तय कर लिया मकसद तो शिवानी के कदमों में आ गई मंजिल
गुरुग्राम में रहने वाली तैराक शिवानी कटारिया और उसका परिवार एक उदाहरण है।
पूनम, गुरुग्राम
शिवानी कटारिया इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं, अगर बेटियों को मौका दिया जाए तो वो क्या नहीं कर सकतीं। वर्ष 2016 के रियो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी तैराक शिवानी कटारिया पिछले दिनों अपनी नई उपलब्धियों के लिए खूब चर्चा में रहीं। इस 22 वर्षीय तैराक को जलपरी की उपमा दी गई है। शिवानी ने सितंबर के महीने में बेंगलुरु में होने वाले दसवें एशियन एज ग्रुप चैंपियनशिप में नौ पदक हासिल किए हैं। चार रजत और पांच कांस्य पदक शिवानी की झोली में आए। इस अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में शिवानी ने व्यक्तिगत स्पर्धा में चार पदक और सामूहिक रिले में पांच पदक जीते।
सितंबर में ही भोपाल (मध्य प्रदेश) में खेली गई सीनियर राष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में कटारिया ने 200 मीटर फ्री स्टाइल स्पर्धा में नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। कटारिया ने अपने ही 2 मिनट 5.86 सेकेंड के रिकॉर्ड को तोड़कर 2 मिनट 5.80 सेकेंड का नया रिकॉर्ड स्थापित किया था। शिवानी ने अपनी कामयाबी को बनाए रखने की पुरजोर कोशिश की है। बेंगलुरु से आने के बाद वह बीए फाइनल ईयर की परीक्षा की तैयारी भी कर रही हैं। शिवानी बताती हैं कि आगे उनका लक्ष्य आने वाले दिनों काठमांडू में होने वाले साउथ एशियन गेम्स हैं और इसके बाद टोक्यो ओलंपिक में वे हिस्सा लेने की तैयारी कर रही हैं। कोशिश होगी की टोक्यो में वे अपनी बेहतर उपस्थिति दर्ज करा सकें।
वर्ष 2016 में शिवानी ने 19 वर्ष की उम्र में रियो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके पहले दक्षिण एशियाई खेलों में बहुत बेहतर प्रदर्शन किया। शिवानी ने वर्ष 2012 में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में कई पदक जीतने के साथ राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। चीन में खेले गए 2014 यूथ ओलंपिक और रूस में 2015 विश्व चैंपियनशिप में भारत की तरफ से खेल चुकी हैं। फरवरी 2016 में भारत में खेले गए 12वें साउथ एशियन खेलों में स्वर्ण पदक जीत कर देश का नाम रोशन किया। प्रेक्टिस के लिए जाना पड़ता था रोजाना दिल्ली
शिवानी की सफलताएं इसलिए भी खास हैं क्योंकि मिलेनियम सिटी कहे जाने वाले गुरुग्राम में अभी भी तैराकों के लिए सरकारी स्तर पर कोई अच्छा स्वीमिग पूल नहीं है। हालांकि शिवानी इसको लेकर सरकार से गुहार लगा चुकी हैं। शिवानी की सफलताओं में उनकी सहजता, सरलता, परिवार का प्यार, त्याग और समर्पित भाव से जुट जाना भी शामिल है। शिवानी कटारिया की मां मीना कटारिया और पिता हरबीर कटारिया से मिलकर यकीनन ऐसा नहीं लगता कि अपने देश में लोग बेटियों को कमतर समझते हैं।
शिवानी ने तैराकी में दर्जनों पदक हासिल किए हैं, वह भी उस स्थिति में जबकि गुरुग्राम में कोई ऐसा स्वीमिग पूल नहीं है जो पूरे साल खुला रहता हो। शुरुआत के दिनों में सर्दियों में पिता हरबीर कटारिया उन्हें लेकर रोजाना दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम जाते थे। प्रेक्टिस से आने के बाद स्कूल और फिर शाम को स्वीमिग के लिए 40 किलोमीटर का सफर तय करते। पिछले कई सालों से शिवानी के पिता हरबीर कटारिया शिवानी के साथ देश-विदेश उसके ट्रेनिग कैंप या प्रतियोगिताओं के दौरान साथ रहे। अपना व्यवसाय छोड़कर इस धुन में कि बिटिया के सपने पूरे करने हैं।
शिवानी ने भी पूरी लगन से पिता के सपने को सच किया। घर को ट्रॉफियों और मेडलों से भर दिया है। वर्ष 2006 में जिला स्तरीय चैंपियन बनने के बाद से शिवानी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मां मीना कटारिया बताती हैं कि मेरा एक बेटा और एक बेटी है। बेटी बड़ी है और उसने हमारा ज्यादा प्यार पाया है। हमें गर्व है कि हमारी बेटी पूरी मेहनत और लगन से सफलताएं प्राप्त कर रही है। राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल और ट्रॉफी शिवानी के नाम है। पिछले तीन ओलंपिक खेलों में देश की किसी महिला तैराक ने हिस्सा नहीं लिया था। शिवानी ने वर्ष 2004 के बाद देश की महिला तैराक के रूप में देश का प्रतिनिधित्व किया।
शिवानी कहती हैं कि गुरुग्राम में पूरे साल प्रेक्टिस के लिए सरकारी स्तर पर बेहतर स्वीमिग पूल की जरूरत है। हरियाणा सरकार ने खेलों और खिलाड़ियों के लिए बहुत कुछ किया है मगर इस क्षेत्र में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। बेहतर पुल और कोच की सुविधा हर तैराकी सीखने के चाहत रखने वालों को मिले तो बहुत अच्छे खिलाड़ी सामने आ सकते है। दक्षिण भारत में तैराकों के लिए ज्यादा बेहतर मौके हैं। बेंगलुरु में जलवायु और कोच के लिहाज से ट्रेनिग बेहतर हो पाती है। वहां के बच्चे स्वीमिग को लेकर बहुत समर्पित हैं।