अब साइबर सिटी के गंदे पानी से मैली नहीं होगी यमुना

जीएमडीए द्वारा अब टर्सरी तकनीक अपनाकर पानी को शोधित किया जाएगा। टर्सरी तकनीक शोधन का तीसरा चरण होता है और इससे शोधित किए जाने के बाद सीवर का पानी रंगहीन और गंधहीन हो जाता है और हानिकारक तत्व निकल जाते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 23 Sep 2021 04:46 PM (IST) Updated:Thu, 23 Sep 2021 06:18 PM (IST)
अब साइबर सिटी के गंदे पानी से मैली नहीं होगी यमुना
अब साइबर सिटी के गंदे पानी से मैली नहीं होगी यमुना

संदीप रतन, गुरुग्राम

यमुना में बढ़ रहे प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए एनजीटी ने सरकारी महकमों को एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) के पानी का बीओडी लेवल (बायो केमिकल आक्सीजन डिमांड) यानी प्रदूषण का स्तर घटाने के आदेश दिए हैं। गुरुग्राम में एसटीपी जीएमडीए (गुरुग्राम मेट्रोपालिटन डेवलपमेंट अथारिटी) के अधीन हैं। जीएमडीए द्वारा अब टर्सरी तकनीक अपनाकर पानी को शोधित किया जाएगा। टर्सरी तकनीक शोधन का तीसरा चरण होता है और इससे शोधित किए जाने के बाद सीवर का पानी रंगहीन और गंधहीन हो जाता है और हानिकारक तत्व निकल जाते हैं।

शहर के धनवापुर और बहरामपुर एसटीपी में करीब 55 एमएलडी पानी का ही शोधन टर्सरी तकनीक से होता है। अब दोनों प्लांट पूरी तरह से टर्सरी तकनीक पर ही आधारित होंगे। इस तकनीक से शोधन के बाद पानी का दोबारा उपयोग पेड़-पौधों की सिचाई व खेती में किया जा सकता है। बता दें कि शहर के एसटीपी से शोधित कर पानी को नजफगढ़ ड्रेन में छोड़ा जाता है, जो आगे दिल्ली क्षेत्र में यमुना नदी में पहुंचता है। आधा रह जाएगा बीओडी लेवल

शहर में बहरामपुर में 120 और धनवापुर में 100 एमएलडी क्षमता का एसटीपी है। शोधन के बाद पानी का बीओडी लेवल 20 मिलीग्राम प्रति लीटर है, जिसे घटाकर 10 मिलीग्राम प्रति लीटर किया जाना है।

क्या है बीओडी

ड्रेन और नालों के गंदे पानी में प्रदूषण की मात्रा जांचने की इकाई को बायो केमिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) कहते हैं। इसकी लिमिट 30 मिलीग्राम प्रति लीटर तक है, इससे ज्यादा लेवल होने पर पानी प्रदूषित माना जाता है। बीओडी ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो पानी में रहने वाले या आसपास के जीवों को तमाम गैरजरूरी आर्गेनिक पदार्थों को नष्ट करने के लिए चाहिए। यानी बीओडी जितना ज्यादा होगा पानी की आक्सीजन उतनी तेजी से खत्म होगी और बाकी जीवों पर उतना ही खराब असर पड़ेगा। ऐसे पानी के संपर्क में आने से चर्म रोग हो सकते हैं। हवा भी दूषित होती है। सांस की बीमारियां हो सकती हैं। औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योगों से निकलने वाले पानी को ट्रीट करने के लिए सीईटीपी (कामन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाए जाते हैं लेकिन सभी उद्योग नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। - एसटीपी में पूरी तरह से टर्सरी तकनीक अपनाई जाएगी। दोनों एसटीपी पर लगभग 60 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।

प्रदीप कुमार, मुख्य अभियंता, जीएमडीए

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