नमो देव्यै महा देव्यै : भूलने की बीमारी पर खोज में बजाया दुनिया भर में डंका

पिछले दिनों बुजुर्गों में याद्दाश्त खोने की बीमारी यानी डिमेंशिया पर ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एम्स और नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर की टीम ने एक शोध किया। जिसे मील का पत्थर माना गया। दुनिया भर के न्यूरो साइंस पर काम करने वाले डॉक्टरों और वैज्ञानिकों लिए यह लिए यह एक रास्ता बना है कि भूलने की बीमारी का पूरा इलाज खोजा जा सके। दिमाग में ग्लूटाथॉयोन नाम के एक केमिकल की कमी उम्र के साथ होने लगती हैं और यह वजह बनती है भूलने की बीमारी का। गुरुग्राम के सेक्टर 31 में रहने वाली एम्स के न्यूरोसाइंस विभाग की प्रोफेसर डा. मंजरी त्रिपाठी ने नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर प्रवत्त मंडल के साथ मिलकर यह शोध किया था।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 17 Oct 2018 07:20 PM (IST) Updated:Wed, 17 Oct 2018 07:20 PM (IST)
नमो देव्यै महा देव्यै : भूलने की बीमारी पर खोज में बजाया दुनिया भर में डंका
नमो देव्यै महा देव्यै : भूलने की बीमारी पर खोज में बजाया दुनिया भर में डंका

पिछले दिनों बुजुर्गों में याद्दाश्त खोने की बीमारी यानी डिमेंशिया पर ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एम्स और नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर की टीम ने एक शोध किया। जिसे मील का पत्थर माना गया। दुनिया भर के न्यूरो साइंस पर काम करने वाले डॉक्टरों और वैज्ञानिकों लिए यह लिए यह एक रास्ता बना है कि भूलने की बीमारी का पूरा इलाज खोजा जा सके। दिमाग में ग्लूटाथॉयोन नाम के एक केमिकल की कमी उम्र के साथ होने लगती हैं और यह वजह बनती है भूलने की बीमारी का। गुरुग्राम के सेक्टर 31 में रहने वाली एम्स के न्यूरोसाइंस विभाग की प्रोफेसर डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर प्रवत्त मंडल के साथ मिलकर यह शोध किया था। इसमें यह सामने आया कि ग्लूटाथॉयोन की कमी डिमेंशिया के लिए जिम्मेदार है। दुनिया भर में इस शोध को लेकर स्वीकृति बनी थी। डॉ. मंजरी ने डॉक्टर के तौर तो मानवता की सेवा की है एक सोशल एक्टिविस्ट की तरह ऐसी बीमारियों पर शोध और उसके उपचार के लिए जुटी हैं जिनपर प्राय: लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं जाता। उसके मरीज समाज से खुद को अलग महसूस करने लगते हैं डॉ. मंजरी ने डिमेंशिया के अलावा मिर्गी, नींद नहीं आने की समस्या, मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी बीमारियों पर शोध कर रही है और उसके इलाज को ढूंढने में लगी हैं। लोग कहें सठियाने लगे हैं तो जांच कराइए

डॉ. मंजरी बताती हैं कि जब कोई व्यक्ति बुजुर्ग होने लगता है तो उसकी याद्दाश्त कम होने लगती है और लोग उसे सठियाना कहते हैं। मगर जब याद्दाश्त कम होने लगती है तो यह बीमारी के लक्षण हो सकता है। डिमेंशिया ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति को बहुत पुरानी बातें तो याद रहती है। हाल फिलहाल में हुई चीजें, रोजमर्रा की बातें वह भूलने लगता है। यह खतरनाक साबित हो सकता है। जिसे बुढ़ापे का आम लक्षण समझा जाता है, वह बीमारी हो सकती है, ऐसा नहीं सोचा जाता। जिस तरह बुढ़ापे में ब्लड प्रेशर, शुगर की जांच होती है, वैसे ही न्यूरोलॉजिकल मेमोरी की भी जांच होती है। इस जांच से पता चल जाता है कि कोई व्यक्ति डिमेंशिया की ओर जा रहा है। अपने रिसर्च में उन्होंने पाया कि एंटी ऑक्सीडेंट ग्लूटाथॉयोन की मात्रा ऐसे लोगों में कम होने लगती है। डिमेंशिया अगर एडवांस स्टेज में पहुंच जाए तो उसका इलाज नहीं हो सकता। शुरुआती दौर में दवाओं से उसपर काबू पाया जा सका है। याद्दाश्त कम होने के लिए कई और चीजें भी जिम्मेदार हैं, जैसे शाकाहारी लोगों को विटामिन बी 12 और थायराइड की कमी । ये सब जांच में निकलकर सामने आ जाता है। डॉ. मंजरी वर्ष 1998 से एम्स में डॉक्टर हैं और उन्होंने मरीजों का इलाज तो किया ही है, दिमाग की बीमारियों पर लगातार शोध कर उनके हल ढूढनें में जुटी हैं।

मिर्गी की बीमारी पर भी नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर में शोध

एपिलेप्सी यानी मिर्गी पर रिसर्च के लिए एनबीआरसी में डॉ. मंजरी के नेतृत्व में एक अलग शाखा बनाई गई है। जहां ब्रेन मै¨पग के लिए अत्याधुनिक उपकरण है। डॉ. मंजरी बताती हैं कि मिर्गी ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज की कोई गलती है, यह कोई छूआछूत की बीमारी नहीं है। किसी भी तरह दूसरे में नहीं फैलती। बावजूद इसके अगर किसी कार्यालय में किसी को मिर्गी का दौरा पड़ जाए तो उसे दूसरे बहाने बनाकर काम से निकाल दिया जाता है। समाज में मिर्गी के मरीज से भेदभाव होता है। कानूनन इसे अक्षमता नहीं समझी जाती है। मिर्गी के मरीज के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है कि वह कहीं शिक्षा से वंचित होने, इलाज से वंचित होने से या नौकरी से वंचित होने या भेदभाव किए जाने के खिलाफ खड़ा हो सके। सामाजिक स्तर पर मरीज से होने वाले भेदभाव के खिलाफ लोगों को जागरुक करने और कानून से सरकारी नियमों को मरीज के अनुकूल बनाए जाने का संघर्ष है। हमारी पहली चुनौती मिर्गी मरीजों के लिए समाज में जगह की है। दूसरी चुनौती बीमारी के कारण खोज कर इसका हल ढूंढने की है। कई बार ऐसे मरीज आते हैं जो दवाएं ले रहे हैं मगर फिर भी दौरे आते हैं। मैं समझती हूं, हमारा काम केवल दवा लिख देना नहीं बल्कि पूरा इलाज ढूंढना है ताकि मरीज बेहतर ¨जदगी जी सके।

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