नमो देव्यै, महादेव्यै : महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं रिया

सौंदर्य का क्षेत्र ऐसा है जिसके नाम से ग्लैमर की गूंज उठती है। ऐसे व्यस्त और बिलकुल अलग क्षेत्र से जुड़ा कोई जमीनी स्तर पर समाजसेवा और परोपकार कैसे कर सकता है यह बात सोचने पर मजबूर करती है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 13 Apr 2021 07:12 PM (IST) Updated:Tue, 13 Apr 2021 07:12 PM (IST)
नमो देव्यै, महादेव्यै : महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं रिया
नमो देव्यै, महादेव्यै : महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं रिया

प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम

सौंदर्य का क्षेत्र ऐसा है जिसके नाम से ग्लैमर की गूंज उठती है। ऐसे व्यस्त और बिलकुल अलग क्षेत्र से जुड़ा कोई जमीनी स्तर पर समाजसेवा और परोपकार कैसे कर सकता है, यह बात सोचने पर मजबूर करती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि दोनों कार्यो में समानता नहीं दिखती, लेकिन ऐसा कर दिखाया है मेकओवर आर्टिस्ट और ब्यूटीशियन रिया वशिष्ठ ने। रिया ने न केवल तमाम परेशानियों के बाद अपने आप को उबारा है, बल्कि उन लोगों का संबल भी बन रही हैं, जो उन्हीं की तरह जिदगी की दुश्वारियों से लड़ रही हैं। रिया सिगल मदर्स और कमजोर तबके की युवतियों को सौंदर्य के क्षेत्र में निश्शुल्क वोकेशनल प्रशिक्षण देती हैं। दिल्ली के अलावा वह बिजनौर, उत्तराखंड आदि स्थानों पर भी महिला सशक्तीकरण के लिए कार्य कर रही हैं। कोरोनाकाल में किया काम : रिया अपने पेशे से जुड़कर तो समाजसेवा के काम करती ही हैं, साथ ही उन्होंने कोरोना महामारी के समय भी लोगों की मदद की। उन्होंने महामारी के शुरुआती दौर में परेशान लोगों, बाहर के प्रदेशों के घर जाने के इच्छुक लोगों, फंसे हुए कामगारों, महिलाओं और कमजोरों की राशन, रोजमर्रा की जरूरत की सामग्री दी और लोगों को घरों को भेजने की व्यवस्था की। इस समय भी उनके पास सहयोग के लिए जहां से भी कॉल आ रही है, वे सहायता कर रही हैं। कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान उन्होंने 38 परिवारों को दो महीने तक राशन आदि देकर भोजन करवाया। इसमें उनके साथ कुछ और हाथ भी जुड़े जिससे रिया को सहायता मिली। महामारी ने बदला जीवन : रिया का कहना है कि कोरोना काल ने अंदर से बाहर तक बदल कर रख दिया है। इस दौरान परिवार के साथ वक्त बिताने का समय मिला तो उन्होंने इन पलों को भरपूर जिया। गीता पढ़ी, बच्चों को आध्यात्मिक दुनिया से रूबरू करवाने का काम किया और बांसुरी बजानी सीखी। उनका कहना है कि गहरे अंधेरे में भी सकारात्मक विचारों से राहें साफ नजर आने लग जाती हैं। ऐसे में उन्होंने अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों को बखूबी निभाया।

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