जरूरतमंद बच्चों का संपूर्ण व्यक्तित्व निखारती हैं हिमा जोशी

साउथ सिटी टू के ए ब्लॉक में आस-पास के जरूरतमंद बच्चों के लिए सुधा सोसायटी का एक ओपन स्कूल चलता है। इस स्कूल में करीब 70 बच्चे आते हैं। कुछ स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी विशेष ट्यूशन के लिए आते हैं। सुधा सोसायटी के इस स्कूल में हर अवसर पर कार्यक्रम होते हैं जिनमें बच्चों की पूरी भागीदारी होती। स्कूल में एक महिला बच्चों को खास तौर छोटे बच्चों को बहुत ही समर्पित भाव से पढ़ाती नजर आती है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 21 Oct 2019 09:10 PM (IST) Updated:Tue, 22 Oct 2019 06:29 AM (IST)
जरूरतमंद बच्चों का संपूर्ण व्यक्तित्व निखारती हैं हिमा जोशी
जरूरतमंद बच्चों का संपूर्ण व्यक्तित्व निखारती हैं हिमा जोशी

पूनम, गुरुग्राम

साउथ सिटी-2 के ए ब्लॉक में आसपास के जरूरतमंद बच्चों के लिए सुधा सोसायटी का एक ओपन स्कूल चलता है। इस स्कूल में करीब 70 बच्चे आते हैं। कुछ स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी विशेष ट्यूशन के लिए आते हैं। सुधा सोसायटी के इस स्कूल में हर अवसर पर कार्यक्रम होते हैं, जिनमें बच्चों की पूरी भागीदारी होती। स्कूल में एक महिला बच्चों को खासतौर पर छोटे बच्चों को बहुत ही समर्पित भाव से पढ़ाती नजर आती हैं। बच्चे नई चीजें सीखें, इसके लिए तरह-तरह के प्रयोग करती हैं। इस महिला का नाम है हिमा जोशी।

सुधा सोसायटी के बच्चों को स्कूलों में दाखिले के लिए तैयार किया जाता है। उनके व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रम चलाए जाते हैं। इस स्कूल को चलाने में पड़ोस की शीशपाल विहार में रहने वाली हिमा जोशी का योगदान काफी महत्वपूर्ण है। सुधा सोसायटी प्रमुख जीके भटनागर बताते हैं कि हिमा बड़ी शिद्दत से उन बच्चों को पढ़ाती हैं। केवल पढ़ाई ही नहीं योग, व्यायाम, चित्रकला जैसे उसके पास बहुत सारे नए तरीके होते हैं ताकि बच्चे खेल-खेल में सीख लें। वे कहते हैं कि मेरे केंद्र में हिमा का यह स्वैच्छिक योगदान बहुत मायने रखता है।

हिमा जोशी गृहिणी हैं। उनके दो बच्चे हैं। बड़ा बेटा संकल्प आठवीं कक्षा में पढ़ता है और छोटा पार्थ दूसरी कक्षा का छात्र है। हिमा बतौर फैशन डिजाइनर नौ साल नौकरी कर चुकी हैं। वे बताती हैं कि बच्चे के जन्म के बाद मैंने नौकरी छोड़ दी। पति का कामकाज के दौरान विदेश दौरा होता रहता है। मैं सुधा सोसायटी के बच्चों के बीच बच्चों के जन्मदिन और कार्यक्रमों में जाती थी तो मुझे अपना बचपन याद आता था। हम जमीन से जुड़े लोग है। भगवान ने हमें कुछ दिया है तो उसका शुक्रिया अदा करना हमारी जिम्मेदारी है। मैं चाहती हूं कि ऐसे नौनिहालों के बीच काम करूं जो किसी कारण वश वंचित हैं। मेरा छोटा बेटा पहले 12.30 बजे घर आ जाता था तब मैं कहीं और जाकर समय नहीं दे सकती थी। जब बेटे के स्कूल की छुट्टी का समय 3.30 बजे हो गया तब मैं नियमित रूप से सुधा सोसायटी में आने वाले बच्चों को पढ़ाने आने लगी। करीब दो घंटे का समय यहां मैं देती हूं मगर वे दो घंटे बहुत संतोष देते हैं। मैं नए प्रयोग इसलिए कर पाती हूं क्योंकि मेरे खुद के बच्चे छोटे हैं। उनके स्कूलों में नैतिक शिक्षा, योग, व्यायाम और ऐसे कई नए तरीकों से चीजें सिखाई जाती है। मैं उन तरीकों को फॉॅलो करती हूं और सुधा सोसायटी के ओपन स्कूल में आने वाले बच्चों पर वही प्रयोग करती हूं। मैं कोशिश करती हूं कि एक अच्छे स्कूल के बच्चों को जो मॉड्यूल पढ़ाने और सिखाने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है, वह सब उन बच्चों को भी मिले। हमारा लक्ष्य इन बच्चों को भी उसी स्तर पर लाना है। हमलोग बच्चों का दाखिला या तो सरकारी स्कूल या फिर ईडब्ल्यूएस कोटा में नामचीन स्कूल में कराते हैं। इसके बाद भी हमारी जिम्मेदारी बनी रहती है। हम बच्चों को जहां कमी होती है, वहां ट्यूशन देते हैं ताकि वे बेहतर प्रदर्शन कर सके। सुधा सोसायटी ने पिछले दस सालों में ऐसे करीब 500 बच्चों का दाखिला विभिन्न स्कूलों में कराया है।

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