लाइफस्टाइल: फिटनेस की अधिक चिता बढ़ा रही है 'वेलनेस एंजाइटी'

अक्सर गेट टुगेदर और पार्टियों में ऐसे लोग देखने को मिल जाते हैं जो कि खाने-पीने को लेकर बहुत चूजी होते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 20 Nov 2019 06:22 PM (IST) Updated:Wed, 20 Nov 2019 06:22 PM (IST)
लाइफस्टाइल: फिटनेस की अधिक चिता बढ़ा रही है 'वेलनेस एंजाइटी'
लाइफस्टाइल: फिटनेस की अधिक चिता बढ़ा रही है 'वेलनेस एंजाइटी'

प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम

अक्सर गेट टुगेदर और पार्टियों में ऐसे लोग देखने को मिल जाते हैं जो कि खाने-पीने को लेकर बहुत सतर्क रहते हैं। हमेशा परेशान से रहते हैं, दोस्तों की मनुहार पर कुछ खा भी लेते हैं तो परेशान हो जाते हैं कि कहीं तबियत न बिगड़ जाए या फिर कहीं अधिक कैलोरी से वजन न बढ़ जाए। ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस तरह की परेशानी केवल कुछ देर की नहीं होती बल्कि एक गंभीर बीमारी का रूप भी लेती जा रही है। इन दिनों दिल्ली एनसीआर के युवाओं में 'वेलनेस एंजाइटी' की समस्या बढ़ती जा रही है। लोग इस समस्या से निजात पाने के लिए विशेषज्ञों का सहारा भी ले रहे हैं। क्या है 'वेलनेस एंजाइटी'

बदलते दौर और लाइफस्टाइल के प्रभाव में लोग स्वास्थ्य के प्रति सजग हो रहे हैं लेकिन स्वास्थ्य सजगता और इसे लेकर अति चिता में बहुत अंतर है। एक तो अपने रुटीन के प्रति जिम्मेदारी है और दूसरी बीमारी। हर वक्त केवल अपनी फिटनेस व स्वास्थ्य के बारे में सोचते रहना और उसके हिसाब से पूरा रुटीन बदलना और सामाजिक रूप से भी अलग-थलग पड़ जाना ही वेलनेस एंजाइटी के नाम से जाना जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में इस तरह के केस बढ़ रहे हैं, जिसमें उन्हें खाने पीने से लेकर लोगों से मिलने जुलने में डर लग रहा है कि कहीं उनका स्वास्थ्य प्रभावित न हो जाए। उलटे बिगड़ रहा है स्वास्थ्य

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. तेजस्विनी सिन्हा का कहना है कि अध्ययनों के मुताबिक हर पांच में से एक व्यक्ति वेलनेस रुटीन को लेकर परेशानी झेल रहा है। लोग इसे बोझ की तरह जीवन पर लादने लगे हैं जो कि शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालने की जगह मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। व्यक्ति इस बीमारी में एक तरह के मानसिक दबाव में जीने लगता है और फिर हर तरह के भोजन, पानी और वातावरण से दूरी बनाने लगता है। इससे उनकी सोशल इन्वॉल्वमेंट भी प्रभावित हो रही है और अंत में वह एकाकीपन का शिकार होने लगता है। परफेक्शन से ज्यादा मानसिक सुकून जरूरी

मनोविज्ञान प्राध्यापक डॉ. गरिमा यादव का कहना है कि लोग फिटनेस को हौवा समझने लगे हैं और पूरी तरह से परफेक्ट बॉडी और रुटीन की चाह में मानसिक सुकून खो रहे हैं। उनका कहना है कि यह ध्यान देना ज्यादा जरूरी है कि मानसिक सुकून से बढ़कर फिटनेस नहीं हो सकती। ऐसे कई केस आ रहे हैं, जिसमें खासकर युवा इस तरह की परेशानी से घिरे हैं। स्वास्थ्य और फिटनेस बहुत जरूरी है, हमारी वर्तमान जीवनशैली में भी बहुत खामियां हैं, उन्हें दूर करना चाहिए लेकिन इस प्रक्रिया में हर चीज को लेकर शंकालु नहीं होना चाहिए। फिटनेस के प्रति इस हद की दीवानगी में लोग अपना चैन सुकून और सोशल सर्कल भी खो रहे हैं।

- तेजस्विनी सिन्हा, न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट, दिल्ली लोग सोशल मीडिया से फिटनेस की आधी-अधूरी जानकारी लेकर अपने आप गोल्स सेट करने लगे हैं। इस प्रक्रिया में वे हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। यह आदत अब लोगों की व्यक्तित्व में इस कदर उतरने लगी है कि वे चौबीस घंटे अलर्ट में रहने लगे हैं। इससे शारीरिक, मानसिक व सामाजिक परेशानियों से जूझने लगे हैं।

- अमित, योग प्रशिक्षक, दिल्ली

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