जोगिया द्वारे-द्वारे: सत्येंद्र सिंह

राष्ट्रीय पर्व भी सरकारी होने लगे हैं। गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस समारोह जिस दल की सत्ता सूबे में रही उसी पार्टी के नेता कार्यक्रम स्थल में पहुंचते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 26 Jan 2020 06:34 PM (IST) Updated:Mon, 27 Jan 2020 06:01 AM (IST)
जोगिया द्वारे-द्वारे: सत्येंद्र सिंह
जोगिया द्वारे-द्वारे: सत्येंद्र सिंह

राष्ट्रीय पर्व भी पार्टीमय हुए

राष्ट्रीय पर्व भी सरकारी होने लगे हैं। गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस समारोह, जिस दल की सत्ता सूबे में रही उसी पार्टी के कार्यकर्ता कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते हैं। जब इनेलो की सरकार थी तो मंच पर इनेलो के कार्यकर्ता दिखाई देते थे। कांग्रेस की आई तो कांग्रेसी नजर आते थे। अब जब भाजपा की सरकार है तो कार्यक्रम में भाजपाई नेता-कार्यकर्ता ही पहुंचे। वे नेता जरूर पहुंचे जो हाथ (कांग्रेस) का साथ छोड़ या ऐनक (इनेलो) उतार कमल खिलाने में जुट गए हैं। यही नेता पहले जाने से परहेज करते थे। ऐसा नहीं था कि जिला प्रशासन उन्हें आमंत्रित नहीं करता था। जिला उपायुक्त अमित खत्री ने कहा कि कार्यक्रम सभी का होता है। हमने जिले के सभी मौजिज लोगों को बुलाया था। आना, नहीं आना उनकी सोच है। हालांकि इस तरह के कार्यक्रम में एक दल की नहीं सभी की भागीदारी होनी चाहिए तभी लोकतंत्र मजबूत होगा। अगली पीढ़ी को राजनीतिक विरासत

राजनेता भी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने में लगे हैं। कोई बेटे को मैदान में उतार राजनीति के तौर तरीके सिखा रहा है तो किसी ने बेटी को उतार रखा है। पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के पुत्र राव चिरंजीव पिता की सीट को संभाल चुके हैं। भाजपाई भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं। पार्टी में 75 साल की उम्र की पाबंदी है। ऐसे में कई नेता अपना उत्तराधिकारी बना चुके हैं। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह अपनी बिटिया आरती राव को तीन साल पहले ही सक्रिय कर चुके हैं। अब पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह ने अपने बेटे राव बरनीत को सियासी पिच पर उतार दिया है। जहां वह नहीं पहुंच पाते वहां बेटे को भेज रहे हैं। हरियाणा डेयरी विकास प्रसंघ के चेयरमैन जीएल शर्मा भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। उनके पुत्र सुमित शर्मा राजनीतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर शरीक होते नजर आने लगे हैं।

भाजपा में महिला सशक्तीकरण

महिला सशक्तीकरण का असर राजनीतिक पार्टियों में भी दिखाई देने लगा है। भाजपा इस मामले में सबसे आगे नजर आ रही है। जिले में पंद्रह मंडल अध्यक्षों के लिए आए जो आवेदन आए उनमें आधी महिला उम्मीदवार हैं। इनमें से दस नाम तो ऐसे हैं जिन्हें दरकिनार नहीं कर सकते। 45 वर्ष उम्र की कटऑफ से लेकर सियासी सक्रियता में भी महिलाएं खरी उतर रही हैं। दो दिन पहले हुई बैठक में उनके नाम पर चर्चा भी जोरदार तरीके से हुई। पार्टी जिला अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौहान भी मानते हैं कि बड़ी संख्या में मंडल अध्यक्ष के आवेदन के लिए महिला कार्यकर्ताओं ने आवेदन किए हैं। पार्टी की रीति-नीति के आधार पर कई दमदार नामों पर चर्चा कर उनके आवेदन को चुनाव अधिकारी तक पहुंचाया भी जा चुका है। अब देखना यह होगा कि अंतिम दौर में महिला सशक्तीकरण का असर दिखेगा, या भागीदारी आवेदन तक ही सीमित रह सकेगी।

बूढ़ा मान लिया तो राजनीति छोड़ दूंगा

बुढ़ापे ने बड़े-बड़े नेताओं के राजनीतिक सफर पर ब्रेक लगा दिया है। इसका सबसे ज्यादा असर सत्तारूढ़ भाजपा में देखने को मिल रहा है। पार्टी ने तय कर दिया है कि 45 साल पूरे कर चुके किसी भी नेता को मंडल अध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा। पार्टी की इस रणनीति से सालों से कमल खिलाने में जुटे कई नेताओं की राजनीति हाशिए पर लग गई। सोहना में मंडल अध्यक्ष के लिए हुई चुनावी बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेता रामबाबू गुप्ता ने तो विद्रोह कर दिया। दरअसल उन्होंने चुनाव पर्यवेक्षक बड़खल (फरीदाबाद) से विधायक सीमा त्रिखा के सामने आवेदन किया तो किसी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उम्र ज्यादा है। यह सुनते ही रामबाबू हत्थे से उखड़ गए। बोले, जवानी पार्टी के लिए लगा दी। अभी बूढ़ा भी नहीं हुआ, पर बूढ़ा बनाने में लगे हो। यह हमें मंजूर नहीं। बूढ़ा मान लिया तो पार्टी ही छोड़ दूंगा।

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