने जाना होता था तो मुझे अपनी निजी छुट्टी लेनी होती थी। मुझे छुट्टी तक नहीं मिलती थी। शिक्षा विभाग में डीपी के पद पर हैं। फिर यह सुबह शाम अलग से मेहनत करने का कारण?

- आपको पता है कि मैं दो बार ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियन रहा हूं और एनएसएनआइएस डिग्री धारक हूं। मुक्केबाजी मेरा जीवन है। मैं इस से दूर नहीं रह सकता था ओर पैसा सब कुछ नहीं है। परिचय :

नाम : अनिल धनखड़

गांव : सिमली, जिला रोहतक

पिता का नाम : महावीर ¨सह धनखड़

एनएसएनआइएस डिग्री : 1999

एम फिल, फिजिकल एजुकेशन : 2008

शिक्षा विभाग में नौकरी ज्वाइ¨नग : 2011

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