शहर की फिजा: शहर की हकीकत छुपाते हाथी के दांत
दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एक तरफ चिकना घुमावदार एक्सप्रेस-वे और दूसरी तरफ गड्ढेयुक्त शहर की मुख्य सड़कें। फर्क इतना है कि दोनों की तुलना करते वक्त जमीन आसमान के अंतर का उदाहरण भी छोटा नजर आता है।
गुरुग्राम [प्रियंका दुबे मेहता]। एक तरफ चिकना घुमावदार एक्सप्रेस-वे और दूसरी तरफ गड्ढेयुक्त शहर की मुख्य सड़कें। फर्क इतना है कि दोनों की तुलना करते वक्त जमीन आसमान के अंतर का उदाहरण भी छोटा नजर आता है। शीश महलों की बाहरी चमक के पीछे की यह विरोधाभासी तस्वीर शहर की हकीकत बयां करती है। एक्सप्रेस-वे की खूबसूरती और विशालता हाथी के वे दांत हैं, जो केवल वाहवाही लूटने के काम आते हैं, असल दांत तो न्यू कालोनी, सेक्टर नौ, सेक्टर दस और रेलवे रोड जैसी सड़कें हैं, जहां शहरवासियों को समस्याओं से जूझना पड़ता है। फ्लाईओवर का निर्माण और सड़कों का चौड़ीकरण हो रहा है, लेकिन शहर के अंदर की मुख्य सड़कों की स्थिति की कोई सुध ही नहीं लेता। रेलवे रोड पर गड्ढे को लेकर शिकायत, अधिकारियों का दौरा और उसपर काम करने का आश्वासन, सब हुआ, सिवा सड़क सुधरने के। सवाल यह है कि सचमुच क्या ऐसी ही होती है स्मार्ट सिटी।
आंखों से छलकता दर्द
वहीं, सिविल अस्पताल, वही परेशानी, वही पीड़ा और बीमार चेहरों पर वही विवशता। यहां एक कोना कुछ अलग था। परेशानी इस हिस्से में भी थी, लेकिन कुछ जुदा। दर्द यहां भी था, लेकिन दिलों में दबा हुआ। ¨चता की लकीरें यहां भी थीं, लेकिन लगातार आंखों के रिसाव से धीरे-धीरे मिटती हुई। माथे की सिलवटें और चेहरों का दर्द सुकून की हल्की मुस्कान में तब्दील होता लगता था। यह हिस्सा सुकून का केंद्र था जहां दिलों के दर्द कम किए जाते हैं, वो दर्द जो अपनों के दिए हैं। आंकड़ों से साफ है कि लाकडाउन में पिछले महीनों में घरेलू ¨हसा तेजी से बढ़ी है। आइटी और बीपीओ इंडस्ट्री ने समय की बंदिशों और लिंग-भेद के सभी दायरों को तोड़ते हुए शहर की संस्कृति को विस्तार और समाज को एक नया नजरिया तो दे दिया, लेकिन जब बहू-बेटियां घरों में ही सुरक्षित नहीं हैं तो शत-प्रतिशत महिला सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी।
सिर्फ पौधारोपण नहीं, सोच की भी है दरकार
शहर में हरियाली बिखेरनी है तो पौधे लगा दिए जाएं, हो गया पूरा प्रकृति के प्रति दायित्व। वर्षों से लोग यही तो कर रहे हैं। पौधे लगा दिए, फोटो खिंचवा ली और मिल गया पर्यावरणविद होने का वर्चुअल सर्टिफिकेट। पौधों को जीवन मिला या फिर वे कुम्हला गए, इससे किसी को क्या मतलब। अब नगर निगम तीन लाख पौधे लगवाकर शहर को हरा-भरा बनाने की योजना बना रहा है। सड़कों के किनारे और डिवाइडर्स पर हर बार पौधारोपण होता है, लेकिन कुछ ही दिनों में पौधे मुरझा जाते हैं, फिर अगले पौधारोपण के लिए तैयार हो जाती है जगह। बार-बार उसी चक्र की पुनरावृत्ति होती है। पर्यावरण प्रेमियों की गुजारिश सिर्फ इतनी सी है कि पौधारोपण करने के बजाय पहले से लगे पौधों की देखरेख का बीड़ा उठाएं। नगर निगम अधिकारियों की सोच बड़ी तो है, लेकिन कुछ योजनाओं को लागू करने के लिए इसे परिपक्व करने की जरूरत है।
समय बड़ा बलवान
एक समय था जब एक्सप्रेस-वे सीना चौड़ा किए कहीं गोलाकार तो कहीं सर्पाकार सा प्रतीत होता अपने सौंदर्य पर इतराता हुआ डीएलएफ के भवनों की शानदार वास्तुकला के दर्शन कराता था। इसके दूर तक विस्तार में लंबी कतारों में गाड़ियां खिलौनों की मानिंद रेंगती नजर आती थीं। जहां कभी दोपहिया वाहनों को चलने की अनुमति नहीं थी, आज सूनी पड़ी उन राहों पर जानवर घूम रहे हैं। चार पैरों वाले जो हैं। काटिए, किसका चालान काटेंगे। अब यहां गाय, भैंस और घोड़े दिख रहे हैं तो हैरान होने की बात नहीं है। वक्त ने ऐसी करवट ली कि हाईटेक सिटी के एक्सप्रेस-वे पर जहां एक से बढ़कर एक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय ब्रांड की कारें फर्राटा भरती लोगों को गौरवमयी रोमांच से भर देती थीं, आज वहां जानवरों की दौड़ बदले हालात की ऐसी तस्वीर पेश कर रही है जिसे देखकर वह कहावत याद आती है कि समय बड़ा बलवान होता है।