हाइड्रोजन से फर्राटा भरेंगी गाड़ियां, हाइड्रोजन एनर्जी मिशन से जमीन पर उतरेगी योजना
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के महानिदेशक उपेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि आइएसए का प्रयास है कि पूरी दुनिया में सोलर एनर्जी का इस्तेमाल बढ़े। इसी दिशा में सोलर ग्रीन हाइड्रोजन नीति पॉलिसी बनाने के लिए सदस्य देशों से कहा जाएगा।
गुरुग्राम, आदित्य राज। वर्ष 2021 -22 में भारत सरकार हाइड्रोजन एनर्जी मिशन शुरू करने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को शुरू करने की इच्छा जताई थी जिसमें ग्रीन पावर सोर्स से हाइड्रोजन पैदा होगी। इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बजट भाषण में इसका उल्लेख किया था। इंटरनेशनल सोलर एलायंस (आइएसए) ने इसे बढ़ावा देने का काम शुरू कर दिया है। क्या है योजना? कैसे काम करेगी और क्या होगा बदलाव?
कारों से लेकर उद्योग तक फैलाव
दुनिया में सोलर एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए गठित इंटरनेशनल सोलर एलायंस (आइएसए) ग्रीन हाइड्रोजन को भी बढ़ावा देगा। सभी सदस्य देशों से नीति बनाने के लिए कहा जाएगा। आने वाला समय ग्रीन हाइड्रोजन का है। कारों से लेकर औद्योगिक इकाइयों में इसका इस्तेमाल बढ़ेगा।
महीने के अंत तक भेजेंगे पत्र
आइएसए के सदस्य देशों की संख्या फिलहाल 90 है। सभी देशों को इस महीने के अंत तक पत्र भेजा जाएगा कि वे योजना बनाकर बताएं कि किस प्रकार सोलर ग्रीन हाइड्रोजन पर काम करेंगे। अपने देश के उद्यमियों से लेकर आम लोगों को इस बारे में कैसे जागरूक करेंगे।
प्रारंभिक दौर में सीएनजी में 15 फीसद हाइड्रोजन मिलाकर चलाएंगे वाहन आइएसए का मानना है कि हाड्रोजन मिश्रित सीएनजी से प्रदूषण काफी कम होगा। सीएनजी में केवल 15 फीसद ही हाइड्रोजन मिलाने से काफी फर्क पड़ेगा। ग्रीन फ्यूल को बढ़ावा देने के लिए हाइड्रोजन मिश्रित सीएनजी के लिए स्टेकहोल्डर्स से सुझाव मांगे गए हैं।
ग्रीन सोर्स से गैस को पैदा करने का किया ऐलान: हाइड्रोजन गैस कई सोर्स से पैदा की जाती है, लेकिन भारत सरकार ने इसे ग्रीन सोर्स से पैदा करने का ऐलान किया है। हाइड्रोजन गैस पैदा करने का मुख्य उद्देश्य जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने और प्रदूषण में कमी लाने का है।
परेशानी: भारत कुल ईंधन खपत का एक-तिहाई हिस्सा आयात करता है।
असर: जिससे सरकारी खजाने पर बड़ा दबाव बनता है। जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजार की वजह से हमें महंगा पेट्रोल-डीजल ही खरीदना पड़ रहा है।
सही विकल्प: जीवाश्म ईंधन जैसे कि पेट्रोल और डीजल पर निर्भरता कम करने के लिए हाइड्रोजन गैस सही विकल्प साबित हो सकता है। यह भविष्य में नवीकरणीय ऊर्जा के रिक्त स्थान को भरेगा।
पूरी तरह बदल जाएगा ईंधन का सिस्टम: हाइड्रोजन गैस का उत्पादन पूरी तरह टेक्नोलॉजी पर टिका है। इसे विकसित करने के लिए बड़े निवेश की जरूरत है। कनाडा के क्यूबेक में अभी हाल में एक प्लांट लगाया गया है, जहां प्रति दिन 8.2 टन हाइड्रोजन का उत्पादन हो रहा है। इस गैस का इस्तेमाल क्यूबेक के आसपास के इलाकों में हेवी इंडस्ट्री को चलाने में हो रहा है।
टाटा, अंबानी और म¨हद्रा मिलकर कर सकते हैं काम: इस मिशन के लिए ऑटो सेक्टर, फ्यूल कंपनी, केमिकल्स कंपनी और एडवांस्ड मटेंरियल कंपनियों को एक साथ आना होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए देश के कई बड़े उद्योगपति एक साथ आ सकते हैं। इनमें टाटा, अंबानी और महिंद्रा का नाम सामने आ रहा है। इंडियन ऑयल और आयशर जैसी कंपनियां भी बड़ी भागीदारी निभा सकती हैं।
ऐसे अलग होगा हाइड्रोजन
भारत में अभी हाइड्रोजन गैस बनाने के लिए दो तरह की तकनीक इस्तेमाल होती है।
पहला: पानी से हाइड्रोजन को अलग किया जाता है। इसमें पानी ही मुख्य स्नोत है।
दूसरा: प्राकृतिक गैस को तोड़ा जाता है जिससे हाइड्रोजन और कार्बन अलग हो जाता है। इससे दो तरह के फायदे हैं। हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर लिया जाएगा, जबकि कार्बन का प्रयोग स्पेस, एसोस्पेस, ऑटो, पोत निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे काम में होगा।
यह है रासायनिक समीकरण आयोडीन और सल्फर का प्रयोग कर पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में लगभग 150 डिग्री सेल्सियस पर अलग करते हैं आयोडीन और सल्फर को रिसाइकिल भी किया जा सकेगा। हालांकि यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है। इसके लिए अत्याधुनिक प्लांट की जरूरत है
केरल पहला राज्य होगा जहां दौड़ सकती है हाइड्रोजन बस: तेल कंपनियां हाइड्रोजन फ्यूल को काम में लाने लायक बनाने के लिए काम कर रही हैं। हाल ही में टाटा मोटर्स ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाली बस पेश की है। ये बस अभी ट्रायल फेज पर है, जिसे टेस्टिंग पूरी होने के बाद मंजूरी दी जाएगी। इसके साथ केरल देश का पहला राज्य होगा जहां हाइड्रोजन बस सड़कों पर दौड़ती नजर आएगी।
ग्रीन हाइड्रोजन के लिए जल्द टेंडर: बिजली मंत्री ने हाल ही में घोषणा की है कि ग्रीन हाइड्रोजन के लिए चार से पांच महीने में ही टेंडर आमंत्रित किए जाएंगे। पेट्रोलियम, इस्पात और उर्वरक मंत्रलय के साथ इस बारे में चर्चा हो चुकी है।
भविष्य में एलपीजी सिलेंडर की तरह होगा इस्तेमाल: ओएनजीसी एनर्जी सेंटर के आर्थिक सहयोग से यह प्रोजेक्ट चल रहा है। भविष्य में एलपीजी सिलेंडर की तरह हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल हो गया। आमतौर पर पानी से 2000 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर ऑक्सीजन और हाइड्रोजन अलग होता है।
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के महानिदेशक उपेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि आइएसए का प्रयास है कि पूरी दुनिया में सोलर एनर्जी का इस्तेमाल बढ़े। इसी दिशा में सोलर ग्रीन हाइड्रोजन नीति पॉलिसी बनाने के लिए सदस्य देशों से कहा जाएगा। पानी से हाइड्रोजन को अलग करने में यदि सौर ऊर्जा इस्तेमाल होगी तो खर्च काफी कम आएगा। इसे ध्यान में रखकर ही सोलर ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया है।
आइआइटी के रसायन विज्ञान के प्राध्यापिका व प्रोजेक्ट प्रभारी प्रो. श्रीदेवी उपाध्याययुला ने बताया कि आइआइटी में वर्ष 2007 से ही इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। प्रोजेक्ट पूरा हो गया है। इसमें आयोडिन सल्फर प्रोसेस का इस्तेमाल किया गया है। इसके तहत पानी में से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग किया जाता है। फिर इसी हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सुनने में यह आसान लग सकता है, लेकिन हाइड्रोजन को अलग करने की तकनीक इतनी आसान भी नहीं है। आइआइटी ने इसी तकनीक को विकसित किया है। अब इस पर ओएनजीसी जैसी बड़ी ऑइल कंपनियां इसके व्यवसायिक उत्पादन पर काम कर रही है।