संस्कारशाला : अधिकार के साथ जिम्मेदारी का भी हो एहसास : रेखा शर्मा

संपत्ति चाहे अपनी हो या सार्वजनिक उसका मूल्य नहीं आंका जा सकता। एक धनहीन व्यक्ति के लिए उसकी छोटी सी झोपड़ी उतनी ही मूल्यवान होती है जितनी एक अमीर के लिए उसका महलों जैसा घर क्योंकि वह उसकी निजी संपत्ति होती है जिस पर उसी का अधिकार होता है। हम सार्वजनिक संपत्ति की बात करें तो वह सभी की होती है। अर्थात वह सभी नागरिकों की है। हम यह तो जानते हैं कि उसके उपयोग का अधिकार हमारा है लेकिन हमें इस बात से भी जागरूक होना होगा कि उसकी देखभाल की जिम्मेदारी हम सभी नागरिकों की है। यह इसलिए है क्योंकि इस संपत्ति का उपयोग और उपभोग हम ही कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 07:39 PM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 07:39 PM (IST)
संस्कारशाला : अधिकार के साथ जिम्मेदारी का भी हो एहसास : रेखा शर्मा
संस्कारशाला : अधिकार के साथ जिम्मेदारी का भी हो एहसास : रेखा शर्मा

संपत्ति चाहे अपनी हो या सार्वजनिक, उसका मूल्य नहीं आंका जा सकता। एक धनहीन व्यक्ति के लिए उसकी छोटी सी झोपड़ी उतनी ही मूल्यवान होती है, जितनी एक अमीर के लिए उसका महलों जैसा घर, क्योंकि वह उसकी निजी संपत्ति होती है, जिस पर उसी का अधिकार होता है। हम सार्वजनिक संपत्ति की बात करें तो वह सभी की होती है। अर्थात वह सभी नागरिकों की है। हम यह तो जानते हैं कि उसके उपयोग का अधिकार हमारा है लेकिन हमें इस बात से भी जागरूक होना होगा कि उसकी देखभाल की जिम्मेदारी हम सभी नागरिकों की है। यह इसलिए है क्योंकि इस संपत्ति का उपयोग और उपभोग हम ही कर रहे हैं। वास्तव में देखा जाए तो सार्वजनिक संपत्ति का निर्माण जन सुविधा के लिए किया जाता है। सरकार भी सार्वजनिक संपत्ति की देखरेख के लिए जितने धन की आवश्यकता पड़ती है, वह विभिन्न रूप से करों के माध्यम से नागरिकों से ही वसूल करती है लेकिन नागरिक इस वास्तविकता को बिल्कुल भी नहीं समझ पाया है कि जिस प्रकार हम अपनी निजी संपत्ति का नुकसान को नहीं झेलते, उसी प्रकार हमे सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान को नहीं झेलना चाहिए। आज कि स्थिति इससे विपरीत है, हम आज उसका सम्मान करना भूल से गए हैं। हमने अपनी आंखों में स्वार्थ की एक पट्टी बांधी हुई है, जिसमे हमे अपने लालच के आगे यह भी नहीं दिखाई देता की इसका खामियाजा केवल हम ही नहीं सभी नागरिकों को भुगतना पड़ता है। सार्वजनिक संपतित केवल मानव निर्मित ही नहीं बल्कि प्राकृतिक भी है। यातायात में सुविधा के लिए रेल, बस, हवाई जहाज आदि को लें, कई बार देखने में आता है कि लोग क्रोध व स्वार्थ में आकर इस तरह की संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। हमें अच्छी सड़कें, बेहतर यातायात के साधन, स्वच्छ जल, शुद्ध वायु आदि चाहिए लेकिन हम भूल जाते हैं कि बेहतर सड़क और सभी प्रकार की सुविधाओं पर नागरिकों का हक है तो उसके साथ एक जिम्मेदारी भी जुड़ी है। हमें उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। यदि हम ²ष्टि डालें तो हमारी प्राकृतिक व ऐतिहासिक सम्पत्तियां, बगीचे, सड़कें हमारी लापरवाही से बर्बाद हो रही हैं। कहीं भी कूड़ा फेंकना, पेड़-पौधों को खराब करना, ऐतिहासिक दीवारों पर कुछ न कुछ लिखना या उन पर अनावश्यक पोस्टर चिपकाना, यह सब सार्वजनिक संपत्ति की बर्बादी है। प्राकृतिक संपत्ति की सुरक्षा एवं सम्मान हेतु कई कवियों ने कविताओं के माध्यम से प्रयास भी किए हैं, जिसके अच्छे परिणाम भी दिखें हैं लेकिन फिर भी स्थिति में सुधार की आवश्यकता है। जब तक हम इनका सम्मान करना नहीं सीखेंगे, तब तक इसके रखरखाव को भी नहीं सीखेंगे। तो स्वयं भी समझें तथा अन्य नागरिकों को भी समझाएं कि सार्वजनिक संपत्ति के सम्मान व सुरक्षा की जिम्मेदारी हम सभी की होती है। सौभाग्य वश एक सच्चे नागरिक से जुड़ा ऐसा रोचक दृश्य मैंने देखा, जिसकी छाप आज तक मेरे जहन में है। एक बार इटली में एक व्यक्ति ने बस की फटी हुई सीट को देखकर उसे सुई-धागे से सिलना शुरू किया, मैंने उत्सुकतावश पूछा कि वह क्या कर रहे हैं। उन्होंने केवल एक ही जवाब दिया 'यह मेरा कर्तव्य है'। यदि हम आनेवाली पीढ़ी को इसी प्रकार अपने कर्तव्य का बोध कराएंगे तो विश्व उज्जवल भविष्य के साथ प्रगति की सीढियां चढ़ेगा। संपूर्ण विश्व बेहतर से बेहतरीन बन जाएगा।

- रेखा शर्मा, प्राचार्य अल्पाइन कान्वेंट स्कूल

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