जोगिया द्वारे-द्वारे: सत्येंद्र सिंह

नगर निगम की सीनियर डिप्टी मेयर बनी प्रोमिला गजे सिंह कबलाना के खिलाफ कई पार्षद मुखर होने लगे हैं। इनमें से कई वह हैं जिन्होंने एक केंद्रीय मंत्री के इशारे पर प्रोमिला के पक्ष में वोट दिया था।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 09 Aug 2020 06:31 PM (IST) Updated:Mon, 10 Aug 2020 06:18 AM (IST)
जोगिया द्वारे-द्वारे: सत्येंद्र सिंह
जोगिया द्वारे-द्वारे: सत्येंद्र सिंह

मैडम का जमीन पर बैठना पार्षदों को पसंद नहीं

नगर निगम की सीनियर डिप्टी मेयर प्रोमिला गजे सिंह कबलाना के खिलाफ कई पार्षद मुखर होने लगे हैं। इनमें से कई वह हैं जिन्होंने एक केंद्रीय मंत्री के इशारे पर प्रोमिला के पक्ष में वोट दिया था। जब शहर की सरकार में दूसरे नंबर पर प्रोमिला चुनी गई थीं, तब उनके पति गजे सिंह कबलाना कांग्रेस में हुआ करते थे। मगर जोड़-तोड़ के खेल में माहिर गजे दिल्ली वाले मंत्री के करीब पहुंच गए थे। नतीजन भाजपा पार्षदों का सदन में बहुमत होते हुए भी नंबर दो की सीट कांग्रेस के पास चली गई थी। वह अलग बात है कि बाद में पंजे से दूरी बना ली गई। कुछ दिन पहले जब अवैध निर्माण बता डीटीपी ने गजे सिंह की इमारत पर जेसीबी चलवाई तो पत्नी-धर्म निभाते हुए सीनियर डिप्टी मेयर जेसीबी के सामने धरने पर बैठ गईं। मैडम का यह रवैया नाराज चल रहे पार्षदों को रास नहीं आया। लाइनमैन के आगे नतमस्तक हैं अधिकारी

फर्जीवाड़ा करने में माहिर बिजली निगम के लाइनमैन पवन के सामने कुछ अफसर नतमस्तक रहते हैं। दरअसल इस लाइनमैन ने कई अफसरों को अपने चंगुल में ले रखा है। जब भी पवन द्वारा फर्जीवाड़ा किए जाने की बात सामने आती है तो ये जिम्मेदार अफसर मूकदर्शक बने रहते हैं। जांच भी होती है तो उसकी आंच पवन तक पहुंचते-पहुंचते ठंडी हो जाती है। एफआइआर दर्ज होने के बाद भी आरोपों के तहत कार्रवाई नहीं होती। ऐसा तब है जबकि शिकायत बिजली निगम के ही कुछ अफसरों द्वारा दर्ज कराई गई है। मामला दर्ज तो करा दिया जाता है, पर उच्च अधिकारियों के दबाव में शिकायत करने वाले ही पैरवी करने से पीछे हट जाते हैं। लाइनमैन कुछ महीने का निलंबन काट कर फिर बहाली का पर्चा ले आता है। देखना है कि नई एफआइआर के तहत क्या कार्रवाई होती है, या कार्रवाई मामला दर्ज होने तक ही सीमित रहती है। साहब पर यकीन, खाकी पर नहीं

रजिस्ट्री घोटाले में आरोपित बनाए गए तहसीलदार व नायब तहसीलदारों को खाकी की जांच पर यकीन नहीं है। उनका मानना है कि खाकी वाले जांच करेंगे तो उनके खिलाफ झूठे सबूत जुटाए जाएंगे। कुछ दिन पहले इनकी ओर से प्रशासन को एक ज्ञापन देकर विभाग के उच्च अधिकारियों से जांच की मांग की गई। इसके बाद यह सवाल उठने लगे कि खाकी की जांच पर यकीन क्यों नहीं किया जा रहा है? गलत नहीं किया तो डर क्यों, जांच कोई करे क्या फर्क पड़ने वाला। मामले को पुरजोर तरीके से उठाने वाले आरटीआइ कार्यकर्ता रमेश यादव कहते हैं कि विभागीय अधिकारी जांच करेंगे तो हाथ हल्के से रखेंगे, क्योंकि कुछ अधिकारी भी जांच के दायरे में आ सकते हैं। रजिस्ट्री घोटाले में नीचे से ऊपर तक कुर्सी पर बैठे कई अधिकारियों का हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल इस मामले को लेकर सख्त हैं। प्रवक्ताओं को धनखड़ ने पढ़ाया पाठ

पार्टी एक है तो सुर भी एक होने चाहिए। पार्टी की नीतियों को समान रूप से बताने की जरूरत है। यह पाठ पढ़ाया भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने। मंच था प्रदेश के पार्टी प्रवक्ताओं केसम्मेलन का। प्रदेश भर के प्रवक्ता शिष्य बने नजर आए तो धनखड़ शिक्षक के रूप में दिखाई दिए। बातों ही बातों में उन्होंने कहा कि टिकट और पद की चाहत अलग-अलग हो सकती है, पर पार्टी के प्रति वफादारी एक समान हो। जब भी जनता के बीच जाएं तो व्यक्तिगत इच्छा को मन के थैले से नहीं निकलने दें। गले से आवाज पार्टी हित में ही निकले। किसी को पीड़ा है तो वह संगठन के आगे व्यक्त कर सकता है। यही नहीं बातों ही बातों में प्रदेश अध्यक्ष ने इशारा कर दिया कि संगठन भी कुछ है, और आगे सरकार के कामकाज में इस बात की प्रभावी छाप दिखाई देगी। अफसर भी सबकी सुनेंगे।

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