वन संरक्षण कानून के कमजोर से गायब हो जाएंगी अरावली की पहाड़ियां
सत्तर के दशक तक अरावली पहाड़ी क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित थी। इसके बाद इलाके के ऊपर भूमाफिया की ऐसी नजर लगी कि देखते ही देखते हजारों फार्म हाउस बन गए। ऊंची-ऊंची इमारतें बना दी गईं। वैध एवं अवैध खनन की वजह से जहां कई पहाड़ियां गायब हो गईं।
गुरुग्राम (आदित्य राज)। दिल्ली-एनसीआर के लिए जीवनदायिनी कही जाने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला की 10 से अधिक पहाड़ियां पिछले कुछ वर्षों के दौरान गायब हो चुकी हैं। कई इलाकों में अरावली का नामोनिशान तक नहीं बचा है। यदि वन संरक्षण कानून को कमजोर कर दिया गया फिर कुछ ही समय के भीतर अरावली पहाड़ी क्षेत्र का ही नामोनिशान मिट जाएगा। खासकर गुरुग्राम, फरीदाबाद एवं नूंह इलाके से कुछ ही समय के भीतर अरावली खत्म हो जाएगी क्योंकि पहाड़ियों से लेकर साथ लगती अधिकतर जमीन वर्षों पहले ही भूमाफिया खरीद चुके हैं। वे चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि वन संरक्षण कानून लागू है। सभी कानून के कमजोर होने का इंतजार कर रहे हैं।
बताया जाता है कि सत्तर के दशक तक अरावली पहाड़ी क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित थी। इसके बाद इलाके के ऊपर भूमाफिया की ऐसी नजर लगी कि देखते ही देखते हजारों फार्म हाउस बन गए। ऊंची-ऊंची इमारतें बना दी गईं। वैध एवं अवैध खनन की वजह से जहां कई पहाड़ियां गायब हो गईं। वहीं, हरियाली खत्म होने से कई प्रकार के वन्य जीव विलुप्त हो गए। कई इलाकों में भूमिगत जल स्तर का नामोनिशान नहीं है।
ऐसे में यदि वन संरक्षण कानून को कमजोर कर दिया गया फिर न पहाड़ियां बचेंगी और न ही साथ लगती जमीन बचेगी। चर्चा है कि केंद्र सरकार अधिसूचित वन भूमि को छोड़कर अन्य परिभाषित वन क्षेत्रों को वन संरक्षण कानून 1980 के दायरे से बाहर निकालना चाहती है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि परिभाषित वन क्षेत्रों को दायरे से बाहर निकालने पर कानून कमजोर हो जाएगा। इसका सबसे अधिक खामियाजा अरावली पहाड़ी क्षेत्र को भुगतना होगा, क्योंकि यह अधिसूचित वन भूमि नहीं है। इसे सर्वोच्च न्यायालय ने वन क्षेत्र घोषित कर रखा है। कानून के दायरे से परिभाषित वन क्षेत्रों को बाहर निकालने पर अरावली पहाड़ी क्षेत्र में धड़ल्ले से सभी प्रकार के गैर वानिकी कार्य शुरू हो जाएंगे।
सोहना से लेकर महेंद्रगढ़ की कई पहाड़ियां गायब
पिछले कुछ सालों के दौरान वैध एवं अवैध खनन की वजह से सोहना से आगे तीन पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। होडल के नजदीक, नारनौल में नांगल दरगु के नजदीक, महेंद्रगढ़ में ख्वासपुर के नजदीक की पहाड़ी गायब हो चुकी है। इनके अलावा भी कई इलाकों की पहाड़ी गायब हो चुकी है। रात के अंधेरे में खनन कार्य किए जाते हैं। सबसे अधिक अवैध रूप से खनन की शिकायत नूंह जिले से सामने आती है। पत्थरों की चोरी की शिकायत सभी जिलों में है।
वैसे तो भूमाफिया की नजर दक्षिण हरियाणा की पूरी अरावली पर्वत श्रृंखला पर है लेकिन सबसे अधिक नजर गुरुग्राम, फरीदाबाद एवं नूंह इलाके पर है। अधिकतर भूभाग भूमाफिया वर्षों पहले ही खरीद चुके हैं। वन संरक्षण कानून के कमजोर होते ही सभी अपनी जमीन पर गैर वानिकी कार्य शुरू कर देंगे। फिलहाल वे गैर वानिकी कार्य नहीं कर सकते। जहां पर वन संरक्षण कानून लागू होता है वहां पर सरकार से संबंधित विकास कार्य ही केवल किए जा सकते हैं। सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के रहने के लिए इमारत तक नहीं बना सकते।
डा. आरपी बालवान, पर्यावरणविद व सेवानिवृत्त वन संरक्षक
यदि अरावली खत्म हुई फिर दिल्ली-एनसीआर भी नहीं बचेगी। अरावली की वजह से ही दिल्ली-एनसीआर सुरक्षित है। भूमाफिया चाहते हैं कि वन संरक्षण कानून कमजोर कर दिया जाए। उन्होंने औने-पौने कीमत पर हजारों एकड़ जमीन पहले से ही खरीद रखी है। कानून के कमजोर होने के बाद वे ऊंची कीमत पर अपनी जमीन बेचेंगे या फिर सोसायटी बनाकर फ्लैट बेचेंगे। मेरी केंद्र सरकार से अपील है कि किसी भी हाल में वन संरक्षण कानून के दायरे से परिभाषित वन क्षेत्रों को बाहर न निकाला जाए।
प्रो. केके यादव, पर्यावरण कार्यकर्ता व सेवानिवृत्त मुख्य नगर योजनाकार, हरियाणा